कहानी- रतन गाइड का देश दर्शन

इए हुजूर, आइए। आपकी सेवा में रतन गाइड हाजिर है। किले का चप्पा-चप्पा जानता है, रतन गाइड। पूरी हिस्ट्री बताएगा, साहब। रतन गाइड के बिना आप किले में क्या देखेंगे? क्या जान पाएंगे? खंडहर भी बोलते नजर आएंगे, आपको मेरे साथ। पूरा जमाना देखें, मेरे साथ। इतनी दूर से आए हैं, सैंकड़ों रुपए खर्च करके, पांच रुपए रतन गाइड को दे देंगे तो आपको कोई फर्क नहीं पड़ेगा, रतन गाइड का भूखा पेट भर जाएगा। आपको दुआ देगा। वो वो बातें बताएगा कि आप किले को नहीं भूलेंगे, रतन गाइड को नहीं भूलेंगे।’

आॅटो-रिक्शा अभी पुराने किले के सामने पूरी तरह रुक भी नहीं पाया था कि झट से अपने को रतन कहने वाला गाइड किसी अवतार की तरह अवतरित हो गया। सींकिया शरीर, पिचके हुए गाल, चमकती आंखों को देखकर ऐसा लगा मानो किले के खंडहरों में से कोई भटकी हुई आत्मा नाम मात्र शरीर धारण कर चली आई है। मुंह में पान दबाए हुए भी धुंआधार भाषण, चालाक ऐसा कि किले के बारे में एक लफ्ज नहीं बताया जैसे बिन पैसे लिए सरकारी दफ्तरों में क्लर्क फाइलों का अता-पता नहीं बताते। हां, अपना रेट जरूर बता दिया। भाषण खत्म करते ही पिच्च से थूक दिया जैसे कह रहा हो कि वह बातें रतन गाइड की थीं, न करोगे तो यह मेरा अहं है-पिच्च से थूक देना और भूल जाना। आप जैसे सैकड़ों आते हैं, यहां। किला सामने है, जाइए, देख आइए। मेरे बिना बेकार पत्थरों से माथा मारने के सिवा हासिल क्या होगा?

रतन गाइड के आग्रह से यह अहसास घर कर गया कि उसके बिना किला मलबे का ढेर साबित होगा। उसे अपने साथ ले ही लिया गया। यों तब तक मक्खियों की तरह भिनकते दूसरे गाइड भी आ धमके थे, पर रतन गाइड ने सबको आंखें दिखाते कहा- रेट खराब करोगे या गाहक फोड़ोगे तो सालो मार-मार के भूसा बना दूंगा। यूनियन के कायदे-कानून में रहो। उनसे निपटते ही वह उसी तरह शुरू हो गया जिस तरह छोटे-से ब्रेक के बाद क्रिकेट खिलाड़ी मैदान में जाते ही एकदम चौके-छक्के लगाने लगा हो। मैंने कुशल गेंदबाज की तरह उसे संभालते हुए पूछा- रतन, तुम किले का चप्पा-चप्पा कैसे जानते हो?
‘लो साहब। क्या बात की? समझिए। इसी किले में चौबीसों घंटे रहता हंू। इसी किले की वजह से तो रोजी-रोटी है, इसी किले की वजह से मेरे सारे दुख हैं। दुख किले की वजह से?’
‘हां, साहब आप नहीं समझेंगे’
‘क्यों’?
‘आपको पुराना किला देखने की जल्दी है, वापस लौट कर ताज एक्सप्रेस पकड़ने की जल्दी है। आपको रतन गाइड की जिंदगी से क्या लेना-देना? आप तो हिस्ट्री जानने आए हैं पुराने किले की न कि रतन की?’
‘दुख तो कहो?

‘रतन गाइड का बाप भी गाइड था, इसी किले में अपने बाप की रोटी देने आता था। तरह-तरह के लोग देखने का शौक पैदा हो गया। जगह-जगह से लोग आते। मेरे लिए तो सारा हिंदुस्तान पुराने किले में सिमट गया। सिगरेट-बीड़ी की लत लग गई। बाप के पीछे-पीछे घूमता तो मजा आता। स्कूल से भागकर किले में पहुंच जाता। पढ़ाई छूट गई। बाप भगवान को प्यारा हो गया। इसी किले में, किले के खंडहरों में आवारा सिर पटकते-पटकते एक दिन गाइड बन गया- रतन गाइड। भला सोचिए। मेरे बाप को मुझे गाइड ही बनाना था? उसकी किस्मत में या मेरी किस्मत में बादशाह बनना क्यों नहीं लिखा? वैसे तो पांच साल बाद हम सब वोट डालते हैं-अपनी किस्मत बनाते हैं, पर फिर भी हमारे हालात क्यों नहीं बदलते? हमारी किस्मत क्यों नहीं बदलती? खैर। मैं कहां से कहां पहुंच गया। आदमी भटकते-भटकते भटकता ही जाता है। आइए। किला देखने चलें।’
कुछ कदम खामोशी के साथ चलने के बाद रतन गाइड फिर शुरू हुआ- हां, तो साहब। यह किला बड़ा मजबूत है। इसे किसी एक ने ही बल्कि तीन पीढ़िय़ों ने लगातार बनवाया था। बड़ी मजबूत नींव है, इसकी। इस किले की बात छोड़कर, थोड़ी इधर-उधर की बात कहूं तो बुरा न मानें। तीन पीढ़िय़ां अपने आजाद देश ने भी देख ली हैं।

