चलती ट्रेन में से किया गया मुसाफिर को अगवा, रेलवे पुलिस से मदद लेने की लिए पत्नी को रेलवे पटरी पर लेटना पड़ा
चलती ट्रेन में गुंडों के गिरोह ने पहले तो मुसाफिरों को लूटा। विरोध करने पर एक मुसाफिर ओमप्रकाश सिंह को अगवा कर चलती ट्रेन की जंजीर खींच चलते बने। ट्रेन जब अगले स्टेशन बरियारपुर पहुंची तो साथ में सफर कर रही उसकी पत्नी अपने दो बच्चे और बहन को ले ट्रेन का वैक्यूम खोल रेल पटरी पर सो गई। और अपहृत पति को गुंडों के चंगुल से छुड़ाकर लाने की मांग करने लगी । ट्रेन तकरीबन एक घँटे से ज्यादा देर खड़ी रही। जब रेल पुलिस हरकत में आई और तीन किलोमीटर दूर दियारा इलाके से ओमप्रकाश को बदमाशों से छुड़ा लेकर आई। तब ट्रेन आगे रवाना हो सकी। ऐसा नजारा फिल्मों में ही देखने को मिल सकता है। पर भागलपुर -क्युल रेलखंड की यह सच्ची घटना है। इस सिलसिले में जमालपुर रेल पुलिस ने एक एफआईआर भी दर्ज किया है। ट्रेन से कूदकर भागते तीन बदमाशों को ग़ांव वालों ने पकड़कर पुलिस के हवाले भी किया है। रेल एसपी वाकए की पुष्टि करते है। और तहकीकात व फरार बदमाशों को दबोचने की बात बोलते है। वाकई बिहार में ट्रेनों का सफर किसी जोखिम से कम नहीं है। खासकर बिहार के क्युल से आसनसोल और क्युल से भागलपुर और भागलपुर से साहिबगंज रेल खंड अपराधियों का पनहागाह बना है। आए रोज हत्या , लूट और छिनतई की वारदातें होती रहती है। जीआरपी और आरपीएफ के बड़े अफसर जमालपुर और भागलपुर में बैठते है। फिर भी वारदातें काबू में नहीं है। नक्सली भी इसका फायदा लेते है।
यह वाकया 13133 अप सियालदाह-वाराणसी एक्सप्रेस ट्रेन का है। ट्रेन की सामान्य बोगी (अनारक्षित ) में दूसरे मुसाफिर के साथ साहेबगज ज़िले के तीनपहाड़ ग़ांव के ओमप्रकाश सिंह अपनी पत्नी मुन्नी देवी , साली प्रतिमा देवी और अपने दो बच्चों के साथ पटना जाने के लिए सवार हुए। ट्रेन सुबह सात बजे भागलपुर , जमालपुर , क्युल , पटना होते हुए शाम ढलते वनारस पहुंचती है। घटना सुबह 9 बजे के आसपास की है । जब ट्रेन भागलपुर से खुलकर अकबरनगर और बरियारपुर के बीच पहुंची। बताते है कि लंबे चौड़े कद काठी के छरहरे बदनवाले करीब 10 बदमाशों के गिरोह ने अपना कारनामा शुरू किया। मुसाफिरों की बैग व दूसरे सामान धारदार औजार से काट कीमती आभूषण लेने लगे। इसी क्रम में ओमप्रकाश की नजर इन गुंडों पर पड़ी। उनकी हरकतों का विरोध किया तो पहले तो वे उसपर टूट पड़े। फिर जंजीर खींच उसको हत्या की नीयत से ट्रेन से उतार साथ ले गए । दर्ज प्राथमिकी में उसके बैग से करीब 60 हजार रुपए के आभूषण लूट लेने की बात उसने लिखवाई है।
चश्मदीद उसकी पत्नी मुन्नी देवी को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने साहस के साथ बरियारपुर स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही बच्चों के साथ पटरी पर पसर गई। और ट्रेन को तबतक रोके रखा जबतक पुलिस उसके पति को बदमाशों के चंगुल से छुड़ाकर न ले आई। उसका मनोबल बरकरार रखने के लिए दूसरे मुसाफिरों ने भी साथ दिया। और नारे लगाने लगे। एक बात तय है कि मुन्नी देवी हिम्मत न दिखाती तो पता नहीं ओमप्रकाश का क्या होता। वाकई उसके जज्बे को दाद दी जानी चाहिए। जमालपुर जीआरपी एसएचओ कृपा सागर बताते है कि दियारा इलाके से एक घँटे में ओमप्रकाश को वरामद कर लिया गया। यह पुलिस के लिए राहत की बात है। इसके ठीक दो रोज पहले नक्सलियों ने क्युल-भागलपुर रेल खंड के मसुदनपुर स्टेशन के कंट्रोल पैनल को आग लगाकर फूंक डाला था। और आधी रात को वहां के एएसएम मुकेश कुमार और पोर्टल नरेंद्र मंडल को अगवा कर जंगल की ओर ले गए। तकरीबन 16 घँटे बाद आईजी सुशील खोपड़े सरीखे आला अधिकारियों के नेतृत्व में उनकी की गई घेराबंदी और दबाव की वजह से उन्हें रिहा कराया जा सका। इससे पहले 15 दिसंबर की रात दानापुर-भागलपुर इंटरसिटी ट्रेन की एक बोगी में कजरा स्टेशन के नजदीक बदमाशों के गिरोह ने मुसाफिरों से मारपीट की और लाखों रुपए लूट लिए। इसकी भी एफआईआर रेल पुलिस में दर्ज है।
