कर्नाटक संकट पर सुप्रीम कोर्ट में जोरदार सुनवाई, पक्ष-विपक्ष में दिए गए ये तर्क

उच्चतम न्यायालय में आज कर्नाटक संकट पर ‘ हाई वोल्टेज ’ सुनवाई हुई। इस दौरान कांग्रेस – जेडीएस गठबंधन तथा भाजपा ने एक – दूसरे पर खरीद – फरोख्त के आरोप लगाए और दोनों ने अपने पास बहुमत होने का दावा किया। गठबंधन ने आरोप लगाया कि राज्यपाल वजुभाई वाला ने सरकार बनाने के लिए भाजपा को आमंत्रित कर सही नहीं किया जिसके पास कांग्रेस – जेडीएस गठबंधन से कम विधायक हैं। हालांकि भाजपा ने दलील दी कि कांग्रेस – जेडीएस द्वारा दिया गया विधायकों के समर्थन वाला पत्र विवादित हो सकता है।

शुरुआत में , भाजपा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि पार्टी का समर्थन कर रहे विधायकों का नाम राज्यपाल को देने की कोई आवश्यकता नहीं है और पार्टी के नेता द्वारा उनके नाम का खुलासा किए जाने की कोई जरूरत नहीं है। रोहतगी ने कहा, यह सदन में किया जा सकता है। हमारे अनुसार हमारे पास पूरा समर्थन है। यह राज्यपाल का विशेषाधिकार है कि वह उस पार्टी के मुख्यमंत्री को शपथ दिलाएं जिसके बारे में उन्हें लगता है कि वह राज्य में स्थिर सरकार उपलब्ध करा सकती है।
न्यायमूर्ति ए . के . सिकरी , न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने कहा कि इस बारे में कोई संदेह नहीं है , लेकिन यहां केवल यह सवाल है कि एक तरफ एक व्यक्ति है जिसने राज्यपाल के समक्ष बहुमत होने का दावा किया है , वहीं दूसरी ओर दूसरा व्यक्ति है जिसने विधायकों के नाम के साथ बहुमत होने का दावा किया है।

पीठ ने कहा , ‘‘ हमें इस बारे में फैसला करना है कि राज्यपाल ने किस आधार पर बी के मुकाबले ए या ए के मुकाबले बी को आमंत्रित किया। सुनवाई के बाद के हिस्से में इसने कहा , ‘‘ ऐसे उदाहरण हैं जब अदालतों ने 24 या 48 घंटे में शक्ति परीक्षण कराने के आदेश दिए। भाजपा ने शक्ति परीक्षण के लिए जहां सोमवार तक का समय मांगा , वहीं कांग्रेस – जेडीएस गठबंधन ने आज या फिर कल शक्ति परीक्षण कराए जाने का आग्रह किया। दोनों ओर से वकीलों ने एक – दूसरे की दलीलों को काटने की कोशिश की। न्यायालय की मदद के लिए अटॉर्नी जनरल के . के . वेणुगोपाल भी मौजूद थे।

रोहतगी और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता क्रमश : भाजपा , येदियुरप्पा और कर्नाटक की ओर से पेश हुए। कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ताओं-अभिषेक मनु सिंघवी, कपिल सिब्बल और पी. चिदंबरम ने किया जिन्होंने रोहतगी की दलीलों को खारिज करते हुए जवाबी दलीलें दीं। रोहतगी ने कहा कि राज्यपाल केवल दावे के आधार पर कार्रवाई नहीं कर सकते, उन्हें जमीनी हकीकत, स्थिरता कारक और सत्तारूढ़ पार्टी को उखाड़ फेंकने वाले चुनाव का परिणाम देखना होता है। उन्होंने कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के नेता एचडी कुमारस्वामी द्वारा राज्यपाल को सौंपे गए पत्रों में से एक में विधायकों के हस्ताक्षर पर सवाल उठाए।

रोहतगी ने कहा, ‘‘कांग्रेस के एक विधायक आनंद सिंह ने पत्र में हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए विधायकों की सूची में हस्ताक्षरों पर विचार करने का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने कहा कि यह संविधान के तहत राज्यपाल का विशेषाधिकार है और उन्हें विभिन्न पहलुओं तथा जमीनी हकीकत पर विचार करने के बाद अपने विवेक से काम करना होता है। न्यायालय ने कहा कि सवाल केवल यह है कि क्षेत्र में प्रवेश का पहला अधिकार किसका है।

