वंदे मातरम’ कहने का पहला हक सफाईकर्मियों को: प्रधानमंत्री

खानपान खाकर इधर-उधर थूकने वालों और कूड़ा कचरा फेंकने वालों को फटकार लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश में ‘वंदे मातरम’ कहने का सबसे पहला हक सफाई कार्य करने वालों को है। खानपान विवाद पर मोदी ने कहा कि यह हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। शिकागो में स्वामी विवेकानंद के संबोधन की 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर सोमवार को यहां समारोह में प्रधानमंत्री ने कहा कि जब वंदे मातरम कहते हैं, तब भारत भक्ति का भाव जागृत होता है। लेकिन मैं इस सभागार में बैठे लोगों के साथ पूरे हिंदुस्तान से पूछना चाहता हूं कि क्या हमें वंदे मातरम कहने का हक है? मैं जानता हूं कि मेरी यह बात कई लोगों को चोट पहुंचाएगी। लेकिन मैं फिर भी कहता हूं, पचास बार सोच लें कि क्या हमें वंदे मातरम कहने का हक है? मोदी ने कहा, ‘हम पान खाकर भारत माता पर पिचकारी करते हैं और फिर वंदे मातरम कहते हैं। सारा कूड़ा कचरा भारत माता पर फेंक देते हैं और फिर बंदे मातरम बोलते हैं। इस देश में वंदे मातरम कहने का सबसे पहला हक अगर किसी को है, तो वे देश भर में सफाई कार्य करने वाले हैं। यह हक भारत माता की उन सच्ची संतानों को है जो सफाई कार्य करते हैं।

‘वन एशिया’ के स्वामी विवेकानंद के संदेश को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है। उन्होंने कहा कि आज विदेश नीति के बारे में ढेर सारी चर्चा होती है, यह खेमा, वह खेमा, यह ग्रुप, वह ग्रुप। शीत युद्ध काल का बाकी पेज 8 पर समूह। लेकिन आज से 120 साल पहले स्वामी विवेकानंद ने ‘वन एशिया’ का विचार दिया था। विश्व जब संकटों से घिरा हो तो उस समय समाधान का रास्ता निकालने की ताकत ‘वन एशिया’ में से होगी। देश में खानपान को लेकर जारी बहस के बीच मोदी ने स्वामी विवेकानंद के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि क्या खाएं, क्या नहीं खाएं यह विषय हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं हो सकता और हम समयानुकूल परिवर्तन के पक्षकार हैं। मोदी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने दुनिया को स्पष्ट किया कि क्या खाएं , क्या नहीं खाएं…यह हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं हो सकता, यह सामाजिक व्यवस्था के तहत आ सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि वे कॉलेजों में छात्रों द्वारा मनाए जाने वाले ‘रोज डे’ के विरोधी नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि हमें रोबोट नहीं बनाने हैं बल्कि रचनात्मक प्रतिभा को बढ़ावा देना है।

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