रफ़ाह: फ़लस्तीनियों की वो पनाहगाह जिस पर पर इसराइल की है तिरछी नज़र.
संयुक्त राष्ट्र और पश्चिमी ताक़तों की चेतावनी के बावजूद इसराइल पिछले कई महीनों से दक्षिणी ग़ज़ा के रफ़ाह में व्यापक पैमाने पर ऑपरेशन की धमकी दे रहा है.
अगर रफ़ाह में इसराइल ने ऐसा कदम उठाया तो यहां पनाह लेने वाले लोगों पर इसके भयावह और विनाशकारी असर देखने को मिलेंगे.
फिलहाल रफ़ाह में ग़ज़ा की 22 लाख आबादी के आधे से अधिक लोग शरण लिए हुए हैं. बड़ी तादाद में लोग टेंटों और अस्थायी शेल्टर होम्स में रह रहे हैं.
लेकिन इसराइल का कहना है कि उसे यहां मौजूद हमास की बटालियनों को खत्म करना है ताकि वो इस युद्ध के मक़सद को पूरी तरह से हासिल कर सके.
सात मई को इसराइली टैंक रफ़ाह में ग़ज़ा वाले हिस्से को कब्जा करने के लिए आगे बढ़े थे. इसराइल टैंक मिस्र को पार करते हुए यहां तक आए थे. ग़ज़ा में मदद पहुंचाने के लिए ये एक अहम रास्ता है.
इससे पहले इसने एक लाख लोगों को पूर्वी रफ़ाह खाली करने को कहा था. इसराइल ने इसे सीमित मिलिट्री ऑपरेशन कहा था.
आइए रफ़ाह के बारे में जानते हैं. ये भी जानते हैं कि यहां कौन लोग शरण लिए हुए हैं और इस शहर का इतिहास क्या है?
रफ़ाह ग़ज़ा का सबसे दक्षिणी शहर है. रफ़ाह गवर्नरेट की सीमा मिस्र और इसराइल से लगती है – ये शहर ग़ज़ा-मिस्र सीमा पर ही मौजूद है.
रफ़ाह की आबादी में फिलहाल लगभग 14 लाख फ़लीस्तीनी हैं. सात अक्टूबर (इसी दिन हमास के लड़ाकों ने इसराइल पर हमला किया था) से पहले यहां हालात ऐसे नहीं थे. उस वक़्त की तुलना में यहां पांच गुना अधिक लोग रह रहे हैं.
इसी दिन इसराइल ने ग़ज़ा पर हमले किए थे. हमास के उस हमले में 1200 लोगों की मौत हो गई थी और 250 लोग बंधक बना लिए गए थे.
रफ़ाह कहां है?
रफ़ाह लगभग 60 वर्ग किलोमीटर में फैला है. जो लगभग न्यूयॉर्क के मैनहटन शहर के बराबर है.
ग़ज़ा पट्टी और मिस्र के बीच एक मात्र बॉर्डर क्रॉसिंग रफ़ाह में हैं. दशकों से इसका इस्तेमाल ग़ज़ा में सहायता सामग्री लेने जाने के लिए होता रहा है.
इसराइल हमास युद्ध से पहले सैकड़ों ट्रक हर दिन ग़ज़ा में प्रवेश करने लिए इसी पट्टी का इस्तेमाल करते थे.
पहले यहां सीमा के नीचे दर्जनों सुरंगें थी, जिनसे तस्करी होती थी. इनका इस्तेमाल इसराइल-मिस्र की नाकेबंदी के लिए किया जाता था ताकि ग़ज़ा में सहायता सामग्री न आ सके. इसने रफ़ाह को कारोबार और अर्थव्यवस्था के लिए अहम जगह बना दी.
इसराइली सेना का कहना है कि उसने मई में रफ़ाह क्रॉसिंग पर कब्जा कर लिया था. उसका कहना था कि जब क्रॉसिंग के आसपास के क्षेत्र से मोर्टार दागे गए थे और चार इसराइली सैनिकों की मौत हो गई थी तो उसने इस जगह पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था.
उसने यह भी कहा कि उसकी सेना को रफ़ाह में तीन सुरंग शाफ्ट मिले थे. इसराइली सरकार के प्रवक्ता का कहना था कि हमास क्रॉसिंग के नीचे के बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल तस्करी के लिए कर रहा था.
हालांकि मिस्र की सरकार इसराइल के इस दावे से इनकार करती है कि सीमा पार से तस्करी हो रही है. वो वर्षों से ये कहती आ रही है कि उसने सुरंगों को नष्ट कर दिया है और तस्करी खत्म कर दी है.
रफ़ाह क्रॉसिंग इतनी अहम क्यों?
फ़लस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास ने सात अक्टूबर को इरेज़ क्रॉसिंग पर हमला करके इसे बुरी तरह नुक़सान पहुंचाया था.
हमास की ओर से ये एक अभूतपूर्व हमला था जिसमें 1300 से ज़्यादा इसराइली नागरिकों की मौत हुई है.
इस हमले के कुछ दिन बाद ही इसराइल ने घोषणा की थी कि इरेज़ और केरेम शलोम क्रॉसिंग अगली सूचना मिलने तक बंद रहेगी.
ऐसे में रफ़ाह क्रॉसिंग आम फ़लस्तीनी लोगों के लिए ग़ज़ा पट्टी से बाहर निकलने का एक मात्र रास्ता बनकर रह गयी है.
