शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को गुरु के बगल में दी गई ‘महासमाधि’

कांची कामकोटि पीठ के प्रमुख शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को आज (1 मार्च) अंतिम विदाई दी गई। सुबह से महासमाधि की प्रक्रिया शुरू हुई थी, जिसके बाद महाअभिषेकम किया गया। अलग-अलग नदियों के जल से सरस्वती के पार्थिव शरीर पर अभिषेक किया गया, जिसमें गंगा, यमुना औ गोदावरी का जल था। बुधवार को सरस्वती का निधन हुआ था, जिसके बाद से अब तक तकरीबन एक लाख लोग उनके दर्शन कर चुके हैं। 82 साल के सरस्वती का स्वास्थ्य बीते कुछ दिनों से गड़बड़ चल रहा था। सांस लेने में उन्हें दिक्कत होती थी। बुधवार सुबह कांची कामकोटि पीठ द्वारा चलाए जाने वाले एक अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया था, जहां उन्हें अपनी अंतिम सांस ली। डॉक्टरों के अनुसार, हृदयाघात के कारण जयेंद्र सरस्वती का निधन हुआ। हिंदू साधुओं की परंपरा का अनुपालन करते हुए उनका पार्थिव शरीर मठ के आहाते में भी दफनाया जाएगा। शंकराचार्य का पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए मठ में रखा गया है। सरस्वती के अंतिम संस्कार में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई.पलानीस्वामी समेत दक्षिण भारत की कई नामचीन हस्तियां हिस्सा ले रही हैं। केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ का नाम भी इस सूची में है।

आपको बता दें कि आठ जनवरी 1994 में चंद्रशेखर सरस्वती के देहांत के बाद कांची कामकोटि पीठ का उन्हें 69वां शंकराचार्य बनाया गया था। मठ के प्रबंधक सुदरेश अय्यर ने इस बारे में कहा कि चंद्रशेखर की समाधि के बगल में ही उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। जयेंद्र के गुजरने पर उनके शिष्य विजयेंद्र सरस्वती उनके उत्तराधिकारी होंगे। जयेंद्र सरस्वती का जन्म 18 जुलाई 1935 को पुराने तंजावुर जिले के इरुलनीक्की में हुआ था। चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती स्वामी ने उनको अपने वारिश के तौर पर उनका अभिषेक किया था। उनको 22 मार्च 1954 को जयेंद्र सरस्वती का पदनाम प्रदान किया गया था।

दक्षिण भारत में जयेंद्र सरस्वती के काफी अनुयायी हैं। उन्होंने केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी की अगुवाई में 1998 से 2004 के दौरान भारतीय जनता पार्टी की सरकार के समय रामजन्म भूमि विवाद में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की बात कही थी। पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की सरकार के दौरान 2004 में वह विवादों में आए और कांचीपुरम के वरदराज पेरुमल मंदिर के अधिकारी शंकर रमण की हत्या के आरोप में उनको गिरफ्तार किया गया। इस मामले की सुनवाई तमिलनाडु से बाहर पुडुचेरी में हुई जहां अदालत ने 2013 में मठ के कनिष्ठ संत विजयेंद्र और 21 अन्य समेत उनको बरी कर दिया।

अगस्त 1987 में भी एक विवाद में उनका नाम आया जब जयेंद्र सरस्वती ने तत्काल मठ छोड़ने का फैसला लिया। कर्नाटक के कोडागू स्थित ताला कावेरी में 17 दिन बिताने के बाद वह मठ लौटे तो हजारों श्रद्धालुओं ने असीम श्रद्धा व उत्साह के साथ उनका स्वागत किया था। उन्होंने जन कल्याण नामक सामाजिक संगठन की नींव डाली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जयेंद्र सरस्वती के निधन पर शोक जताया।

कोविंद ने शोक जताते हुए ट्वीट कर कहा, “कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती के निधन की खबर सुनकर दुख हुआ। हमारे देश ने एक आध्यात्मिक नेता और सामाजिक सुधारक खो दिया है। मेरी संवेदनाएं उनके असंख्य शिष्यों और अनुयायियों के साथ है।” प्रधानमंत्री मोदी ने शंकराचार्य के साथ अपनी एक पुरानी तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा करते हुए शोक जताया।

मोदी ने ट्वीट कर कहा, “श्री कांची कामकोटि पीठ के आचार्य जगद्गुरु पूज्यश्री जयेंद्र सरस्वती शंकराचार्य के निधन पर गहरा दुख हुआ। वह अपनी अनुकरणीय सेवा और नेक विचारों की वजह से लाखों भक्तों के दिलो-दिमाग में जीवित रहेंगे। उनकी आत्मा को शांति मिले।” राहुल गांधी ने कहा कि वह कांची शंकराचार्य के निधन की खबर सुनकर दुखी हैं। राहुल ने ट्वीट कर कहा, “मैं कांची कामकोटि पीठ के जगद्गुरु पूज्यश्री जयेंद्र सरस्वती शंकराचार्य के निधन की खबर सुनकर दुखी हूं।”

भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री एल.के. आडवाणी ने शोक जताते हुए कहा कि उन्होंने बाबरी मस्जिद विवाद पर हिंदू और मुसलमान समुदायों के बीच कटुता को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आडवाणी ने लिखित संदेश में कहा, “मुझे जयेंद्र सरस्वती स्वामी जी को बेहद करीब से जानने का सौभाग्य मिला। अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में राजग-1 के कार्यकाल के दौरान जब मैं गृहमंत्री था, हमारा संबंध मजबूत हुआ।”

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