करगिल शहीद की लव स्टोरी: ब्लेड निकाला फिर उंगली काटी और प्रेमिका की मांग में भर दिया खून

20 जून 1999। आधी रात का वक्त। करगिल की लड़ाई चल रही थी। समुद्र तट से हजारों फीट ऊपर स्थित बर्फ में ढकी चोटियां गोले-बारुद और फायरिंग की आवाज से कांप जाती थीं। इंडियन आर्मी श्रीनगर-लेह मार्ग स्थित सामरिक रुप से अहम चोटी संख्या 5140 को दुश्मनों से आजाद कराने के लिए जी-जान एक किये हुए थी। सूरमाओं की इस टोली की कमान थी कैप्टन विक्रम बत्रा के हाथ में। 25 साल के इस युवा ऑफिसर की ये पहली बड़ी लड़ाई थी। हालांकि पाकिस्तानी घुसपैठिए ऊंचाई पर काबिज थे। वे वहां से भारतीय फौज की गतिविधियां देख सकते थे। लेकिन कैप्टन की टीम ने इन कमियों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। इंडियन आर्मी 5140 की चोटी पर पहुंची और दुश्मन के अड्डे को ध्वस्त कर दिया। शरीर से धाकड़ कैप्टन विक्रम बत्रा को यहां अपनी ताकत दिखाने का मौका मिला, उन्होंने आमने सामने की लड़ाई में 4 पाकिस्तानियों को मार गिराया। सुबह 3.30 बजते बजते इस चोटी पर हिन्दुस्तानी झंडा फहराने लगा।

इस जगह पर कैप्टन बत्रा का दिया वो बयान आज भी आर्मी इतिहास में अमर हो गया है, जब उन्होंने अपने कमांडर को एक कोल्ड ड्रिंक विज्ञापन की पक्तियां याद दिलाते हुए कहा था, “ये दिल मांगे मोर”। यहां पर कैप्टन की टीम ने पाकिस्तानियों से एंटी एयरक्राफ्ट गन छिन लिया था। इस लड़ाई को जीतने के बाद 7 जुलाई को कैप्टन विक्रम बत्रा को एक और चोटी पर फतह की जिम्मेदारी सौंपी गई। 17 हजार फीट ऊंची चोटी संख्या 4875 से दुश्मनों को खदेड़ने की जिम्मेदारी इंडियन आर्मी पर आई। यहां पर कैप्टन विक्रम बत्रा और उनके साथी ऑफिसर अनुज नैय्यर ने पाकिस्तानियों को छठी का दूध याद दिला दिया। आमने-सामने की लड़ाई हुई। भारतीय सेना विजय के करीब थी तभी एक जूनियर ऑफिसर लेफ्टिनेंट नवीन धमाके में घायल हो गये। कैप्टन विक्रम तुरंत उनकी मदद के लिए बंकर से आगे निकले। लेकिन उनके सूबेदार ने उनसे विनती की कि वह आगे नहीं जाएं। उनके बदले वो आगे जाएगा। पर विक्रम ने उससे कहा, “तू बाल-बच्चेदार है, हट जा पीछे।” भयानक फायरिंग के बीच कैप्टन विक्रम ने दुश्मन के पोस्ट पर ग्रेनेड फेंका। भयानक धमाका हुआ। पांच पाकिस्तानी सैनिक मारे गये। वह अपने जूनियर ऑफिसर तक पहुंच गये थे, वो उन्हें उठाने ही वाले थे, तभी एक गोली उनकी छाती में लगी। गंभीर रूप से घायल विक्रम अपने कर्तव्य को पूरा करते-करते शहीद हो गये। चोटी संख्या 4875 दुश्मनों के कैद से आजाद हो चुकी थी।

कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत को सरकार ने सर्वोच्च सम्मान से नवाजा। उन्हें सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। आइए इस कैप्टन की निजी जिंदगी में पर नजर डालें। कॉलेज लाइफ में ये लड़का गजब का हैंडसम और इंटेलिजेंट था। इसी दौर में पंजाब यूनिवर्सिटी में उसकी मुलाकात डिंपल चीमा नाम की एक लड़की से हुई। साल था 1995। दोनों एमए इंग्लिश कर रहे थे। लेकिन जैसा कि किस्मत को मंजूर था दोनों में किसी का एमए पूरा नहीं हुआ। अंग्रेजी वेबसाइट द क्विंट को दिये इंटरव्यू में डिंपल चीमा कहती है, “कितना चहक रहा था वो, उसकी बैचेनी मैं साफ-साफ याद कर सकती हूं, जब उसने मुझे ये बताने के लिए फोन किया था कि उसका चयन इंडियन मिलिट्री अकेडमी में हो गया है।” लेकिन इस खबर ने इस उनके रिश्तों के बीच भौतिक दूरी बढ़ा दी। विक्रम ट्रेनिंग के लिए चला गया। जब भी वो मिलने आता वह डिंपल को कहा करता, “जो तुम्हें पसंद है उसे पाना सीखो, नहीं तो जो तुम्हें मिलता है उसे तुम पसंद करने पर मजबूर हो जाओगी।”

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