प्रणब मुखर्जी ने संघ के कार्यक्रम में स्वयंसेवकों को पढ़ाया राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति का पाठ
राष्ट्रपति बनने से पहले जिंदगी भर कांग्रेस के साथ रहे प्रणब मुखर्जी गुरुवार को नागपुर में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) के मुख्यालय पहुंचे। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गुलदस्ता भेंटकर मुखर्जी का स्वागत किया। दोनों नेता संघ के संस्थापक के.बी. हेडगेवार के जन्मस्थली पर गए, जहां पूर्व राष्ट्रपति ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। यहां की विजिटर्स बुक में मुखर्जी ने हेडगेवार को ‘भारत मां का एक महान सपूत’ बताया। संघ प्रमुख के उद्बोधन के बाद प्रणब मुखर्जी ने स्वयंसेवकों को राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति के सिद्धांत के बारे में समझाया। पूर्व राष्ट्रपति ने ‘जय हिन्द, वंदेमातरम’ कहते हुए भाषण समाप्त किया।
सरल शब्दों में भारत की बहुलतावादी संस्कृति का बखान किया। उन्होंने आरएसएस काडर को बताया कि राष्ट्र की आत्मा बहुलवाद और पंथनिरपेक्षवाद में बसती है। पूर्वराष्ट्रपति ने प्रतिस्पर्धी हितों में संतुलन बनाने के लिए बातचीत का मार्ग अपनाने की जरूरत बताई। उन्होंने साफतौर पर कहा कि घृणा से राष्ट्रवाद कमजोर होता है और असहिष्णुता से राष्ट्र की पहचान क्षीण पड़ जाएगी। उन्होंने कहा, “सार्वजनिक संवाद में भिन्न मतों को स्वीकार किया जाना चाहिए।”
सांसद व प्रशासक के रूप में 50 साल के अपने राजनीतिक जीवन की कुछ सच्चाइयों को साझा करते हुए प्रणब ने कहा, “मैंने महसूस किया है कि भारत बहुलतावाद और सहिष्णुता में बसता है।” उन्होंने कहा, “हमारे समाज की यह बहुलता सदियों से पैदा हुए विचारों से घुलमिल बनी है। पंथनिरपेक्षता और समावेशन हमारे लिए विश्वास का विषय है। यह हमारी मिश्रित संस्कृति है जिससे हमारा एक राष्ट्र बना है।”
कार्यक्रम को लेकर हुए विवाद पर भागवत ने कहा, “सभी कोई इस देश में प्रणब मुखर्जी के व्यक्तित्व को जानते हैं। हम आभारी हैं कि हमें उनसे कुछ सीखने को मिला। कैसे प्रणबजी को बुलाया गया और कैसे वह यहां आए, यह बहस का मुद्दा नहीं है। संघ, संघ है, प्रणब, प्रणब हैं। प्रणब मुखर्जी के इस समारोह में शामिल होने पर कई तरह की बहस चल रही है, लेकिन हम किसी को भी अपने से अलग नहीं समझते हैं।”
मुझे समझ नहीं आता कि 1.3 बिलियन लोग 22 से ज्यादा भाषाएं और 1,600 से ज्यादा बोलियां बोलते हैं। 3 मुख्य एथनिक ग्रुप्स से आते हैं मगर एक सिस्टम, एक राष्ट्रध्वज, एक संविधान और एक पहचान, भारतीय के साथ रहते हैं। एक लोकतंत्र में, मेरा विश्वास है कि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर चर्चा बेहद जरूरी है। : प्रणब मुखर्जी, पूर्व राष्ट्रपति
जब बाल गंगाधर तिलक ने कहा, ”स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा” तो वह सिर्फ अपने लिए नहीं, भारत के हर व्यक्ति की बात कर रहे थे। ऐसा राष्ट्रवाद किसी धर्म, भाषा, समाज तक सीमित नहीं रहता। : प्रणब मुखर्जी, पूर्व राष्ट्रपति.
भारत एक राज्य था, जो कि यूरोप के राज्य के सिद्धांत से कहीं पहले था। भारत का मॉडल यूरोप के कई देशों के लिए प्रेरणा बना। हम पूरी दुनिया को एक परिवार की तरह देखते हैं और उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं। संस्कृति और भाषा में भिन्नता भारत को विशिष्ट बनाती है। हम हमारे बहुलतावाद पर गर्व करते हैं, विविधता पर इतराते हैं। : प्रणब मुखर्जी, पूर्व राष्ट्रपति