फ़लस्तीन को मान्यता: इसराइल भड़का, ‘नदी से समंदर तक आज़ादी’ पर बढ़ा विवाद,

स्पेन, नॉर्वे और आयरलैंड ने आधिकारिक तौर पर फ़लस्तीन को राष्ट्र के तौर पर मान्यता दे दी है.

इस क़दम को ये देश मध्य-पूर्व में चल रहे युद्ध का राजनीतिक समाधान तलाशने की कोशिश बता रहे हैं.

इन देशों को ये उम्मीद है कि साथ में उठाए इस क़दम से दूसरे यूरोपीय देशों पर भी असर होगा.

इन तीन देशों का मानना है कि राजनयिक स्तर पर उठाए इन क़दमों से ग़ज़ा में युद्धविराम और हमास से बंधकों को छुड़ाने में मदद मिल सकती है.

इसराइल ने जवाबी कार्रवाई में क्या किया

इन देशों से नाराज़ हुए इसराइल ने भी कुछ क़दम उठाए हैं.

आयरलैंड, नॉर्वे और स्पेन से इसराइल ने अपने राजदूत बुला लिए हैं. तेल अवीव में मौजूद इन देशों के राजदूतों को इसराइल ने फटकार भी लगाई है.

बीते हफ़्ते इन देशों के राजदूतों को इसराइल के विदेश मंत्रालय ने समन जारी किया था.

इन देशों के राजदूतों को बुलाकर मीडिया के सामने सात अक्तूबर 2023 को हमास के किए हमले के वीडियो दिखाए गए थे.

तीन देशों के इस क़दम से इसराइल पर राजनयिक दबाव बढ़ा है. इससे पहले दो अंतरराष्ट्रीय अदालतों ने इसराइली सेना से दक्षिणी ग़ज़ा में कार्रवाई रोकने के लिए कहा है.

इन अदालतों ने इसराइल के पीएम बिन्यामिन नेतन्याहू पर युद्ध अपराध के आरोप लगाए हैं.

कुछ पश्चिमी देश फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइली बसावट पर प्रतिबंध लगाने के लिए आगे आए हैं.

मान्यता देने के बाद की प्रक्रिया

राजनयिक स्तर पर मान्यता देने की प्रक्रिया देशों के बीच अलग-अलग होती है.

मगर सामान्य तौर पर इसके तहत रामल्ला में फ़लस्तीनी अथॉरिटी को ही स्वीकार किया जाता है और बातचीत उसके साथ शुरू होती है.

इसके बाद वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम में मौजूदा वाणिज्यिक दूतावास या मिशन आधिकारिक दूतावास बन जाता है.

इसके साथ ही इनके प्रतिनिधि पूर्ण रूप से राजदूत बन जाते हैं.

इन देशों ने फ़लस्तीन को राष्ट्र के तौर पर मान्यता उस बॉर्डर के तहत दी है, जो 1967 के युद्ध से पहले का था. यानी यरुशलम को इसराइल और फ़लस्तीन दोनों की राजधानी माना गया.

आयरलैंड की संसद में फ़लस्तीन के मुद्दे पर बहस के लिए चार घंटे रखे गए थे. इस दौरान फ़लस्तीन का झंडा आयरलैंड की संसद में फहराता दिखा.

कैबिनेट के इस प्रस्ताव को मंज़ूरी देने से पहले आयरलैंड के पीएम सिमोन हैरिस ने कहा कि ये ऐतिहासिक और ज़रूरी क़दम है.

आयरलैंड की संसद में पीएम ने क्या कहा

सिमोन हैरिस ने कहा- ”उम्मीद है कि बाक़ी यूरोपीय देश भी ऐसा करेंगे क्योंकि उन्हें वो हर क़दम उठाना चाहिए, जिससे ग़ज़ा में सीज़फ़ायर हो.”

देश की संसद में फ़लस्तीन को मान्यता देने वाले प्रस्ताव को मंज़ूरी मिलते ही हैरिस कहते हैं- ”इस क़दम से फ़लस्तीनी लोगों को उम्मीद मिलेगी कि अंधेरे से भरे इस वक़्त में आयरलैंड उनके साथ खड़ा है.”

उन्होंने कहा, ”हमारी सोच ये है कि फ़लस्तीन के पास राष्ट्र , स्व-शासन, अखंडता और सुरक्षा से जुड़े सारे अधिकार होने चाहिए. इसके साथ ही फ़लस्तीन अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के तहत अपने दायित्वों को पूरा करने में सक्षम भी होना चाहिए.”

स्पेन और नॉर्वे ने क्या कहा

नॉर्वे की ओर से फ़लस्तीन को आधिकारिक तौर पर मान्यता देने के बाद विदेश मंत्री एस्पन बार्थ ने कहा- नॉर्वे फ़लस्तीन के संबंधों में ये बहुत ख़ास दिन है.