ग़ज़ा पट्टी में मानवीय मदद पहुंचाने की जुगत लगा रही अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी अपने ट्रकों को इस क्रॉसिंग के ज़रिए ही ग़ज़ा के अंदर ले जा सकती हैं.
मिस्र के विदेश मंत्रालय ने पिछले हफ़्ते कहा था कि वह अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की ओर से ग़ज़ा के लिए भेजी जा रही मदद सामग्री को लेकर आ रही उड़ानों को उत्तरी सिनाई में स्थित अल-अरिश हवाई अड्डे की ओर भेज रहा है.
ऐसे में ग़ज़ा पट्टी में ईंधन और मदद सामग्री पहुंचाने के लिए दर्जनों ट्रक रफ़ाह क्रॉसिंग के बाहर कतार में खड़े हैं.
रफ़ाह क्रॉसिंग पर क्या चल रहा है?
इसराइल पर हमास के ताज़ा हमले के बाद रफ़ाह क्रॉसिंग से जुड़ी ख़बरों में विरोधाभास देखा जा रहा है.
पहले इस क्रॉसिंग पर हमास और मिस्र का नियंत्रण हुआ करता था. इस क्रॉसिंग से आने-जाने पर भी मिस्र और हमास ही नियंत्रण किया करते थे.
लेकिन इसराइल की ओर से ताबड़तोड़ बमबारी के बाद रफ़ाह क्रॉसिंग पर कामकाज बंद हो गया है.
मिस्र के मीडिया में छपी ख़बरों के मुताबिक़, इसराइल की ओर से 9-10 अक्टूबर को हुए तीन हमलों के बाद से क्रॉसिंग बंद है.
इस हमले में मिस्र और फ़लस्तीन दोनों ओर मौजूद लोग घायल हुए थे.
मिस्र की सरकार ने 12 अक्टूबर को इसराइल से कहा था कि वह रफ़ाह क्रॉसिंग के क़रीब बमबारी रोके ताकि ग़ज़ा में मौजूद लोगों तक राहत पहुंचाई जा सके.
लेकिन इसके साथ ही मिस्र ने ये स्पष्ट किया है कि वह तब तक ये क्रॉसिंग नहीं खोलेगा जब तक उसके कर्मचारियों की सुरक्षा की गारंटी नहीं दी जाती.
पश्चिमी देश भी ये सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि रफ़ाह क्रॉसिंग ग़ज़ा में मौजूद विदेशी पासपोर्ट धारकों के साथ-साथ मानवीय मदद पहुंचाने के लिए सुरक्षित मार्ग बन सके.
ब्रितानी विदेश मंत्री जेम्स क्लेवरली और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि वे इसराइल और मिस्र के साथ-साथ इस क्षेत्र की प्रमुख राजनीतिक आवाज़ों के साथ काम कर रहे हैं ताकि इस क्रॉसिंग को खुलवाया जा सके.
पिछले हफ़्ते अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि उनके नागरिकों से कहा जा रहा है कि वे रफ़ाह क्रॉसिंग की ओर बढ़ें क्योंकि “अगर ये क्रॉसिंग खुली तो काफ़ी सीमित समय के लिए खुलेगी और वहां तक पहुंचने के लिए काफ़ी कम वक़्त मिलेगा.”
इन अफ़वाहों की वजह से ग़ज़ा में रहने वाले क्रॉसिंग खुलने की उम्मीद लिए रफ़ाह क्रॉसिंग की ओर बढ़ रहे हैं.
क्या है रफ़ाह का इतिहास
रफ़ाह ग़ज़ा के सबसे प्राचीन ऐतिहासिक शहरों में से एक है. इसे फराओ, असीरियाइयों, यूनानियों और रोमनों ने जीता था.
जब इसराइल देश का एलान हुआ था तो ये 1917 से 1948 तक ब्रिटेन के कब्जे में रहा.
इसके बाद अरब युद्ध हुआ. जब लड़ाई खत्म हुई तो रफ़ाह ग़ज़ा पट्टी के बाकी हिस्सों के साथ मिस्र के कब्जे में आ गया.
इसके बाद फिर, 1967 के युद्ध में (जिसे छह दिवसीय युद्ध के तौर पर जाना जाता है) इसराइल ने शहर पर नियंत्रण कर लिया क्योंकि उसने ग़ज़ा और मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप दोनों पर कब्जा कर लिया था.
इसके साथ ही उसने वेस्ट बैंक, गोलन हाइट्स और पूर्वी यरूशलम पर अपना नियंत्रण हासिल कर लिया था.
बाद में, 1979 में, मिस्र और इसराइल के बीच एक शांति समझौता हुआ. इसके तहत सिनाई मिस्र को वापस कर दिया गया. रफ़ाह को बांट दिया गया.
इसका कुछ हिस्सा मिस्र में और कुछ हिस्सा इसराइल के कब्जे वाले ग़ज़़ा में था. इसके बीच एक कंटीले तारों की एक सीमा खींच दी गई और जो शहर के बीच से गुजरती थी और दोनों ओर के परिवारों को अलग करती थी.
ग़ज़ा के कई दूसरे हिस्सों की तरह रफ़ाह उन हजारों फ़लस्तीनियों शरणार्थियों का घर बन गया है जो खुद और अपने वंशजों की तरह 1948 के युद्ध के दौरान वहां से भाग गए थे या ऐसा करने पर मजबूर कर दिए गए थे.