जातिगत संघर्ष: अतुल्य भारत पर एक दाग
प्राचीन वैदिक समाज को श्रम विभाजन तथा सामाजिक जिम्मेदारियों के तहत चार वर्णों में विभाजित किया गया था। कालांतर में इनसे लाखों जातियां बन गईं। प्राचीन वर्ण व्यवस्था का सही या गलत होना हमेशा से विवादित रहा है, परंतु इसमे कोई शक नही है कि पिछले कुछ सौ वर्षों से जातिगत व्यवस्था के नकारात्मक परिणामों को इस समाज ने देखा और महसूस किया और इस प्रकार जातिगत व्यवस्था के खिलाफ लोगों के मन मे दृढ़ता बढ़ती गई। आज़ादी के बाद संविधान निर्माण के समय जातिगत व्यवस्था को मिटाने के प्रयास
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