पीठ ने कहा, ‘‘सरकारिया आयोग ने क्रम स्थापित किया था और कहा था कि यदि पार्टी के पास पूर्ण बहुमत है तो अन्य से ऊपर उसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि आखिरकार संख्या ही मायने रखती है। इसके अलावा यदि पार्टी के पास बहुमत नहीं है और चुनाव पूर्व गठबंधन के पास बहुमत है तो सरकार के गठन के लिए उसे बुलाया जाना चाहिए। इसने कहा कि विभिन्न पहलुओं-जैसे कि पार्टियों ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा हो, आम मतदाता की भावना, को ध्यान में रखकर चुनाव बाद गठबंधन को क्रम में नीचे स्थान दिया गया।

पीठ ने कहा, ‘‘अंतत: यह शक्ति परीक्षण सदन में ही होता है कि बहुमत किसके पास है। न्यायालय ने कहा कि इस पर चर्चा होनी चाहिए कि क्या राज्यपाल ने चुनाव बाद गठबंधन की जगह सबसे बड़ी पार्टी को आमंत्रित कर सही किया। सिंघवी ने कहा कि सवाल यह है कि क्या राज्यपाल ने उस पार्टी को आमंत्रित कर सही किया जिसके पास बहुमत रखने वाले गठबंधन से कम संख्या है। उन्होंने कहा कि मतगणना प्रक्रिया पूरी होने और निर्वाचन आयोग द्वारा विधायकों को प्रमाणपत्र दिए जाने से पहले ही येदियुरप्पा ने 15 मई को शाम पांच बजे राज्यपाल को पहला पत्र लिख दिया। सिंघवी ने कहा, ‘‘उस समय यह स्पष्ट नहीं था कि किसके पास बहुमत है और ऐसे में येदियुरप्पा उस समय राज्यपाल को लिखे अपने पत्र में बहुमत का दावा नहीं कर सकते थे। न्यायालय ने कहा कि कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के पास कहने के लिए बहुत सी चीजें हैं और दूसरे पक्ष के पास भी कहने के लिए बहुत सी चीजें हैं।

इसने कहा, ‘‘यह उचित होगा यदि हम कल शक्ति परीक्षण कराने का आदेश दें जिससे कि मौजूदा स्थिति में किसी को भी पर्याप्त समय न मिले क्योंकि यदि हम दलीलें सुनना जारी रखते हैं तो इसमें कुछ समय लगेगा। हम स्थिति की संवेदनशीलता को समझते हैं, इसलिए हम कल शक्ति परीक्षण कराने का आदेश देते हैं और पुलिस महानिदेशक को सभी विधायकों को सुरक्षा उपलब्ध कराने तथा शक्ति परीक्षण की वीडियोग्राफी कराने का निर्देश देते हैं जैसा कि हमने झारखंड के मामले में किया।’’ न्यायालय ने कहा कि कानून और संविधान के नियम का महत्व बरकरार रखना अदालतों का दायित्व है।

सिब्बल ने कहा कि राज्यपाल अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे क्योंकि उनके समक्ष विधायकों के हस्ताक्षर रखे गए थे। रोहतगी ने कहा कि सरकारिया आयोग ने शक्ति परीक्षण के लिए 30 दिन की सिफारिश की है, लेकिन राज्यपाल ने केवल 15 दिन दिए। उन्होंने कहा, ‘‘न्यायालय को शक्ति परीक्षण के लिए कल की जगह एक उचित समयावधि देनी चाहिए क्योंकि चुनाव जीतने वाले उम्मीदवारों को राज्य के विभिन्न हिस्सों से आना है। उन्हें अपने दिमाग का इस्तेमाल करना है, इसलिए एक उचित समायावधि दी जानी चाहिए। चिदंबरम ने सदन में आंग्ल-भारतीय सदस्य से संबंधित मुद्दा उठाया। मेहता ने कहा कि उनके पास सूचना के अनुसार इस तरह का कोई मनोनयन नहीं किया गया है।

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