स्पेन में भी कैबिनेट की बैठक से पहले प्रधानमंत्री पेड्रो सान्चेज़ ने कहा, ”फ़लस्तीन को राष्ट्र के तौर पर मान्यता देना ऐतिहासिक इंसाफ़ का ही मसला नहीं है, अगर हम सब शांति चाहते हैं तो ये इस वक़्त की ज़रूरत भी है .”

वो ज़ोर देते हैं कि स्पेन इसराइल के ख़िलाफ़ काम नहीं कर रहा बल्कि उस हमास के ख़िलाफ़ खड़ा हो रहा है जो दो राष्ट्र समाधान का विरोध करता है.

स्पेन के इस क़दम पर इसराइल काफ़ी नाराज़ है.

इसराइली विदेश मंत्री इसराइल काट्ज़ ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया है.

इस वीडियो में विदेश मंत्री स्पेन के प्रधानमंत्री को टैग करते हुए एक्स पर हमास के हमले का वीडियो शेयर कर तंज़ कसते हैं- आपकी सेवा के लिए हमास आपका शुक्रिया अदा करता है.

स्पेन ने इस वीडियो को निंदनीय और भड़काने वाला बताया.

ऐसे ही वीडियो काट्ज़ ने आयरलैंड और नॉर्वे के लिए भी शेयर किए.

स्पेन से इसराइल की तनातनी बढ़ी

ये विवाद तब और बढ़ गया, जब स्पेन की डिप्टी प्रधानमंत्री योलांडा डियाज़ ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि फ़लस्तीनी ”नदी से समंदर तक आज़ाद होगा.”

फ्रॉम रिवर टू द सी- ये एक राजनीतिक मुहावरा है. इसके तहत जॉर्डन नदी से भू-मध्य सागर तक के क्षेत्र को समझा जाता है. ये नारा फ़लस्तीन की आज़ादी के संदर्भ में इस्तेमाल होता है.

इस मुहावरे को कई इसराइली यहूदी विरोधी कहते हैं. इन लोगों का कहना है कि ये इसराइल को पूरी तरह से बर्बाद करने की पुकार है.

28 मई को काट्ज़ ने एक्स पर डियाज़ की तुलना हमास कमांडर मोहम्मद सिनवार और ईरान के सर्वोच्च नेता अली ख़ामनेई से की.

इसराइली विदेश मंत्री ने स्पेन के पीएम से कहा कि अगर अपने डिप्टी पीएम को कैबिनेट से नहीं निकाला तो आप यहूदी लोगों के ख़िलाफ़ जनसंहार और युद्ध अपराध को भड़काने में हिस्सा ले रहे हैं.

इसराइल इतना चिढ़ा क्यों

कई राजनयिकों को संदेह है कि इसराइल स्पेन, आयरलैंड और नॉर्वे पर इसलिए इतना ग़ुस्सा दिखा रहा है ताकि बाक़ी देश ऐसा ना करें.

सोल्वेनिया, माल्टा और बेल्जियम ने बीते महीनों में ऐसे संकेत दिए थे कि वो भी फ़लस्तीन को मान्यता दे सकते हैं. लेकिन बेल्जियम की सरकार चुनाव क़रीब आने पर इस मामले में शांत दिख रही है.

बेल्जियम के प्रधानमंत्री एलेक्ज़ेंडर डि क्रू ने कहा है कि वो तब तक इंतज़ार करना चाहते थे, जब तक दूसरे बड़े यूरोपीय देश साथ मिलकर बड़ा असर डालते हुए फ़लस्तीन को मान्यता ना दे दें.

वो बोले- प्रतीकवाद से कुछ हासिल नहीं होता.

फ़लस्तीन को मान्यता

क़रीब 139 देशों ने अब तक फ़लस्तीन को राष्ट्र की मान्यता दी है.

10 मई 2024 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में 193 सदस्यों की वोटिंग में 143 ने फ़लस्तीन को पूर्ण सदस्यता दिए जाने के पक्ष में वोटिंग की थी.

संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण सदस्यता सिर्फ़ किसी देश की हो मिल सकती है. अभी संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीन पर्यवेक्षक की ही भूमिका में है.

इसके तहत संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीन को सीट तो मिलती है लेकिन वोट करने का अधिकार नहीं मिलता है.

फ़लस्तीन को कई दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठनों की ओर से भी मान्यता दी गई है.

इनमें अरब लीग और ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉ-ऑपरेशन शामिल है.

यूरोप के कुछ देशों ने फ़लस्तीन को पहले ही मान्यता दे दी है.

इसमें सोवियत संघ के पूर्व सदस्य हंगरी, पोलैंड, रोमानिया, स्लोवाकिया, बुलगारिया, चेक रिपब्लिक जैसे देश शामिल हैं.

इन देशों ने 1988 में फ़लस्तीन को मान्यता दी थी.

लेकिन कई दूसरे यूरोपीय देश और अमेरिका ने कहा है कि वो मध्य पूर्व संघर्ष के दीर्घकालीन राजनीतिक समाधान के हिस्से के तौर पर ही फ़लस्तीन को मान्यता देंगे. BBC