Navratri 2018: आज है सातवां नवरात्र मां कालरात्रि का दिन, जानिए शुंभ-निशुंभ के वध की कथा
आज (24 मार्च) को सातवां नवरात्रि है। इस दिन दुर्गा के सातवें रूप कालरात्रि की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहते हैं। कालरात्रि का जन्म असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से किया था। पौराणिक कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था। इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए। शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया तथा शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।
मां कालरात्रि का शरीर रात के काले अंधकार की तरह हैं। इनके बाल बिखरे हुए हैं तथा इनके गले में विधुत की माला है। इनके चार हाथ है जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार तथा एक हाथ में लोहे कांटा धारण किया हुआ है। इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है। इनके तीन नेत्र है तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है। माता कालरात्रि का वाहन गर्दभ (गधा) है। इनको शुंभकारी भी कहा जाता है।
मां कालरात्रि का मंत्र:
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
मां कालरात्रि का ध्यान:
करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।
कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