मुस्लिम स्कॉलर ने कहा- कट्टरपंथी हिंसा और इस्लाम का आपस में रिश्ता, इसके उलट दावा करना दिखावा है
दुनिया की सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया के सबसे प्रमुख इस्लामिक विद्वान माने जाने वाले याहया चोलिल स्ताकफ ने अमेरिकी पत्रिका टाइम को दिए इंटरव्यू में कहा है कि ये कहना गलत है कि कट्टरपंथ हिंसा और इस्लाम का आपसी रिश्ता नहीं है। 51 वर्षीय याहया नाहदलातुल उलमा के महासचिव हैं। इस संगठन के पांच करोड़ सदस्य हैं और ये इंडोनेशिया का सबसे बड़ा मुस्लिम संगठन है। इंटरव्यू में जब याहया से पूछा गया कि कई पश्चिमी विद्वान और बुद्धिजीवी इस्लामी आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ने की आलोचना करते हैं? इस पर याहना ने कहा, “पश्चिमी राजनेताओं को ये दिखावा बंद कर देना चाहिए कि कट्टरपंथ और आतंकवाद का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है। कट्टरपंथ, आतंकवाद और बुनियादी इस्लामिक कट्टरता में सीधा संबंध है। जब तक हम इस बारे में जागरूक नहीं होंगे तब तक हम इस्लामक के अंदर के कट्टरपंथी हिंसा पर जीत नहीं हासिल कर सकेंगे।”
याहया ने आगे कहा, “कट्टर इस्लाम कोई नई चीज नहीं है। ये खुद इंडोनेशिया के इतिहास में बार-बार सिर उठाता रहा है। पश्चिम देशों को इस मुद्दे पर हर बातचीत को “इस्लामोफोबिया” कहकर खारिज करना बंद करना चाहिए। क्या मेरे जैसे इस्लामी विद्वान को भी ये लोग इस्लामोफोबिक करार दे सकते हैं?” याहया से ये भी पूछा गया कि वो इस्लाम की किन मान्यताओं को समस्याप्रद मानते हैं? इस पर उन्होंने कहा, “मुसलमानों का गैर-मुसलमानों से संबंध, मुसलमानों का राष्ट्र के साथ संबंध, वो जहां रह रहे हैं वहां के कानून व्यस्था से उनका संबंध….पारंपरिक तौर पर मुसलमानों का गैर-मुसलमानों से संबंध दुश्मनी और अलगाव का रहा है।” याहया ने आगे कहा, “संभव है कि मध्य काल में इसके पीछे कई कारण रहे हों, उसी समय इस्लामिक कट्टरपंथ की नींव पड़ी लेकिन आज के समय में ये सिद्धांत अतार्किक हैं। जब तक मुसलमान इस्लाम के इस नजरिये के साथ जीते रहेंगे वो 21वीं सदी में सांस्कृतिक बहुलता और धार्मिक बहुलता वाले समाजों में शांति और सौहार्द्र से साथ नहीं रह सकेंगे।”
याहया मानते हैं कि सऊदी अरब और दूसरे खाड़ी देश इस्लाम के कट्टरपंथी धारा को पिछले 50 सालों से बढा़वा देते आ रहे हैं। याहया ने कहा, “कई दशकों तक ऐसा होते रहने देने के बाद अब पश्चिमी देशों को सऊदी देशों पर निर्णायक दबाव बनाकर इसे रुकवाना चाहिए।” याहया के अनुसार इस्लामी मान्यताओं को उनके ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि की रोशनी में समझना चाहिए। याहया के अनुसार इंडोनेशिया लंबे समय से इसी नजरिये से इस्लाम की व्याख्या करता रहा है। हालांकि याहया मानते हैं कि उनके देश के “कुछ राजनीतिक इलीट अपने राजनीतिक फायदे के लिए कट्टरपंथी इस्लाम का इस्तेमाल करते हैं।”