न, न… उसके बाद करेंगे हां, तभी लौटेगी नरेंद्र मोदी की मुस्कान.
Nitish Kumar and Chandrababu Naidu: उम्मीद के हिसाब से लोकसभा में एनडीए को सीटें नहीं आई हैं। हालांकि, तीसरी बार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। नरेंद्र मोदी के साथ
- नीतीश कुमार बने चुनाव के बाद Key फैक्टर
- चंद्रबाबू नायडू के हाथ में सत्ता की मुख्य चाबी
- बीजेपी को सहयोगियों का साथ चाहिए होगा
पटना: वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव लोकतंत्र का खूबसूरत चेहरा ले कर आया है। वैसे भी माना जाता है कि मजबूत विपक्ष लोकतंत्र का गहना है। अभी तक की चुनावी तस्वीर सामने आई है उसमे एनडीए को बहुमत आता तो दिख गया है। पर बहुमत का जो स्वरूप दिख रहा है वहां से पोस्ट एलायंस की राजनीति को भरपूर स्पेस मिल रहा है। और इस राजनीति के सबसे बड़े मोहरे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू बनते दिख रहे है। ऐसा इसलिए कि जो परिणाम आने वाले हैं उस आधार पर कोई भी दल अपने अकेले के दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। रुझानों में एनडीए के 295 सीटें को आधार मान ले तो यह संख्या वैसी नहीं जिसके सहारे भाजपा आराम से सत्ता की गाड़ी हांक सके। वह भी तब जब इस, 295 सीटों में जदयू (12) और टीडीपी के(16) सांसदों की शक्ति भी शामिल हो। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि एनडीए सरकार के किंग मेकर टीडीपी और जदयू बनने जा रहे हैं।
बातचीत की राजनीति शुरू
अभी परिणाम का पूरा स्वरूप दिखा भी नहीं कि एनसीपी नेता शरद पवार का फोन नीतीश कुमार के पास आया। भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री सीएम हाउस पहुंचे। पहली दफा तो सम्राट चौधरी को लौटना पड़ा। फिर कुछ देर बाद नीतीश कुमार से बातचीत हुई। अब क्या बातचीत हुई यह तो सामने नहीं आ पाया है, पर एक बात तो साफ है कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के दोनों हाथ में लड्डू है।
अनप्रिडिक्टेबल नीतीश कुमार
नीतीश कुमार राजनीति में इतनी बार पाला बदल चुके हैं कि उन्हें अविश्वसनीय नेताओं में शुमार किए जाने लगा है। नीतीश कुमार ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जिन्होंने दो शब्द का इस्तेमाल कर राजनीति के हर रंग को साधा है। भाजपा के साथ राजनीति करनी हो तो जंगलराज का मुद्दा उठा डाला और जब राजद के साथ राजनीति करने का मन आया तो सेकुलर शब्द की धार पकड़ भाजपा के विरुद्ध की राजनीति की।
बहुमत की राजनीति
बहुमत की राजनीति के बीच नीतीश कुमार जिस संख्या बल के साथ खड़े हैं वैसे में इनकी बार्गेनिंग कैपेसिटी का अंदाजा लगाना मुश्किल है। राजनीतिक गलियारों की बात करें तो संख्या बल के हवाले से क्या क्या कर सकते हैं ….
1. क्या डिप्टी पीएम बनने की बाजी खेलेंगे।
2. मंत्री पद की संख्या और महत्त्वपूर्ण विभाग का दबाव बनाएंगे।
3. वर्ष 2025 बिहार विधान सभा का नैरेटिव सेट करेंगे।
4. विशेष राज्य का दर्जा पाने का रास्ता तलाशेंगे।
5. अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा की रट लगाने वाले नीतीश कुमार सॉफ्ट कॉर्नर भाजपा नेता को पीएम बनाने का दबाव भी बना सकते हैं। याद होगा नरेंद्र मोदी के हार्ड कोर नेता होने के कारण भाजपा से नाता तोड़ा था और पीएम के सम्मान में भोज को रद्द भी किया था।
चंद्रबाबू नायडू और एनडीए सरकार
लोकसभा चुनाव के परिणाम की बात करें तो टीडीपी 16 सीटें पा कर एनडीए के दूसरी बड़ी पार्टी बनी है। जहां तक चंद्रबाबू नायडू की बात करें तो वे भी राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी हैं। इनका इतिहास भाजपा के साथ सरकार बनाने का रहा है तो कभी वे भाजपा के विरुद्ध विपक्ष की भूमिका का भी निर्वाह किया है। यहां तक की चंद्रबाबू नायडू भाजपा सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने से भी नहीं चुकी। हालंकि जगन्नाथ रेड्डी की बढ़ती ताकत के विरुद्ध उन्होंने भाजपा का दामन पकड़ा। पर नीतीश कुमार की तरह ही पाला बदलने में माहिर नायडू विधानसभा चुनाव में बहुमत की सरकार की स्थिति में पहुंच कर क्या भाजपा को पहले की तरह समर्थन दे पाएंगे। ऐसा इसलिए भी इंडिया गठबंधन की तरफ से इन्हें भी घेरा जा रहा है। ऐसे में नायडू की बार्गेनिंग कैपेसिटी असीम है।
भाजपा की मजबूरी
भाजपा की मजबूरी यह है कि सदन में सबसे बड़ी पार्टी के कारण सरकार बनाने का आमंत्रण तो मिल जाएगा। पर इस सरकार के दीर्घायु होने के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की बड़ी वाली हां चाहिए। सरकार बनाने और गिराने में अभ्यस्त भाजपा के रणनीतिकारों को सियासी मोलभाव का काफी अनुभव है। यह जानते हुए कि इंडिया के रणनीतिकार भी नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर डोरा डालना शुरू कर दिया है, भाजपा बार्गेनिंग के उस स्थिति तक पहुंचेगी यहां तक पहुंचने में भाजपा को ज्यादा नुकसान नहीं हो। लेकिन इससे इतर भाजपा के रणनीतिकार इंडिया गठबंधन के छोटे छोटे दलों को साधने की कोशिश निरंतर जारी रखेगी ताकि जदयू और टीडीपी के दबाव से मुक्त हो सकें।पीटीआई.