‘यह रहा एक बड़ा गोल-सा पत्थर। गोल है एकदम। युवराज के नहाने के लिए इस्तेमाल होता था। बचपन में शहजादे इसी में नहलाए जाते थे। आपके बच्चे भी खूब शरारती हैं, देखिए। देखिए। साहब संभालिए। नहाने वाले टब का नाम सुनकर ही इसमें नहाने की जिद्द करने लगे हैं। जो, भला इनको शहजादों और खुद में फर्क ही नहीं मालूम? सब एक ही टब में थोड़े नहाते हैं। देश के सारे बच्चे बादशाह के बच्चों के बराबर लेख थोड़े लिखवा के लाते हैं। ऊपर से एक धरती पर नेता सब बच्चों के भाग एक जैसे लिखते हैं। नहीं तो रतन गाइड अपने बाप के बाद गाइड ही बनता?
‘साहब, आप मेरी बात पर मुस्कुरा रहे हैं। मेम साहब मन ही मन खीझ रही हैं कि कैसा गाइड कर लिया जो हमें पुराने किले की जानकारी देते-देते पागल ही घोषित कर रहा है। पर क्या करूं? रतन गाइड की यही तो बुरी आदत है। जीभ कट जाए तो कट जाए, जुबान पे आई हुई बात कहे बिना नहीं छोड़ता। कह कर ही दम लेता है। वैसे आप नाराज न हों तो पूछूं कि पिछले तीस-तैंतीस साल से नेता, लोगों की मूर्खता के बल पर राज नहीं कर रहे? हम लगातार मूर्ख क्यों बनते चले जा रहे हैं? क्यों हर बार थोड़ी-सी महंगाई-भत्ते की किश्तें, थोड़ी-सी राहतें हमें विचलित कर देती हैं?’
‘तो हुजूर, अगर इजाजत हो तो आगे बढूं़? हुजूर ये जो बड़े-बड़े बरामदे देख रहे हैं, ये बरामदे नहीं जनानखाने थे। रानियां, महारानियां रहती थीं, यहां। और इनके नीचे शाही कैदखाने हैं। कैदखाने देखेंगी, मेम साहब?’
‘आइए, आइए, थोड़ा आराम से। दरअसल सीढ़िय़ां टूट-फूट गई हैं। जनानखाने से सीधा कैदखाने में आ गिरे हैं। अभी देश में भी तो दो ही तरह की जिंदगी है रानियों के ऊपरी महलों जैसी ऐशो-आराम की जिंदगी, जिसके जितने किस्से बयान किए जाएंगे कम पड़ेंगे या फिर कैदखानों जैसी जिल्लतों भरी जिंदगानी, बस, बीच की सीढिय़ां गायब हैं। बिना रोटी, कपड़ा और मकान के इस देश में जिंदगी बसर करने का मतलब? कैदखाने में जिंदगानी काटने से कम तो नहीं है, साहब? नहीं तो आप ही कहिए क्या है यह जिंदगी?’
‘मेम साहब, जरा जल्दी कीजिए। बच्चे को दो घड़ी गोदी में उठा लीजिए ताकि आप आराम-चैन से मेरी बातें सुन सकें। बड़ी बारीक बाते हैं, मेरी। हां तो हुजूर, माई-बाप, आपने सुना होगा कि अपने आखिरी वक्त तक आखिरी दम तक शाहजहां खिड़की में से ताजमहल को हसरत भरी निगाहों से ताकता रहा। क्यों? ठीक है न?’

खिड़की तो जनाब यह रही पर जरा सोचिए और ध्यान से देखिए कि बूढ़ी, गम खाई आंखें इतनी दूर ताजमहल को कैसे देख पाती होंगी? इस सवाल का जवाब है तो सिर्फ रतन गाइड के पास। दूसरे गाइड क्या खाकर बताएंगे, चुप साध जाएंगे, हां। क्यों भला? गाइड थे मेरे पिता, मेरे दादा और मैं। रग-रग में बसा है यह किला, इसकी एक-एक ईंट की शिनाख्त हो चुकी है। इस ताजमहल का अक्स घंटों शाहजहां देखा करता था, पागलपन की हद तक उसी अक्स को चूमा करता था, उसी अक्स के सहारे जीता था। हीरे तो बाद के बादशाह लूट-फूट कर ले गए अब बाकी कहानियां रह गईं। सच कह रहा हूं हंसिए मत। यकीन कीजिए। यदि ऐसा न होता तो। खैर। न आप थे, न मैं था पर ये हीरे आज भी मौजूद हैं।

