गुजरात चुनाव: ये है राहुल गांधी की टीम, सर्वे नतीजे से बढ़ा है इनका हौसला
गुजरात विधान सभा चुनाव के पहले चरण के लिए चुनाव प्रचार का शोर थम चुका है। अब सभी राजनीतिक दल के उम्मीदवार डोर-टू डोर कैम्पेन में जुट चुके हैं। इन सबके बीच कांग्रेस के उम्मीदवार और नेता इस बात को लेकर उत्साहित हैं कि उनका प्रदर्शन पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार बेहतर होगा। वैसे सभी ओपिनियल पोल और चुनावी सर्वे में भी इस बात को पुख्ता तौर पर बताया गया है कि कांग्रेस की न सिर्फ सीटें बढ़ेंगी बल्कि उनके वोट शेयर में भी बढ़ोत्तरी होगी। करीब-करीब सभी सर्वे ने बताया है कि कांग्रेस करीब 70-75 सीटों पर जीत दर्ज करेगी।
दरअसल, पिछले 22 सालों से सत्ता से दूर रही कांग्रेस की स्थिति आज गुजरात में पहले से अच्छी हुई है तो इसके पीछे राहुल गांधी और उनकी टीम का हाथ है। इसके लिए सिर्फ ओबीसी नेताओं की लामबंदी, पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और दलिता नेता जिग्नेश मेवानी का समर्थन हासिल करना और अल्पेश ठाकोर को साथ कर लेना काफी नहीं है। कांग्रेस की कोर कमेटी ये ये पांच चेहरे ऐसे हैं जिन्होंने आज कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले में ला खड़ा किया है। आइए उन पांच कांग्रेसी नेताओं पर नजर डालते हैं जिन्होंने गुजरात चुनाव को रोचक बनाने में भूमिका निभाई है।
1- भरत सिंह सोलंकी (64), गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष- भरत सिंह सोलंकी राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व विदेश मंत्री माधव सिंह सोलंकी के बेटे हैं। माधव सिंह सोलंकी चार बार गुजरात के सीएम रहे थे। माधव सिंह सोलंकी ने कांग्रेस को 1985 में राज्य की 149 सीटों पर रिकॉर्ड जीत दिलायी थी। माना जाता है कि माधव सिंह सोलंकी ने ओबीसी, दलित, आदिवासी और मुसलमानों को एकजुट करके ये जीत हासिल की थी। उनके बेटे भरत सिंह इस समय ओबीसी, दलित, आदिवासी और पाटीदार वोटों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं। भरत सिंह सोलंकी साल 2006 में गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। इसके बाद साल 2007 में हुए विधान सभा चुनाव में कांग्रेस साल 2002 के शर्मनाक प्रदर्शन से उबरी थी। एक विवादित वीडियो सामने आने के बाद उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा था। साल 2015 में उन्हें दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। भरत सिंह सोलंकी तीन बार विधायक और दो बार सांसद रह चुके हैं। भरत सिंह सोलंकी केंद्रीय राज्य मंत्री भी रह चुके हैं। साल 2014 में वो मोदी लहर में गुजरात के आनंद से लोक सभा चुनाव हार गये थे।
2- शक्ति सिंह गोहिल (57)- अहमद पटेल को राज्य सभा चुनाव जिताने में गुजरात कांग्रेस के नेता शक्ति सिंह गोहिल की अहम भूमिका मानी गयी थी। चार बार विधायक रह चुके शक्ति सिंह गोहिल के दादा दरबार साहब रंजीत सिंह आजादी की लड़ाई में शामिल रहे थे। उनके दादा 1967 में गुजरात से विधायक भी चुने गये थे। पेशे से वकील गोहिल साल 2012 में विधान सभा चुनाव हार गये थे लेकिन साल 2014 में हुए विधान सभा उप-चुनाव में वो चौथी बार विधायक बने। 1990 में पहली बार विधायक बनने वाले गोहिल महज 30 साल की उम्र में मंत्री बन गये थे।
3- परेश धनानी (41)- पटेल नेता परेश धनानी को पार्टी में संकटमोचक माना जाता है। किसान परिवार से आने वाले परेश धनानी को राजनीति में लाने का श्रेय पूर्व केंद्रीय मंत्री मनुभाई कोटाडिया को दिया जाता है। अमरेली विधान सभा से साल 2002 में कृषि मंत्री पुरषोत्तम रुपला को हराकर उन्होंने प्रदेश की राजनीति में सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया था। उस समय वो अमेरिली जिले के युवा कांग्रेस के प्रमुख थे। साल 2007 में वो चुनाव हार गये लेकिन साल 2012 में वो फिर जीत गये। इस बार उन्होंने राज्य सरकार के तत्कालीन मंत्री दिलीप संघानी को हराया था। धनानी गुजरात कांग्रेस के महासचिव रह चुके हैं। अभी वो अखिल भारतीय कांग्रेस में सचिव हैं। पाटीदार समाज से आने वाले धनानी राहुल गांधी के रोडशो में अहम भूमिका निभाते हैं। गुजरात राज्य सभा चुनाव के दौरान भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। धनानी इस चुनाव में भी अमरेली से ही उम्मीदवार हैं।
4- सिद्धार्थ पटेल (63), कांग्रेस प्रचार समिति के प्रमुख- सिद्धार्थ पटेल गुजरात के पूर्व कांग्रेसी सीएम चिमनभाई पटेल के बेटे हैं। सिद्धार्थ पटेल कांग्रेस में पाटीदार समाज के चेहरे हैं। माना जा रहा है कि पटेल दाभोई विधान सभा से चुनाव लड़ेंगे। वो 1998 से इसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्हें दो बार इस सीट से जीत मिली और दो बार हार। साल 2008 में वो गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे। वो 1998 से 2002 तक गुजरात विधान सभा में पार्टी के मुख्य सचेतक भी रह चुके हैं। गुजरात विश्वविद्याय से गोल्ड मेडल के साथ स्नातक पटेल ने यूनिवर्सिटी ऑफ डलास से एमबीए किया है। साल 2012 में वो दाभोई विधान सभा सीट से चुनाव हार गये थे।
5- अर्जुन मोधवाडिया (60)- गुजरात मैरीटाइम बोर्ड के पूर्व इंजीनियर अर्जुन 1997 में राजनीति में आए। साल 2002 में उन्होंने पोरबंदर से पहला विधान सभा चुनाव लड़ा और बीजेपी के वरिष्ठ नेता बाबू बोखिरिया को हराया। साल 2004 से 2007 तक वो गुजरात विधान सभा में विपक्ष के नेता रहे। साल 2007 में उन्होंने दोबारा पोरबंदर सीट से जीत हासिल की। साल 2011 में उन्हें गुजरात कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। साल 2012 के गुजरात विधान सभा चुनाव में उनके नेतृत्व में पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के अनुरूप नहीं रहा। साल 2012 में अर्जुन को बाबू बोखिरिया के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। इस साल भी यही दोनों नेता पोरबंदर सीट से आमने-सामने होंगे।