अमन के रास्ते

हर तरफ सवाल हैं, लेकिन जवाब कुछ सूझ नहीं रहा। जिन्हें जवाब देने की जिम्मेदारियां मिली हैं, उनकी खामोशी समझ में नहीं आती। ये हकीकत है आज के दौर के हमारे भारत की, जहां देश का आम नागरिक हर तरह की राजनीतिक उठापटक से दूर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी चलाने और दो जून की रोटी जुटाने में सब कुछ फरामोश किए बैठा है। दूसरी ओर, देश के नौजवानों का एक बड़ा तबका सोशल मीडिया के सहारे साजिशों के चंगुल में फंस कर नफरतों को बढ़ावा देने में जोर-शोर से लगा
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