पितृपक्ष 2017: 5 सितंबर से शुरू होंगे पितृपक्ष, श्राद्ध के वक्त इन बातों का रखें खास ख्याल
5 सितंबर से पितृपक्ष शुरु होने वाले हैं। हिंदू धर्म में पितृपक्ष की बहुत मान्यता है। पितृपक्ष के इन 16 दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं और जिस दिन उनके परिजानों की मृत्यु हुई होती है, उस दिन उनका श्राद्ध करते हैं। बताया जाता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध करके चुकाया जाता है। श्राद्ध आश्विन माह के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक 15 दिन के होते हैं। इसके अलावा इसमें पूर्णिमा के श्राद्ध के लिए भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को भी शामिल किया जाता है। इस तरह कुल 16 श्राद्ध होते हैं। अपने पितरों के लिए इन 16 दिनों में पिंड दान किया जाता है। इसके साथ ही इसमें ब्राह्मण भोज, तर्पण, गरीबों को दान देने का भी विधान है। कहा जाता है कि पितरों का आशीर्वाद लेने के लिए श्राद्ध में उन्हें खुश करना जरूरी होता है।
श्राद्ध का जिक्र हिंदू धर्म के शास्त्रों में भी किया गया है। श्राद्ध के वक्त की गतिविधियों किसी जानकार पंडित से करवानी चाहिए। कई बार पितर नाराज भी हो जाते हैं। ऐसे में इस दौरान सावधानियां बरतनी जरूरी हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण और मनुस्मृति के मुताबिक पितरों को पिंडदान पुत्र, भतीजा, भांजा कर सकते हैं। अगर किसी को संतान नहीं हुई है तो उनके भाई, भतीजे, चाचा और ताऊ के परिवार में से कोई भी पुरुष सदस्य पिंडदान कर सकता है।
श्राद्ध में इन बातों का रखें खास ख्याल-
-श्राद्ध में कपड़े और अनाज दान करना ना भूलें। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
-बताया जाता है कि श्राद्ध दोपहर के बाद ही किया जाना चाहिए। शास्त्रों में इसका जिक्र है कि जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लगे तो श्राद्ध का समय हो जाता है। दोपहर या सुबह में किया हुआ श्राद्ध का कोई मतलब नहीं होता है।
-ब्राह्राण भोज के वक्त खाना दोनों हाथों से पकड़कर परोसे, एक हाथ से खाने को पकड़ना अशुभ माना जाता है।
-श्राद्ध के दिन घर में सात्विक भोजन ही बनना चाहिए। इस दिन लहसुन और प्याज का इस्तेमाल खाने में नहीं होना चाहिए। गौर करने वाली बात यह भी है कि पितरों को जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां नहीं चढ़ाई जाती हैं। इनमें अरबी, आलू, मूली, बैंगन और अन्य कई सब्जियों शामिल हैं।
-श्राद्ध के दिन अपने पितरों के नाम से ज्यादा से ज्यादा गरीबों को दान करें।