गुजरात चुनाव नतीजे 2017: कांग्रेस फिर क्यों हारी गुजरात? जानिए- पांच बड़ी गलतियां

22 साल से गुजरात की सत्ता से दूर रही कांग्रेस एक बार फिर चूक गई है। हालांकि, पिछले चुनावों के मुकाबले उसकी सीट में अच्छा-खासा इजाफा हुआ है। इसके साथ ही कांग्रेस के वोट प्रतिशत में भी बढ़ोत्तरी हुई है। 182 सदस्यों वाले गुजरात विधान सभा में कांग्रेस ताजा रुझानों के मुताबिक 80 सीट पाती दिख रही है। साल 2012 के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस ने 61 सीट पर जीत दर्ज की थी। इस बार के चुनावों में माना जा रहा था कि ओबीसी, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पाटीदार वोट बैंक के सहारे कांग्रेस न सिर्फ बीजेपी को कांटे का टक्कर देगी बल्कि विधानसभा में बहुमत भी हासिल करेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चुनाव की तारीखों का एलान होने से लेकर चुनाव संपन्न होने तक कांग्रेस ने ऐसी कई गलतियां की जिसका परिणाम उसे फिर से विपक्ष में बैठकर भुगतना पड़ेगा। आइए नजर डालते हैं कांग्रेस की ऐसी पांच गलतियों पर जो उसकी तथाकथित हार का कारण बनीं।

नीच कमेंट: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने दूसरे चरण की वोटिंग से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीच आदमी कहा था। कांग्रेस नेता का यह बयान बीजेपी को फायदा पहुंचा गया। पीएम मोदी ने खुद चुनावी रैलियों में इसे मुद्दा बनाया और अपने को पीड़ित, शोषित और नीची जाति में पैदा हुआ बताकर गुजराती जनमानस में गुजराती अस्मिता को जगाया। इसका नतीजा दूसरे चरण के चुनाव में दिखा। ओबीसी वोटरों में बिखराव हुआ और बड़ा हिस्सा बीजेपी के पक्ष में लामबंद हुआ।

हिन्दू-गैर हिन्दू विवाद और जनेऊ: गुजरात चुनावों के दौरान राहुल गांधी के सोमनाथ मंदिर में गैर हिन्दू बनकर प्रवेश करने पर विवाद पैदा हो गया था। हालांकि, बाद में कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सफाई पेश करते हुए राहुल गांधी को 100 फीसदी जनेऊधारी हिन्दू करार दिया लेकिन बीजेपी ने तबतक इस मुद्दे को हवा दे दी। बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने राहुल पर धर्म छुपाने का आरोप लगाया और कहा कि राहुल सिर्फ वोट बैंक के लिए गुजरात चुनाव में मंदिरों का भ्रमण कर रहे हैं। राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने तो बाकायदा उनके स्कूल-कॉलेजों का विवरण देकर बताया कि राहुल ने सभी जगह रोमन कैथोलिक बनकर एडमिशन लिया है न कि हिन्दू बनकर। इस तरह हिन्दू-गैर हिन्दू विवाद ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। हिन्दुत्व के कोर एजेंडे वाली बीजेपी ने हिन्दू मतदाताओं को कांग्रेस से बिखराव कराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

पाटीदार आंदोलन और हार्दिक पटेल: पाटीदारों को आरक्षण देने के मुद्दे पर हार्दिक पटेल ने कांग्रेस से हाथ मिलाया, इससे कांग्रेस के वोट बैंक में बढ़ोत्तरी हुई मगर बीजेपी ने उसके काट के रूप में पाटीदार नेताओं को तोड़ लिया। बाद में हार्दिक पटेल की सेक्स सीडी भी बाजार में आई। इससे हार्दिक पटेल की लोकप्रियता में तथाकथित कमी की बात कही गई। इधर, बीजेपी ओबीसी समूह को यह समझाने में कामयाब रही कि पाटीदारों को आरक्षण देकर कांग्रेस उसके ही कोटे में सेंध लगाएगी।

अडाणी-अंबानी पर वार: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान कई मौकों पर पीएम मोदी पर राजनीतिक हमले किए। इस दौरान उन्होंने अंबानी और अडाणी परिवार पर मेहरबान होने और आर्थिक लाभ पहुंचाने के आरोप लगाए। जानकारों का मानना है कि चूंकि अडाणी-अंबानी गुजरात से ही हैं, इसलिए राहुल की यह बात गुजरात के व्यापारी वर्ग को नागवार लगी होगी। लिहाजा, व्यापारी वर्ग नाराज होते हुए भी पिर से बीजेपी के पाले में चले गए।

आक्रामक प्रचार और चेहरे की कमी: गुजरात चुनाव के शुरुआती दौर में कांग्रेस की सोशल मीडिया विंग ने बड़े ही आक्रामक ढंग से प्रचार-प्रसार किया। पार्टी का स्लोगन ‘विकास पागल हुआ’ लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा लेकिन जैसे-जैसे चुनावी सरगर्मियां बढ़ने लगीं कांग्रेस की सोशल मीडिया विंग का आक्रामक अंदाज घटता गया जबकि बीजेपी का आक्रामक अंदाज चुनाव के अंतिम चरण तक लगातार बढ़ता गया। इसके अलावा कांग्रेस में राहुल गांधी को छोड़ कोई बड़ा चेहरा स्टार प्रचारक के रूप में नहीं दिखा जबकि बीजेपी में पीएम मोदी और अमित शाह के अलावा कई राज्यों के मुख्यमंत्री, तमाम केंद्रीय मंत्री और अन्य बड़े लोग चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी संभाल रहे थे।

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