सम्मान पर सवाल
पद्म पुरस्कारों के मसले पर अक्सर उठने वाले विवादों के क्रम में इनके लिए चयन की प्रक्रिया पर सवाल उठते रहे हैं। लेकिन जब बलात्कार के किसी आरोपी का नाम इस सम्मान पर विचार के लिए भी सामने आए तो इससे अफसोसनाक और क्या होगा! गौरतलब है कि 2017 के पद्म पुरस्कारों के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को 18768 आवेदन मिले। इनमें सबसे ज्यादा यानी 4208 लोगों ने गुरमीत सिंह राम रहीम इंसा को यह सम्मान देने की वकालत की थी। यही नहीं, इस स्वयंभू बाबा ने इस पुरस्कार के लिए खुद ही पांच बार प्रस्ताव भेजा था। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि बलात्कार के आरोप में लंबे समय तक चले मुकदमे के बाद हाल ही में राम रहीम को बीस साल की सजा सुनाई गई है। इसके अलावा भी कई अपराधों में शामिल होने के आरोप उस पर हैं। सवाल है कि बलात्कार और हत्या जैसे संगीन आरोपों में मुकदमा झेल रहे किसी व्यक्ति के पक्ष में इतनी भारी तादाद में लोगों ने सम्मान की मांग करते हुए क्या सोचा होगा! संभव है कि किसी व्यक्ति का सामाजिक योगदान पटल पर दर्ज किया गया हो। लेकिन अगर वही व्यक्ति जघन्य अपराधों में भी आरोपी हो तो उसके लिए देश की प्रतिष्ठा से जुड़े सम्मान देने की मांग करने वाले लोग आखिर किस मानसिकता के होंगे!
पद्म पुरस्कार कला, साहित्य एवं शिक्षा, खेल, चिकित्सा, सामाजिक कार्य, विज्ञान एवं अभियांत्रिकी, सार्वजनिक मामले, नागरिक सेवा, व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान और असाधारण उपलब्धि के लिए दिए जाते हैं। इनका दायरा और पात्रता की परिभाषा ऐसी तय की गई है कि इनके लिए कोई भी व्यक्ति अपना आवेदन भेज सकता है और उसके लिए कोई भी सिफारिश कर सकता है। तो क्या इसी नियम का फायदा उठा कर अपात्र लोगों को भी पद्म सम्मानों से विभूषित करने की मांग कर दी जाती है या उनके पक्ष में लॉबिंग की जाती है? यानी सबसे पहले सवाल इसकी प्रक्रिया और कसौटी पर उठने चाहिए कि इस तरह के सम्मान के लिए पात्रता की शर्तें आखिर कैसे तय की गई हैं! 1954 में जब इन पुरस्कारों की शुरुआत हुई तो इसके पीछे मकसद यह था कि अलग-अलग क्षेत्र में देश का नाम रोशन करने वाले लोगों को इससे सम्मानित किया जाएगा। लेकिन आज हालत यह है कि सरकारों की मनमर्जी और सिफारिशों के बूते इन सम्मानों के लिए ऐसे व्यक्ति के भी नाम तय कर दिए जाते हैं जिनके हिस्से कोई खास उपलब्धि नहीं होती है।