Section 377 Verdict: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, पुलिस के सामने चुनौती- मर्दों को बलात्‍कार पीड़‍ित नहीं मानता कानून

Section 377 Supreme Court Verdict: भारतीय दंड संहिता की धारा 377 अब केवल ”असहमति से बने यौन संबंधों, नाबालिगों से बनाए गए शारीरिक संबंधों” पर लागू होगी। सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद गुरुवार (6 सितंबर) को गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने यह बात कही। केंद्र राज्‍य सरकारों से कहेगा कि वह कानून लागू कराने वाली एजंसियों को जानकारी दे कि अब वह एक ही लिंग के दो व्‍यक्तियों के बीच सहमति से निजता में बने यौन संबंधों को अपराध न माने।

अधिकारियों के अनुसार, सहमति से गे सेक्‍स को वैध करार दिए जाने से पुलिस द्वारा LGBTQI समुदाय के लोगों का शोषण रोकने में मदद मिलेगी। एक अधिकारी ने कहा, ”कई बार उन्‍हें (LGBTQI) हिंसा, ब्‍लैकमेल, धमकी का शिकार होना पड़ता है। समलैंगिक पुरुष बलात्‍कार व अन्‍य अपराधों की जानकारी देने में हिचकते हैं क्‍योंकि उन्‍हें उन्‍हीं के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया चलने का डर होता है। इसका गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।”

कई पुलिस अधिकारियों ने कहा कि शीर्ष अदालत के इस निर्णय से कई सवाल भी खड़े हुए हैं, और इस बारे में गाइडलाइंस की जरूरत है। कई ऐसे मामले मसलन, अगर एक समलैंगिक व्‍यक्ति ‘सहमति’ से इनकार करते हुए अपने पार्टनर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराता है, तब पुलिस क्‍या करेगी। यौन अपराधों के भारतीय कानून पुरुषों को बलात्‍कार पीड़‍ित नहीं मानते।

अधिकारी ने कहा, ”पुलिस को अब सहमति का सिद्धांत स्‍थापित करना होगा। बलात्‍कार के मामलों में, सहमति की ठीक से व्‍याख्‍या की गई है, मगर समलैंगिक रिश्‍तों में, कानूनी एजंसियों को उदाहरण देखने पड़ेंगे।” मंत्रालय के एक अन्‍य अधिकारी ने बताया कि कैसे इस फैसले की व्‍याख्‍या से पुलिस की कार्यशैली में बदलाव आ सकता है। उन्‍होंने कहा, ”हाल ही एक छात्र की तरफ से अपने सीनियर्स के खिलाफ शिकायत की गई थी। उसने कहा था कि उससे साल भर तक जबरन अप्राकृतिक सेक्‍स किया गया, जिससे उसे एचआईवी हो गया।” अधिकारी के अनुसार, ऐसे मामले में पुलिस को यह तय करने में बड़ी दिक्‍कत होगी कि यौन संबंध सहमति से बने थे या नहीं।

सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले के साथ इस मामले में अपने पहले के ही फैसले को पलट दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के फैसले को 2013 में पलट दिया था। पीठ ने कहा कि एलजीबीटीआईक्यू (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर/ट्रांससेक्सुअल, इंटरसेक्स और क्वीर/क्वेशचनिंग) समुदाय के दो लोगों के बीच निजी रूप से सहमति से सेक्स अब अपराध नहीं है।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि निजी जगहों पर वयस्कों के बीच सहमति से सेक्स, जोकि महिलाओं व बच्चों के लिए हानिकारक नहीं हो, को मना नहीं किया जा सकता क्योंकि यह व्यक्तिगत पसंद का मामला है। अदालत ने कहा कि समलैंगिक, हेट्रोसेक्सुअल, लेस्बियन के बीच सहमति से सेक्स पर धारा 377 लागू नहीं होगी। इसके साथ ही अदालत ने स्पष्ट किया कि बिना सहमति के सेक्स और पशुओं के साथ सेक्स धारा 377 के अंतर्गत अपराध बना रहेगा।

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