थोड़े रोज पहले जमालपुर से हावड़ा 13072 ट्रेन में बिहार सैन्य बल (बीएमपी) का जवान सौरभ सफर कर रहा था। जमालपुर के बाद बरियारपुर स्टेशन पर ट्रेन रुकी। बदमाशों ने एक महिला सिपाही का मोबाइल झपट्टा मार ले भागने लगा। यह देख सौरभ ट्रेन से कूद उसे पकड़ने दौड़ा और पकड़ भी लिया। अपने साथी बदमाश को घिरता देख दूसरे बदमाश ने गोली मार सौरभ को जख्मी कर दिया। और सभी फरार हो गए। शोर होने पर जीआरपी के जवानों ने पहले रेलवे अस्पताल जमालपुर और फिर सदर अस्पताल मुंगेर में भर्ती कराया। हालात बिगड़ती देख डॉक्टरों ने उसे पटना रेफर कर दिया। पटना ले जाने के दौरान सूर्यगढ़ा के नजदीक उसकी मौत हो गई। वह उत्तरप्रदेश के बलिया ज़िले का वाशिंदा था। और औरंगावाद सैन्य बल में सिपाही था। उसे सुलतानगंज श्रावणी मेला में ड्यूटी के लिए डेपुटेशन पर भेजा गया था। बदमाशों की यह रेलवे अधिकारियों को एक तरह से खुली चुनोती है। साहेबगंज से भागलपुर क्यूल रेल खंड मालदा रेल डिवीजन में पड़ता है। मालदा से अक्सर अफसरान आते रहते है। मगर रेल खंड पर अपराध पर चर्चा तक करने की फुर्सत तक किसी को नहीं है। वाकया होने पर सभी स्तर के अधिकारी दौड़ लगाते है। यह कोई नई बात नहीं है। भागलपुर रेलवे स्टेशन के 6 नंबर प्लेटफार्म पर कुछ महीने पहले शाम ढलते ही जीआरपी जवान की हत्या कर दी थी। चेन और मोबाइल छीनने और पाकेटमारी के किस्से तो रोजाना के है।
दरअसल बरियारपुर स्टेशन का एक बड़ा गैंग है। जो इसी धंधे में लिप्त है। साहेबगंज से क्यूल के बीच यह अपना खेल करता है। इस गिरोह के 15 से 20 लड़के लंबी कद काठी के एक साथ ट्रेन के डब्बे में सवार हो मुसाफिर का सामान गायब करते है। इनके काम में दखल देने वालों को मौत के घाट उतारने में भी ये हिचकते नहीं। औमप्रकाश को अगवा करने और बीएमपी जवान सौरभ की हत्या ताजा मिसाल है।
चलती ट्रेन हो या इस रेल खंड की कोई भी स्टेशन जिस यात्री के सामान पर इस गिरोह की नजर टिक गई उसे ये गायब या सरेआम छीनकर ले लेते है। जो इस गिरोह की हरकतों से वाकिफ है वह तो चुपचाप तमाशबीन बना रहता है। जो नहीं जानता और बीच में गलती से टोकाटाकी कर दिया तो उसकी खैर नहीं। बीते दिनों बरियारपुर बैंक आफ इंडिया के प्रबंधक को बरियारपुर स्टेशन पर इस गिरोह ने जमकर पिटाई की और लहूलुहान कर स्टेशन पर छोड़ गए।डर से उनकी मदद को कोई नहीं आया। घंटों कराहते पड़े रहे।काफी देर बाद ट्रेन आने पर दूसरे लोगों ने ही चढ़ाया। ये भागलपुर से रोजाना नोकरी करने बरियारपुर जाते है। दिलचस्प बात की इस गिरोह की करतूतों का सभी को पता है। पर कोई इस पर हाथ डालने की जुर्रत नहीं करता। इसकी वजह जानकार मिलीभगत बताते है। एक बात तो तय है कि साहेबगंज से लेकर क्यूल तक के जीआरपी थाने के तैनात अफसर ट्रेनों में बोरी और पोटली की तलाश में रहते है। अब तो नीतीश सरकार ने इनकी कमाई में इजाफा का और मौका दे दिया। शराबबंदी से इनकी पांचों अंगुली घी में है। अवैध वेंडरों और स्टेशनों पर लगी अवैध दुकानों और गलत धंधेबाज इनकी मोटी कमाई का जरिया है। अब तो आरपीएफ भी इनके कान काट रही है। ऐसे में रेलवे में अपराध पर लगाम लगे तो कैसे।
बरियारपुर का बैंक कर्मचारी शुभम बताता है कि इतना ही नहीं रात के 10 बजे के बाद बरियारपुर स्टेशन पर वहां का वाशिंदा भी उतरना नहीं चाहता। या तो वह जमालपुर स्टेशन या फिर आगे भागलपुर स्टेशन पर रात गुजरना ज्यादा मुनासिब समझता है। यह गिरोह सालों से सक्रिय है। और मुसाफिरों से लूट खसोट इनका पेशा बना है। और अब ये ज्यादा हिंसक हो गए है। इसे कानून की नजर से डाका डालना भी कह सकते है। यह सच है क्यूल भागलपुर और साहेबगंज रेल खंड पर सफर करना ख़ौफ़ से भरा है। ट्रेनों की चेन कब कहां खींच रोक दी जाएगी नहीं पता। ट्रेन की खिड़की के पास बैठी महिलाओं कान के झुमके और गले की चेन और हाथों से मोबाइल तो झपट्टा मार ले भागने की वारदात तो रोजाना ही होती है। इस दौरान इन्हें चोटे भी लगती है। मगर मुसाफिरों की हिफाजत का किसी का ध्यान नहीं है। यात्री संघ इस ऒर बड़े अधिकारियों को गौर फरमाने के वास्ते ज्ञापन भी दिए है। फिर भी कोई फर्क नहीं