NRC: सीएम ममता बनर्जी का मोदी सरकार पर कविता से निशाना- मन की बात सुनते हो…तुम उग्रपंथी हो!

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक कविता के माध्यम से केंद्र की मोदी सरकार पर असम में जारी एनआरसी को लेकर तंज किया है। तीन भाषाओं में लिखी हुई इस कविता को उन्होंने सोमवार को अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया। इस कविता का शीर्षक बंगाली में पोरिचोई, हिंदी में परिचय और अंग्रेजी में आइडेंटिटी है। दो पन्नों की इस कविता की शुरूआत व्यक्ति से उनका उपनाम, पिता का नाम, भाषा, विश्वास और उनके खाने के बारे में पूछने से होती है। ममता अपने कविता के माध्यम से कटाक्ष करती हुई कहती हैं कि यदि वे इन प्रश्नों का जवाब देने में सक्षम नहीं हैं, तो उनके लिए इस दुनिया में कोई जगह नहीं है।

ममता बनर्जी आगे लिखती हैं कि, “यदि लोग अपनी पहचान और आवास साबित नहीं कर पा रहे हैं, तो कैसे उन्हें देशद्रोही के साथ जोड़ा जा रहा है। कविता के तीसरे पैराग्राफ में वो केंद्र सरकार पर तंज करते हुए लिखती हैं कि तुम्हारा वेशभूषा क्या है? तुम्हारे पूर्वजों का क्या नाम है? क्या तुम्हारा ‘गोबर-धन’ (जन-धन) बैंक खाता है? नहीं है तो तुम घुसपैठिए हो।” कविता के चौथे पैराग्राफ में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने सवालिया लहजे में लिखा कि, ” तुम मन की बात सुनते हो? क्या तुम शासक के विरूद्ध लिखते हो? क्या तुम्हारा फोन नंबर आधार से जुड़ा है? क्या तुम पे(बी) टी(ए)म के सदस्य हो? सबकुछ रजिस्टर्ड है क्या? क्या क्या तुम शोषक का विरोध करते हो? तब तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है। तुम उग्रपंथी हो।”

बता दें कि असम में एनआरसी ड्राफ्ट जारी होने के बाद 40 लाख लोगों की नागरिकता पर सवाल खड़ा हो गया है। इस मामले पर राजनीति भी तेज हो गई है। ममता बनर्जी ने इस पूरे मामले पर कड़ा विरोध जताते हुए कहा है कि एक गेम प्लान के तहत लोगों को अलग-थलग किया जा रहा है। लोग अपने ही मुल्क में शरणार्थी हो गए हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ भ्रामक बयान दे रहे हैं और उसे फैला रहे हैं, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय नागरिकों के नाम सूची से बाहर रखने के लिए कभी नहीं कहा। जिन भारतीय नागरिकों के नाम सूची में शामिल नहीं हैं, उनमें बंगाली, असमी, राजस्थानी, मारवाड़ी, बिहारी, गोरखा, उत्तर प्रदेश के, पंजाबी और चार दक्षिणी राज्यों के नागरिक शामिल हैं।

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