आर्थिक सलाहकार परिषद की पहली बैठक- देश में रोजगार के बारे में कोई सटीक आंकड़ा नहीं है: देबराय

नीति आयोग के सदस्य और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के अध्यक्ष बिबेक देबराय ने बुधवार को कहा कि देश में रोजगार के बारे में कोई सटीक आंकड़ा नहीं है। पीएमईएसी की पहली औपचारिक बैठक के बाद उन्होंने कहा, हमारे पास रोजगार को लेकर ठोस आंकड़ा नहीं है। देश में जो भी आंकड़े हैं, वे परिवारों के बीच किए गए सर्वे पर आधारित हैं। जो आंकड़े हैं भी, वे पुराने हैं। भारत जैसे देश में उपक्रम आधारित आंकड़ा मुश्किल है। उनसे देश में पर्याप्त रोजगार सृजित नहीं होने और आंकड़ों की कमी के बारे में पूछा गया था। उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश में आप रोजगार के बारे में उपक्रम सर्वे में बेहतर आंकड़ा प्राप्त नहीं कर पाते। हमें बेरोजगारी और रोजगार के बारे में आंकड़ा परिवारों के बीच किए गए सर्वे से मिलता है। एनएसएसओ का यह सर्वे भी 2011-12 के लिए है और अगला सर्वे 2018 तक उपलब्ध नहीं होगा। गौरतलब है कि फिलहाल जो रोजगार पर आंकड़े उपलब्ध होते हैं, वह समय पर नहीं आते और जो आंकड़े आते भी हैं, वह संगठित क्षेत्र तक सीमित होता है। असंगठित क्षेत्र में देश के कुल कार्यबल का करीब 90 फीसद काम करता है, लेकिन उनको लेकर कोई ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। इस संदर्भ में व्यापक आंकड़े राष्ट्रीय नमूना सर्वे कार्यालय (एनएसएसओ) उपलब्ध कराता है लेकिन वह समय पर नहीं आता और उसमें समय अंतराल (टाइम लैग) होता है।

परिषद की पहली बैठक में 10 क्षेत्रों की पहचान की गई है जिसमें आर्थिक वृद्धि और रोजगार और रोजगार सृजन सबसे ऊपर है। देबराय ने कहा कि परिषद अपनी अगली बैठक में रोजगार के बारे में विस्तार से चर्चा करेगी। परिषद ने आर्थिक वृद्धि और रोजगार समेत 10 मुद्दों को चिह्नित किया। आने वाले महीनों में परिषद के सदस्य संबंधित मंत्रालयों, राज्यों, विशेषज्ञों, संस्थानों, निजी क्षेत्र और अन्य संबंधित पक्षों के साथ विचार-विमर्श कर इस बारे में रिपोर्ट तैयार करेंगे।
देश में आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट के सवाल पर उन्होंने कहा कि परिषद के सदस्यों के बीच इस बात पर सहमति थी कि आर्थिक वृद्धि दर घटी है जिसके कई कारण हैं। उल्लेखनीय है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर कम होकर तीन साल के न्यूनतम स्तर 5.7 फीसद पर आ गई। उन्होंने इस बारे में विस्तार से बताने इनकार करते हुए कहा कि परिषद की जिम्मेदारी विभिन्न मुद्दों पर अपनी सिफारिश प्रधानमंत्री को देने की है।

परिषद ने जिन 10 क्षेत्रों की पहचान की है वे आर्थिक वृद्धि, रोजगार और रोजगार सृजन के अलावा असंगठित क्षेत्र व उसका समन्वय, राजकोषीय स्थिति, मौद्रिक नीति, सार्वजनिक व्यय, आर्थिक क्षेत्र में काम करने वाले संस्थान, कृषि और पशुपालन, उपभोग की प्रवृत्ति और उत्पादन व सामाजिक क्षेत्र हैं। मौद्रिक नीति को शामिल किए जाने को लेकर रिजर्व बैंक के काम में हस्तक्षेप से जुड़े एक सवाल के जवाब में देबराय ने कहा- हम जो भी काम करेंगे आरबीआइ और मौद्रिक नीति समिति के साथ मिलकर करेंगे। आरबीआइ जो भी कर रहा है, वह उसमें पूरक का काम करेगा। वास्तव में एक नीति के रूप में हमारे पास बेहतर उपकरण मौद्रिक नीति है। हम संरचनात्मक मुद्दों को देखेंगे न कि नीतिगत दर के बारे में। इसका मकसद एक नीति के रूप में मौद्रिक नीति को और बेहतर और धारदार बनाना है। पीएमईएसी ने रोजकोषीय मजबूती को बनाए रखने का भी सुझाव दिया।

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार के उद्योग को प्रोत्साहन पैकेज देने से वित्तीय अनुशासन बिगड़ सकता है, देबराय ने कहा कि इस बात को लेकर बैठक में सहमति रही कि वित्तीय मजबूती को लेकर जो कदम उठाए जा रहे हैं, वे जारी रहने चाहिए। आर्थिक वृद्धि में नरमी के बीच उद्योग इससे पार पाने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन की मांग कर रहा है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 3.2 फीसद रखने का लक्ष्य रखा है।परिषद का गठन इस साल 26 सितंबर को किया गया। इसमें सदस्य सचिव के रूप में नीति आयोग के प्रधान सलाहकार रतन पी वाटल के अलावा अर्थशास्त्री डॉक्टर सुरजीत भल्ला, डाक्टर रथिन राय और डाक्टर आशिमा गोयल बतौर अंशकालिक सदस्य शामिल हैं। पीएमईएसी की अगली बैठक नवंबर में होगी।

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