IPS को 13 साल पहले मिला वीरता पदक रद्द, NHRC ने कहा मुठभेड़ फर्जी थी, राष्ट्रपति सचिवालय ने जारी किया आदेश
मध्य प्रदेश के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी धर्मेंद्र चौधरी से पुलिस वीरता पदक वापस ले लिया गया है। इसके लिए भारत सरकार के राजपत्र में अधिसूचना भी जारी की गई है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, चौधरी को झाबुआ जिले में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद पर रहते हुए मोस्ट वॉन्टेड अपराधी लोहार को वर्ष 2002 में मुठभेड़ में मार गिराने पर 15 मई 2004 को पुलिस वीरता पदक दिया गया था। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जांच में इस मुठभेड़ को सही नहीं पाया था, लेकिन राज्य सरकार इसे मुठभेड़ ही मान रही थी।भारत सरकार के 30 सितंबर 2017 के राजपत्र में राष्ट्रपति सचिवालय की ओर से जारी अधिसूचना में धर्मेंद्र चौधरी का पुलिस वीरता पदक रद्द करते हुए उसे जब्त करने को कहा गया है।
चौधरी वर्तमान में रतलाम परिक्षेत्र में पुलिस उप-महानिरीक्षक (डीआईजी) के पद पर कार्यरत हैं। चौधरी ने गुरुवार को आईएएनएस से चर्चा करते हुए बताया कि उन्हें मीडिया से पदक रद्द करने की सूचना मिली है, उनका अभी पक्ष भी नहीं सुना गया है। विभाग के समक्ष वह अपनी बात रखेंगे। चौधरी के अनुसार, “लोहार एक बड़ा अपराधी था, उसने गुजरात, राजस्थान व मध्य प्रदेश में कई वारदातों को अंजाम दिया था। उस पर लूट सहित लगभग 14 मामले दर्ज थे और पुलिस ने उसे वर्ष 2002 में हुई मुठभेड़ में मार गिराया था।”
जब ये कथित मुठभेड़ हुई थी तो मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी। साल 2003 में हुए राज्य विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था। बीजेपी नेता उमा भारती दिग्विजय सिंह की जगह मध्य प्रदेश की सीएम बनी थीं। हालांकि अगस्त 2004 में उन्होंने गद्दी छोड़ दी और बाबूलाल गौड़ उनकी जगह सीएम बने थे