शोध में किया दावा, सिंदूर में मौजूद शीशा बच्चों के विकास में बाधक, आईक्यू भी होता है प्रभावित

भारत में सिंदूर का सांस्कृतिक महत्व है। शादी के बाद हर महिला अपनी मांग में सिंदूर लगाती है जो उसके शादी-शुदा होने की एक तरह की निशानी होती है। इसके अलावा पूजा-पाठ में भी देवताओं को सिंदूर चढ़ाने का रिवाज है। बहुत से लोग खासकर हिंदू परंपरा के माथे पर तिलक के रूप में भी सिंदूर का इस्तेमाल करते हैं। हाल ही में भारत और अमेरिका के एक संयुक्त अध्ययन में सिंदूर को लेकर एक शोध किया गया है। इस शोध में यह बताया गया है कि सिंदूर में असुरक्षित स्तर पर लेड की मात्रा पाई जाती है जो हमारे आईक्यू को प्रभावित करती है। इसके अलावा यह बच्चों के विकास में भी बाधा उत्पन्न करती है।

अमेरिका के रटगर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक रिपोर्ट में यह बताया कि एक ग्राम सिंदूर पाउडर में तकरीबन 1.0 माइक्रोग्राम लेड पाया जाता है। शोध के दौरान 83 प्रतिशत सैंपल अमेरिका से और तकरीबन 78 प्रतिशत सैंपल को भारत से एकत्रित किया गया था। शोध का नेतृत्व करने वाले रडबर्ग यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर डेरेक शेंडेल ने बताया कि सिंदूर में लेड की इतनी मात्रा सुरक्षित नहीं है। इसलिए लेड से मुक्त सिंदूर के अलावा सभी सिंदूर को बैन कर देना चाहिए। शोधकर्ताओं का कहना है कि सिंदूर में लेड की मात्रा को मॉनिटर करने की जरूरत है। साथ ही साथ लोगों को इसके खतरों के प्रति आगाह करना भी जरूरी है।

दरअसल यह शोध अमेरिका में सीसायुक्त सिंदूर के बिक्री तथा इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के संबंध में किया गया था। शोधकारों का कहना है कि लोगों के स्वास्थ्य से संबंधित मसला होने के नाते अमरीकी सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि सिंदूरों की विविधता की वजह से यह पता लगाना बेहद मुश्किल है कि किसमें लेड की मात्रा है और किसमें नहीं है। शोधकर्ताओं का मानना है कि अमेरिका के चार अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों से होकर भारी मात्रा में सिंदूर अमेरिका में पहुंच रहा है। शोध से जुड़े विशेषज्ञ विलियम हाल्परिन बताते हैं कि वह अपनी एक भारत यात्रा से जब अपने साथ सिंदूर लेकर लौटे थे तब उन्हें एयरपोर्ट पर कस्टम द्वारा नहीं रोका गया जबकि यह प्रोडक्ट काफी खतरनाक हो सकता है।

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