Valmiki Jayanti 2017: महर्षि वाल्मीकि ने की थी संस्कृत के पहले श्लोक की रचना, जानिए क्या है
एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि बनने से पहले वाल्मीकि का नाम रत्नाकर था। रत्नाकर अपने परिवार के पालन के लिए दूसरों से लूटपाट किया करते थे। एक समय उनकी मुलाकात नारद मुनि से हुई। रत्नाकर ने उन्हें भी लूटने का प्रयास किया तो नारद मुनि ने उनसे पुछा कि आप ये काम क्यों करते हैं। रत्नाकर ने उत्तर दिया कि परिवार के पालन-पोषण के लिए वह ऐसा करते हैं। नारद मुनि ने रत्नाकर से कहा कि वो जो जिस परिवार के लिए अपराध कर रहे है और क्या वो उनके पापों का उत्तरदायी बनने को तैयार होगा? असमंजस में पड़े रत्नाकर ने नारद मुनि को पास ही एक पेड़ से बांधा और अपने घर उस प्रश्न का उत्तर जानने हेतु पहुंच गए| उन्हें जानकर बहुत ही निराशा हुई कि उनके परिवार का एक भी सदस्य उनके इस पाप का उत्तरदायी बनने को तैयार नहीं था। सबने कहा कि पाप वो कर रहे हैं तो उत्तरदायी भी वही होंगे।
घरवालों काे जवाब सुनने के बाद रत्नाकर वापस लौटे, नारद मुनि को खोला और उनके चरणों पर गिर गए। तत्पश्चात नारद मुनि ने उन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया और उन्हें परामर्श दिया कि वह राम-राम का जाप करें। राम नाम जपते-जपते ही रत्नाकर महर्षि बन गए और आगे जाकर महान महर्षि वाल्मीकि के नाम से विख्यात हुए।
महर्षि वाल्मीकि भारतीय महाकाव्य रामायण का रचयिता हैं। माना जाता है कि संस्कृत के पहले श्लोक की रचना महर्षि वाल्मीकि ने ही की थी। महर्षी वाल्मीकि के काव्य रचना की प्रेरणा के बारे में उन्होंने खुद लिखा है। हुआ यूँ कि एक बार महर्षि क्रौंच पक्षी के मैथुनररत जोड़े को निहार रहे थे। वो जोड़ा प्रेम में लीन था तभी उनमें से एक पक्षी को किसी बहेलिये का तीर आकर लग गया और उसकी वहीं मृत्यु हो गई। ये देख महर्षि बहुत ही दुखी और क्रोधित हुए। इस पीड़ा और क्रोध में अपराधी के लिए महर्षि के मुख से एक श्लोक फूटा जिसे संस्कृत का पहला श्लोक माना जाता है। वो श्लोक नीचे यूं है-
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वगम: शाश्वती: समा: ।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधी: काममोहितम् ।।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कही जाती है। रामायण एक महाकाव्य है जो कि भगवान श्रीराम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य से, कर्तव्य से, परिचित करवाता है। वाल्मीकि रामायण में भगवान राम को एक साधारण मनुष्य के रुप में दिखाया गया है। एक ऐसा मनुष्य जिन्होनें संपूर्ण मानव जाति के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया था। रामायण प्राचीन भारत और हिंदुओं का पवित्र और महत्वपूर्ण ग्रंथ है।