पर्सनल लॉ बोर्ड में डर- कहीं हलाला और कई बीवियां रखने पर सुप्रीम कोर्ट तलब न कर ले कैफियत
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की एग्जिक्यूटिव कमेटी की रविवार (10 सितंबर) को हुई बैठक में सुप्रीम कोर्ट के एक बार में तीन तलाक पर फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका (रिव्यू पीटीशन) दायर करने पर कोई चर्चा नहीं हुई। सूत्रों के अनुसार अनौपचारिक बातचीत के दौरान मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्यों को लगा कि इस मसले पर रिव्यू पिटीशन दायर करने से इस्लाम की दूसरी रवायतों मसलन बहुविवाह भी अदालत के विचार के दायरे में आ सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ये पहली बैठक थी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अभी तक इस मसले पर संयमित प्रतिक्रिया ही देता रहा है। माना जा रहा था कि इस बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन पर विचार किया जाएगा।
भोपाल में रविवार को हुई मैराथन बैठक में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार पर मुसलमानो के निजी कानून में दखल देने का आरोप लगाया और खुशी जतायी की शीर्ष अदालत का आदेश सरकार की मंशा के अनुरूप नहीं रहा। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वरिष्ठ सदस्यों की एक कमेटी बनायी है जो सर्वोच्च अदालत के फैसले की शरिया कानून की रोशनी में समीक्षा करेगा। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ‘व्यापक सुधार” लागू करने को लेकर भी प्रतिबद्धता जतायी।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “रिव्यू पिटिशन पर बैठक में बिल्कुल विचार नहीं हुआ। जो लोग ऐसा सोच रहे थे कि ये होगा वो केवल कल्पना कर रहे थे। हमने हमेशा एक विवेकवान रुख का समर्थन किया है। हम दूसरे संगठनों की तरह मामूली वजहों से सड़क पर नहीं उतरते। हम टकराव के बजाय दूसरे रास्ते पर अमल करते हैं कि क्योंकि मुसलमानों से जुड़े कई अहम मुद्दे हमारे सामने हैं।”
बैठक के बाद के जारी एक बयान में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा, “सरकार ने एटार्नी जनरल द्वारा माननीय सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे से अपनी मंशा जाहिर कर दी थी। हलफनामे में कहा गया था कि सरकार अदालत की दखल के बिना किए गए किसी भी विवाह को असंवैधानिक घोषित कर देना चाहिए। मौजूदा सरकार का रुख संविधान में दिए गए अधिकार से विपरीत है। हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि मुस्लिम समुदाय के निजी कानून पर ऐसे हमले बरदाश्त नहीं किए जाएंगे।”
22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायधीशों की संविधान पीठ ने3-2 के बहुमत से एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को गैर-कानूनी करार दिया था। जमियत उलमा-ए-हिन्द जैसे कई मुस्लिम संगठनों ने अदालत के इस फैसले का विरोध किया था। कुछ संगठनों ने एक बार में तीन तलाक को जारी रखने की पैरवी करते हुए इस कानूनी मान्य तलाक स्वीकार किए जाने की मांग की।