भगवान गणेश ने की थी सबसे पहले परिक्रमा, जानें मंदिरों में चक्कर लगाने का महत्व
मंदिर में पूजा के बाद लोग थाली और धूप लेकर पेड़ या भगवान की मूर्ति के पास चक्कर लगाते हैं। मंदिरों के साथ गुरुद्वारों में भी माथा टेकने के बाद चक्कर लगाते हैं। सूर्य को अर्घ्य देने के बाद भी लोग अपने स्थान पर गोल घूमते हैं। यहां हम बात करने जा रहे हैं कि हर मंदिर-गुरुद्वारा या अन्य किसी पवित्र स्थान पर परिक्रमा क्यों की जाती है। इस मान्यता के पीछे का कारण क्या है, भक्तों का मानना है कि इससे उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
मान्यताओं के साथ कहा जाता है कि मंदिर में दर्शन करने और पूजा के बाद परिक्रमा करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है और वो मन तन-मन में शांति प्रदान करती है। इसके साथ ये भी जान लेते हैं कि किसी पवित्र स्थान पर नंगे पैर क्यों चलकर जाया जाता है और वहां अराधना की जाती है। नंगे पैर चलने से या परिक्रमा करने से उस स्थान में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा सीधे हमारे शरीर में प्रवेश करती है जो मान्यताओं के अनुसार मानव शरीर के लिए लाभदायक बताई गई हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जब भगवान गणेश और कार्तिकेय के बीच संसार का चक्कर लगा कर आने की प्रतिस्पर्धा रखी गई थी तब भगवान गणेश ने अपनी चतुराई से पिता शिव और माता पार्वती के तीन चक्कर लगाए थे और कहा था कि मेरा संसार मेरे माता-पिता हैं। इसी मान्यता के अनुसार मंदिर और गुरुद्वारे में परिक्रमा लगाई जाती है। कहा जाता है कि संसार के निर्माता के चक्कर लगाने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। किसी भी पवित्र स्थान पर 8 से 9 बार परिक्रमा करना लाभदायक बताया गया है और कहा जाता है कि भगवान के दाएं हाथ से ही परिक्रमा शुरु करनी चाहिए।