‘लीजिए हुजूर, यह है मस्जिद। यह छोट-सा जो दरवाजा देख रहे हैं, पहले नहीं था। चक्कर काट कर बाहर आना पड़ता था। शाहजहां को बादशाह का मुमताज के प्रति अति प्रेम ऐसा था कि हर पल ताजमहल आंखों के सामने देखते रहना चाहता था। इबादत के बाद चक्कर काटकर ताजमहल देखना बहुत नागवार लगता था। खुदा की इबादत के बाद महबूब की इबादत करना चाहते थे। तो हुजूर, यह दरवाजा बनाया गया। अब देखिए, पहला कदम मस्जिद से बाहर और सामने है ताजमहल यानि महबूब यानि दीदार-ए-महबूब।झ् और हां, एक महत्त्वपूर्ण बात बताऊं, आपको। बादशाह औरंगजेब बिना मेहनत के रोटी न खाते थे, न किसी को खाने देते थे। खुद चनों पर गुजारा करते थे। उन्होंने अपने बाप शहजहां से पूछा कि बताओ, आप क्या काम कर सकते हैं? शाहजहां ने कहा कि शहजादों को पढ़ाने का काम कर सकता हूं लेकिन यह काम उन्हें नहीं सौंपा गया। बादशाह औरंगजेब समझ गए कि यह बड़ा खतरनाक इरादा है। इस तरह पढ़ाई के बहाने बूढ़ा कैदी बादशाह, बेशक मेरा बाप है, मेरे शहजादों को ही मेरे खिलाफ पढ़ा देगा। नहीं, नहीं, आपको कोई काम नहीं मिलेगा। जरा देख लीजिए, अपने विश्वविद्यालय। वहां सत्ता से हटकर कोई उपकुलपति है? रतन गाइड बेशक स्कूल से सात-आठ दर्जे पार करके कॉलेज नहीं पहुंचता तो क्या, सारी खबर रखता है। आपको बताया न, सारा हिंदुस्तान इसी किले में नजर आता है। आइए, आगे चलें। आपके मतलब की बात करें।’
‘हां तो हुजूर, नीचे जो खाली आंगन लगता है, जहांगीर के जमाने में वह बहुत सुंदर तालाब हुआ करता था और तालाब में बहुत सारी मछलियां होती थीं। यहां बैठकर बादशाह जहांगीर अपनी प्यारी बेगम नूरजहां के साथ मछली का शिकार खेलते थे। मुकाबला होता था और सोचिए, भला कौन जीता करता था?’
‘नूरजहां।’

 ‘खूब बताया आपने, मेम साहब। बादशाह को तालाब की मछलियों से क्या काम? उसके लिए तो नूरजहां ही एक मछली थी। वह उसी में खोया रहता और नूरजहां शिकार फंसा लेती। मछली का शिकार खेलने आया बादशाह बेगम के नैनबाणों से आहत होकर उसके कदमों में गिर जाता, उसके जाल में फंसा रहता।’
आखिरी बात बताऊंगा, फिर बात खत्म। यूं है कि बादशाह जहांगीर का कबूतर पालने का बड़ा शौक था। तो एक बार बादशाह अपनी प्यारी बेगम नूरजहां को दो बहुत बढिय़ा नस्ल के कबूतर पकड़ा कर गया और बोल गया कि इन्हें संभालना, हम अभी आते हैं। अब हुआ क्या, हुजूर, कि नूरजहां बेगम के हाथ से एक कबूतर उड़ गया। बादशाह जहांगीर थे बड़े गुस्सैल। आए और गुस्से में पूछा-हमारा दूसरा कबूतर कहां है?’
बेगम ने डर से कांपते हुए कहा- ‘उड़ गया।’
‘हम पूछते हैं उड़ कैसे गया?’
बेगम ने दूसरा कबूतर उड़ाते हुए कहा- ‘ऐसे हुजूर।’
‘बेगम के भोलेपन पर, मासूमियत पर बात की बात में बात में बादशाह का गुस्सा रफा-दफा हो गया।’
और इसके साथ ही आ पहुंचे उसी बड़े फाटक पर जहां से हम चले थे। हुजूर, माई-बाप कहते हैं कि ये किले इसलिए संभालकर रखें हैं कि हमें मालूम रहे कि हम क्या थे, क्या हो गए हैं। किले आज भी हमारी गुलामी की कहानी कहते हैं। किले आज भी हमारी मूर्खता की कहानी कहते हैं।
खैर। वो रहा आपको आॅटो रिक्शा। जाइए, ताज-एक्सपे्रस का समय हो रहा है। आपको इन बातों से मतलब। रात गई, बात गई। हो सके तो रतन गाइड को याद रखिएगा। रतन गाइड की बातें गलत लगी हों तो कहिए, मुंह पे कहिए-साफ-साफ।
अच्छा हुजूर पैसा मिला तो रतन गाइड बंद हुआ। अच्छा मेम साहब, बच्चा लोग सबको रतन गाइड का सलाम। ०

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