Paris Olympics 2024: 58 की उम्र में भी दिखाया दम… पढ़िए जोश का मेगा डोज देने वालीं पेरिस ओलिंपिक की कहानियां
ओलंपिक किसी भी एथलीट के करियर का शिखर होता है. चैंपियन से लेकर उन लोगों तक जिन्होंने ओलंपिक में पहुंचने के लिए सभी बाधाओं को पार किया है और अपने करियर में एक मुकाम हासिल किया, जिसे हमेशा याद किया जाएगा. अब जब पेरिस ओलंपिक का समापन हो गया है तो जानते हैं ऐसे पांच एथलीट के बारे में जिनकी जर्नी प्रेरणादायक रही है.
मनु भाकर की कहानी
मनु भाकर भारत की सबसे कम उम्र की निशानेबाज हैं, जिन्होंने पेरिस ओलंपिक 2024 में दो निशानेबाजी मेडल जीतकर देश को गौरवान्वित किया. वह देश की आजादी के बाद से एक ही ओलंपिक में दो मेडल जीतने वाली पहली भारतीय बन गई हैं. 22 साल की भाकर ने 2020 टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था, लेकिन पिस्टल की खराबी के कारण वह जीत नहीं पाई थी. वह निराश थी.. लगभग खेल छोड़ने की कगार पर थी , लेकिन मनु ने हिम्मत नहीं हारी और मजबूत होकर वापसी करने का फैसला किया. भारत के हरियाणा के छोटे से शहर झज्जर से ताल्लुक रखने वाल मनु ने ओलंपिक 2024 पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखा और दो मेडल जीतकर इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया. मनु ने भारत के निशानेबाजी में पदक जीतने के 12 साल के इंतजार को खत्म कर दिया. भाकर समापन समारोह के लिए भारत की ध्वजवाहक भी बनी हैं. मनु भाकर की यह कहानी प्रेरणादायक रही है. मनु की जर्नी एक बार फेल होने के बाद फिर से खड़े होने के बारे में हैं.
सिमोन बाइल्स – मानसिक स्वास्थ से लड़कर फिर बनी चैंपियन
सिमोन बाइल्स इतिहास की सबसे मशहूर जिमनास्ट हैं, लेकिन टोक्यो में 2020 ओलंपिक के दौरान चीजें गड़बड़ा गईं थी. ओहियो, यूनाइटेड स्टेट्स में जन्मी सिमोन बाइल्स ने 6 साल की उम्र में अपने जिमनास्टिक करियर की शुरुआत की. 16 साल की उम्र में, उन्होंने एंटवर्प चैंपियनशिप में दो गोल्ड मेडल जीतने में सफलता हासिल की. उन्होंने ,साल 2016 में रियो डी जेनेरियो खेलों में ओलंपिक में डेब्यू किया था. सिमोन बाइल्स ने ऑल-अराउंड, टीम, वॉल्ट और फ्लोर एक्सरसाइज में गोल्ड जीत है. 2016 ओलंपिक में अविश्वसनीय प्रदर्शन के बाद, बाइल्स ने बड़ी उम्मीदों के साथ 2020 टोक्यो ओलंपिक में प्रवेश किया था. टोक्यो ओलंपिक के दौरान बाइल्स ने खुद को अप्रत्याशित मोड़ में फंसते हुए पाया. टीम प्रतियोगिता के दौरान, बाइल्स उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर सकीं और बाद में पाया गया कि उन्हें मानसिक बीमारी है. जिसे जिमनास्ट “ट्विस्टीज़” कहते हैं. यह एक मनोवैज्ञानिक घटना है जिसका जिमनास्ट अनुभव करते हैं जब वे प्रतियोगिता में अपने कौशल का प्रदर्शन करते हैं तो अपने शरीर और दिमाग को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं. हालांकि, सिमोन बाइल्स ने बहादुरी से इस स्थिति से लड़ाई लड़ी .
नेटफ्लिक्स डॉक्यू-सीरीज़ में दिखाया गया है उनके संघर्ष के कहानी को
नेटफ्लिक्स डॉक्यू-सीरीज़ राइजिंग में उनके उस समय के संघर्ष को अच्छे से दिखाया गया है. सिमोन बाइल्स ने मेंटल हेल्थ से निपटने के बाद पेरिस ओलंपिक 2024 में फिर से वापसी की और तीन गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. सिमोन बाइल्स पांच जिम्नास्टिक कौशल में पारंगत हैं, जिनमें द बाइल्स, बाइल्स (वॉल्ट), बाइल्स II (फ्लोर), बाइल्स (बीम) और बाइल्स II (वॉल्ट) शामिल हैं.
शरणार्थी मुक्केबाज का ऐतिहासिक मेडल
IOC शरणार्थी ओलंपिक टीम की एथलीट सिंडी ने पेरिस 2024 में महिलाओं की 75 किग्रा मुक्केबाजी में ब्रॉन्ज मेडल जीता. नगाम्बा का ब्रॉन्ज मेडल शरणार्थी ओलंपिक टीम के लिए 2016 में टीम के गठन के बाद से पहला ऐतिहासिक ओलंपिक पदक है.नगाम्बा ने अनुभवी प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ़ शानदार जीत हासिल की और अपना पदक सुरक्षित किया, जिसमें नॉर्थ पेरिस एरिना में कनाडा की मिडिलवेट खिलाड़ी तमारा थिबॉल्ट को हराना भी शामिल था. सच्ची कनाडाई भावना के साथ थिबॉल्ट और उनके साथियों ने नगाम्बा को गले लगाया, जो ओलंपिक मंच पर अपना पहला मुकाबला जीतने की भावना से अभिभूत थीं. यह एक ऐसा पल था जिसने हर किसी के आंखों में आंसू ला दिया. मेडल जीतने के बाद नगाम्बा ने कहा, “मेरे लिए यहां होना बहुत मायने रखता है और मुझे यकीन है कि यह दुनिया भर के लोगों के लिए बहुत मायने रखता है, यहां तक कि एथलीटों के लिए भी जो इतने सारे बाधाओं के साथ जीवन जी रहे हैं, उन्हें खुद पर विश्वास नहीं है, और उन्हें लगता है कि यह दुनिया का अंत है. बता दें कि सिंडी न्गाम्बा ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली शरणार्थी एथलीट हैं.
नगाम्बा की जीत एक ऐतिहासिक उपलब्धि है खासकर शरणार्थी एथलीटों के लिए यह किसी प्रेरणा से कम नहीं है. नगाम्बा कैमरून में पैदा हुई थीं, लेकिन 15 साल पहले इंग्लैंड चली गईं. नगाम्बा को शरणार्थी के रूप में उनकी स्थिति के कारण ब्रिटिश अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया था. ऐसा भी हुआ कि उन्हें वापस भेजने की बात हो रही थी लेकिन बाद में आखिरकार उन्हें रिहा कर दिया गया और एक लंबी, कठिन प्रक्रिया के बाद उसे शरण दी गई. 25 वर्षीय न्गाम्बा ने बार-बार ब्रिटिश नागरिकता की मांग की है, लेकिन उसे नाकार दिया जाता है. लेकिन अब पेरिस ओलंपिक में मेडल जीतकर नगाम्बा ने पूरी दुनिया को बताया है कि खुद पर विश्वास कर आगे बढने से आप अपनी जिन्दगी में कुछ भी हासिल कर सकते हैं.