बदइंतजामी का शिकार हुई शानदार अतीत वाली राजस्थान रोडवेज बंद होने के कगार पर

अपने शानदार अतीत वाली राजस्थान रोडवेज की बसों का पहिया अब थमने वाला है। सरकार की नीतियों और प्रशासनिक बदइंतजामी का शिकार हुई राजस्थान पथ परिवहन निगम में घाटे के कारण अब उसके कर्मचारियों को वेतन और पेंशन का टोटा पड़ गया है। राजस्थान के इस बड़े सरकारी उपक्रम रोडवेज का घाटा साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए को पार कर गया है। रोडवेज प्रशासन के सामने अपने चार हजार से ज्यादा रिटायर कर्मचारियों को पेंशन और अन्य भक्तों का भुगतान ही संकट में पड़ गया है। इसके लिए रोडवेज अब अपनी जमीन बेचने को तैयार बैठा है पर उसे खरीददार ही नहीं मिल रहे हैं। इसके कारण रोडवेज के 20 हजार से ज्यादा कर्मचारियों के सामने रोजगार का संकट भी खड़ा होने के आसार हैं।

देश भर में अपनी बेहतर सेवाओं के लिए कभी राजस्थान रोडवेज को अव्वल दर्जा हासिल था। उत्तर भारत के प्रदेशों के लोग तो उनके यहां राजस्थान रोडवेज की बसों में ही बैठना पसंद करते थे पर अब हालात उलट हैं। प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में आवागमन के लिए रोडवेज ने अपनी बसों का पूरा जाल बिछा दिया था। उसके प्रदेश भर में 40 डिपो हैं और उनमें बसों की मरम्मत के लिए वर्कशाप भी है। घाटे से जूझ रहे रोडवेज के पास जब कर्मचारियों के वेतन और पेंशन के लिए ही पर्याप्त बजट नहीं है तो उससे अब नई बस सेवाएं संचालित होने की कोई उम्मीद भी नहीं है।

रोडवेज का तमाम प्रशासन सरकार के बड़े आइएएस और आरएएस अफसर संभालते हैं पर इसे घाटे से उबारने के लिए 10 वर्षों में कोई भी कारगर प्रयास ही नहीं किए गए। प्रदेश की मौजूदा सरकार ने तो अपने इस भारी भरकम निगम से आंखें ही मूंद ली है। सरकार ने यात्री परिवहन में अब निजीकरण की नीति अपना ली है। लिहाजा प्रदेश में बड़ी संख्या में लोक परिवहन के तहत निजी बसों को परमिट जारी कर दिए गए हैं। रोडवेज के कर्मचारी अपने निगम के निजीकरण के खिलाफ आंदोलन भी कर रहे हैं पर सरकार उनकी कुछ नहीं सुन रही है। रोडवेज कर्मचारियों ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए बसों का चक्का जाम कर हड़ताल भी की। इसके बाद सरकार ने कर्मचारी संगठनों से वार्ता कर समझौता भी किया पर समस्या ज्यों की त्यों है। रोडवेज के तीन साल में रिटायर हुए करीब चार हजार कर्मियों की पेंशन, ग्रेच्युटी, ओवरटाइम आदि का भुगतान अभी तक नहीं हो पाया है। इनका रोडवेज पर करीब 310 करोड रुपए बकाया है। रिटायर कर्मचारी अपने भुगतान के लिए अदालत तक गए और इसके बाद ही प्रशासन ने अपनी जमीन बेचने की कवायद चलाई जिससे कर्मचारियों में और नाराजगी पनपी। राजस्थान रोडवेज की एटक यूनियन के अध्यक्ष एमएल यादव का कहना है कि सरकार परिवहन निगम को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है।

प्रदेश के हर शहर में रोडवेज के पास अपने बस स्टैंड हैं और उनमें कीमती जमीन हैं। इन जमीन पर ही सत्ताधारी दल के नेताओं की निगाहें लगी हुई हैं। जयपुर के बस अड्डे सिंधी कैंप पर तो सरकार की योजना बड़ा वाणिज्यक काम्पलेक्स बनाने की है। इसके साथ ही सरकार नए मार्गों पर रोडवेज के बजाय निजी क्षेत्र को परमिट जारी कर रही है। रोडवेज बस अड्डों से निजी बसों का संचालन करने की अनुमति देना भी सरकार की नीयत पर संदेह व्यक्त करता है।
राजस्थान परिवहन निगम मजदूर कांग्रेस के महासचिव हनुमान सहाय का कहना है कि पेंशनर्स के बकाया भुगतान के लिए रोडवेज की जमीन बेचना गलत है। इससे समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सकता। राज्य सरकार को समस्या के मूल में जाकर समाधान खोजना चाहिए।

 

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