क्रूरता का मानस

बिहार के भागलपुर जिले में बिहपुर के झंडापुर गांव में पिछले महीने एक दलित परिवार के तीन सदस्यों की बर्बरतापूर्वक हत्या कर दी गई। अपराधियों ने चार लोगों का गला रेत कर हत्या करने की कोशिश की, जिसमें तीन की मौत हो गई, जबकि एक बच्ची बिंदी पटना के अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही है। इस घटना को अंजाम देने वालों के भीतर बैठी नफरत और क्रूरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हत्या के बाद आंखेंं निकाल दी गर्इं, निजी अंगों पर प्रहार किया गया। मगर अफसोस की बात यह है कि इस बर्बर हत्या पर सरकार का कोई बयान नहीं आया, न इस बच्ची को देखने सरकारी महकमे से कोई उस परिवार से मिलने गया। बल्कि जब इस हत्या को अंजाम दिया गया, तब राज्य के मुख्यमंत्री ‘पद्मावती’ फिल्म के विवाद में उलझे हुए थे। बाद में कुछ नेताओं ने इस क्रूर हत्याकांड पर सवाल उठाए हैं, लेकिन अब भी हत्यारों का पता नहीं चल सका है। विडंबना यह भी है कि न जाने किन वजहों से टीवी मीडिया या अखबारों में इसे एक गौण महत्त्व की घटना मान लिया गया। उसके बाद, क्या मीडिया, क्या सरकार- सभी इस निर्मम हत्याकांड पर खामोश हैं।

जिस जगह इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया, वहां उसी समुदाय के सत्तर परिवार रहते हैं, लेकिन कोई भी मुंह खोलने को तैयार नहीं है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह का खौफ वहां कायम है। कुछ लोगों की मानें तो हत्या के पीछे जल-कर से जुड़ा विवाद और दलितों का समाज में आगे बढ़ना भी है। दरअसल, अब से पहले जल-कर पर ऊंची कही जाने वाली एक जाति का अधिकार था, लेकिन इस बार इसका ठेका एक दलित परिवार को मिला था। आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक साल में दलितों पर हुए हिंसक हमले की घटनाएं बढ़ी हैं। इसमें वैशाली के दलित आवासीय विद्यालय में एक लड़की से बलात्कार के बाद हत्या, भागलपुर में दलित महिला पर हमला और रोहतास में एक दलित लड़के को दबंगों द्वारा जिंदा जला दिए जाने की घटना समेत कई बड़े मामले सामने आए। एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में हर अठारह मिनट पर एक दलित के खिलाफ अपराध होता है। औसतन हर रोज तीन दलित महिलाएं बलात्कार का शिकार होती हैं, दो दलित मारे जाते हैं और दो दलित-घरों को जला दिया जाता है।

विडंबना यह है कि तमाम सामाजिक आंदोलनों के बावजूद बिहार अपनी अर्ध-सामंती संरचना से अब तक निकल नहीं पाया है। जातीय हिंसा के पीछे कुछ खास तरह के संगठनों का हाथ रहता है और उनमें से कई को परोक्ष रूप से राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त है। कितना नफरत भरा हुआ है लोगों के भीतर कि इतना बड़ा कांड हो जाता है और पीड़ित तबकों को इंसाफ नहीं मिल पाता है, अपराधियों को सजा नहीं मिल पाती है! क्या यह कहना गलत है कि यहां गरीबों पर जुल्म को कोई नहीं देखता है? क्या मीडिया का काम सिर्फ चुनाव प्रचार को ही दिखाना रह गया है?

’राकेश कुमार राकेश, पटना विवि, पटना

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