सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फ़ैसले में समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने से किया इनकार


धारा 377 फैसला, Section 377 Supreme Court Verdict in Hindi: सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 377 पर ऐतिहासिक फैसला दिया है। मुख्‍य न्‍यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने धारा 377 को अतार्किक और मनमाना करार दिया है। संविधान पीठ ने स्‍पष्‍ट शब्‍दों में कहा कि LGBT समुदाय को भी अन्‍य नागरिकों की तरह जीने का हक है। उन्‍हें भी दूसरे लोगों के समान ही तमाम अधिकार प्राप्‍त हैं। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने से इनकार कर दिया। बता दें कि फिलहाल धारा 377 में समलैंगिक संबंधों के खिलाफ बेहद सख्‍त प्रावधान हैं। इस धारा में दोषी पाए जाने पर 14 साल जेल की सजा से लेकर आजीवन कारावास तक का प्रावधान है।

फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने टिप्‍पणी की, ‘किसी को भी उसके व्‍यक्तिगत अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है। समाज अब व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता के लिए बेहतर है। मौजूदा मामले में विवेचना का दायरा विभिन्‍न पहलुओं तक होगा।’ मुख्‍य न्‍यायाधीश ने वर्ष 2013 में दिए गए सुरेश कौशल जजमेंट को भी पीछे धकेलनेवाला करार दिया। साथ ही कहा कि निजी तौर पर की जाने वाली अंतरंगता (इंटिमेसी) निहायत ही व्‍यक्तिगत पसंद का मामला है।

बता दें कि प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं सहित विभिन्न पक्षों को सुनने के बाद 17 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इस संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा भी शामिल हैं। पहले याचिकाओं पर अपना जवाब देने के लिए कुछ और समय का अनुरोध करने वाली केन्द्र सरकार ने बाद में इस दंडात्मक प्रावधान की वैधता का मुद्दा अदालत के विवेक पर छोड़ दिया था।

तब केन्द्र ने कहा था कि नाबालिगों और जानवरों के संबंध में दंडात्मक प्रावधान के अन्य पहलुओं को कानून में रहने दिया जाना चाहिए। धारा 377 ‘अप्राकृतिक अपराधों’ से संबंधित है जो किसी महिला, पुरुष या जानवरों के साथ अप्राकृतिक रूप से यौन संबंध बनाने वाले को आजीवन कारावास या दस साल तक के कारावास की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। शीर्ष अदालत ने डांसर नवतेज जौहर, पत्रकार सुनील मेहरा, शेफ रितु डालमिया, होटल कारोबारी अमन नाथ तथा केशव सूरी, आयशा कपूर तथा आईआईटी के 20 पूर्व एवं वर्तमान छात्रों द्वारा दायर रिट याचिकाएं सुनी थीं।

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