गोरक्षा के बहाने

पिछले कुछ समय से जिस तरह गोरक्षा के नाम पर अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं, उसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चेतावनी दी थी। मगर उसका कोई असर नहीं हुआ। अब सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को निर्देश दिया है कि गोरक्षा के नाम पर हिंसा को रोकने के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को नोडल अधिकारी बनाया जाए। वे राजमार्गों पर गश्त तेज करें और गोरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करें। देखना है, इस मामले में राज्य सरकारें कितनी मुस्तैदी दिखा पाती हैं। अगर राज्य सरकारें संजीदा होतीं तो अब तक ऐसी घटनाएं रुक गई होतीं। मगर स्पष्ट है कि उनमें इन्हें रोकने की इच्छा शक्ति का अभाव है। इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि जब गोरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा के खिलाफ अपील पर सुनवाई हो रही थी, तो केंद्र की तरफ से अतिरिक्त महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि ऐसी घटनाओं के खिलाफ पहले से कानून बने हुए हैं। तब सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि फिर उन पर अमल क्यों नहीं हो पा रहा।

पिछले ढाई सालों में विभिन्न राज्यों में गोमांस रखने और खाने के आरोप में हिंसक भीड़ के हाथों अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोग मारे जा चुके हैं। यहां तक कि ऐसे लोग भी उनका निशाना बने हैं, जो गाय खरीद कर ले जा रहे थे और उनके पास वाजिब कागजात थे। गुजरात में कुछ दलित युवकों को इसलिए हिंसा का शिकार होना पड़ा कि वे मरी हुई गाय का चमड़ा उतारने ले जा रहे थे। इसे लेकर लंबे समय तक गुजरात में तनाव का माहौल रहा और देश भर में दलित समुदाय ने नाराजगी जाहिर की थी। तब प्रधानमंत्री ने कहा था कि गोरक्षा के नाम पर कुछ शरारती तत्त्व अपनी कुत्सित मंशा को अंजाम दे रहे हैं, उन पर नजर रखने की जरूरत है। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता भी सफाई देते रहे हैं कि ऐसी हिंसक घटनाओं को उनके कार्यकर्ताओं ने अंजाम नहीं दिया, बल्कि कुछ शरारती तत्त्व उन्हें बदनाम करने की नीयत से ऐसा करते आ रहे हैं। जबकि पिछले दिनों झारखंड में एक अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति की हत्या में वहां के स्थानीय भाजपा नेता को शामिल पाया गया था। जाहिर है कि गोरक्षा के नाम पर हिंसा की घटनाएं उन्हीं राज्यों में अधिक हुई हैं, जहां भाजपा की सरकार है या जहां भाजपा अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश कर रही है।

यह सही है कि गोवध के विरुद्ध सभी राज्यों में कानून है, पर चोरी-छिपे या राज्य सरकारों की शह पर बूचड़खानों में गोमांस का कारोबार चलता है। जब से केंद्र में भाजपा की सरकार बनी है, उसने गोमांस की बिक्री पर सख्त रुख अख्तियार किया है। उसी की आड़ में हिंदुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ता सक्रिय हो उठे हैं और खासकर अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाते रहे हैं। कानून का पालन कराना प्रशासन का काम है, किसी संगठन को इसका अधिकार नहीं मिल जाता कि वह कानून को अपने हाथ में ले। सवाल है कि अगर शरारती तत्त्व निहित स्वार्थों के चलते या भाजपा को बदनाम करने की नीयत से गोरक्षा के नाम पर उपद्रव करते हैं, तो भाजपा शासित सरकारें उनकी पहचान करने और उन पर नकेल कसने के उपाय क्यों नहीं करतीं। अगर वे सचमुच इसे लेकर गंभीर हैं तो उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर सख्ती से अमल करना चाहिए।

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