RSS का दावा- शहीद राजगुरु थे स्वयंसेवक, सांडर्स की हत्या करने के बाद संघ मुख्यालय आए थे शहीद राजगुरु
आरएसएस के पूर्व प्रचारक और पत्रकार नरेंद्र सहगल ने अपनी किताब में दावा किया है कि शहीद राजगुरु आरएसएस से जुड़े हुए थे। बता दें कि राजगुरु ने भगत सिंह और सुखदेव के साथ मिलकर साल 1928 में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी सांडर्स की लाहौर में हत्या कर दी थी। इसके लिए तीनों महान स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर चढ़ा दिया गया था। नरेंद्र सहगल की इस किताब का नाम ‘भारतवर्ष की सर्वांग स्वतंत्रता’ है और इसके लेखक नरेंद्र सहगल का कहना है कि इस किताब की मदद से यह साफ करने की कोशिश की गई है कि देश की आजादी की लड़ाई में भी आरएसएस का योगदान रहा है।
किताब के एक अध्याय ‘स्वयंसेवक स्वतंत्रता सेनानी’ में सहगल लिखते हैं कि सांडर्स की हत्या करने के बाद राजगुरु आरएसएस के नागपुर स्थित मुख्यालय आए थे। सहगल के अनुसार, राजगुरु ने इस दौरान तत्कालीन आरएसएस चीफ और आरएसएस के फाउंडर केबी हेडगेवार से मुलाकात भी की थी। किताब के अनुसार, हेडगेवार ने ही राजगुरु को छिपने में मदद की थी और उन्हें सलाह दी थी कि वह अपने पुणे स्थित घर ना जाएं क्योंकि पुलिस हर जगह उनकी तलाश कर रही है। नरेंद्र सहगल ने दावा किया है कि राजगुरु आरएसएस की मोहिते बाग शाखा के स्वयंसेवक थे। किताब में नरेंद्र सहगल ने लिखा है कि राजगुरु के बलिदान पर गुरुजी (हेडगेवार) काफी दुखी हुए थे और उन्होंने अपने सहयोगियों से कहा था कि राजगुरु का बलिदान बेकार नहीं जाएगा।
वहीं जब नरेंद्र सहगल से उनके दावों की सच्चाई के बारे में पूछा गया तो उनका कहना है कि यह तथ्य आरएसएस के कुछ पब्लिकेशन्स में रिकॉर्ड है। सहगल के अनुसार, इस बात का सबसे पहले जिक्र 1960 में छपी नारायण हरि की किताब में भी है। हालांकि इतिहासकार आदित्य मुखर्जी नरेंद्र सहगल के दावे को सिरे से नकार रहे हैं। आदित्य मुखर्जी ने कहा कि एक आइकन को अपने साथ जोड़ने की यह आरएसएस की घटिया कोशिश है। इससे पहले बीआर अंबेडकर, स्वामी विवेकानंद और बाल गंगाधर तिलक के साथ भी वह ऐसा ही कर चुके हैं। जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चमन लाल, जिन्होंने एक किताब ‘भगत सिंह और उनके साथियों के दस्तावेज’ को एडिट किया है, उन्होंने भी नरेंद्र सहगल के दावों को खारिज कर दिया। वहीं नरेंद्र सहगल का कहना है कि आरएसएस कार्यकर्ताओं ने गांधीजी के संघर्ष के दौरान भी आंदोलनों में भाग लिया था, लेकिन उन्होंने संघ के बैनर का इस्तेमाल नहीं किया। साथ ही इमरजेंसी के दौरान भी बड़ी संख्या में आरएसएस कार्यकर्ताओं ने लोकनायक जयप्रकाश के आंदोलन में हिस्सा लिया था। सहगल का कहना है कि आरएसएस कार्यकर्ताओं ने संघ के नाम का इस्तेमाल नहीं किया इसका मतलब ये नहीं कि उन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में योगदान नहीं दिया।