सृजन पर मेहरबान रहे भागलपुर के दो पूर्व डीएम चुनाव भी लड़े, क्या घोटाले के पैसे का चुनावी खर्च से है संबंध?

भागलपुर के जिलाधीश रह चुके दो आईएएस बिहार में चुनाव लड़ चुके है। जिनकी खास मेहरबानी सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड पर रही। इनके बाद आए डीएम ने भी उदारता दिखाई । तभी सरकार के करोड़ों रुपए सृजन के जरिए सुनियोजित तरीके से लोगों ने डकार लिए । सभी आलाधिकारियों ने नाजिर, बैंक और सृजन के भरोसे खजाने को छोड़ दिया। अब उपविकास आयुक्त रहे करीब एक दर्जन अफसरों, डीआरडीए के निदेशक रहे एक दर्जन से ज्यादा अधिकारियों, कल्याण महकमा के और नजारत प्रभारी रहे अधिकारियों व भूअर्जन के विशेष अधिकारी रहे एक दर्जन से ज्यादा अफसरों को अपने कार्यकाल के दौरान का लेखाजोखा और फर्जीवाड़े में अपना पक्ष रखने के बाबत डीएम ने अपने स्तर से पत्र भेजा है। मगर इस दौरान डीएम रह चुके आईएएस अफसरों को कौन तलब करेगा ? सृजन के दफ्तर में लगी रसूखदारों, राजनेताओं और दूसरे कद्दावर लोगों की सृजन की संस्थापक मनोरम देवी, इनके बेटे अमित कुमार, इनकी पत्नी और सृजन की सचिव प्रिया कुमार के साथ वाली फोटो की पड़ताल होगी या नहीं ? इन सब सवालों के बीच सभी की निगाहें सीबीआई जांच पर टिकी है।

हालांकि सीबीआई अभी तथ्यों को जुटाने में लगी है। सामाजिक संगठन श्रद्धा भारती के संयोजक संजीव कुमार शर्मा उर्फ लालू शर्मा ने बयान जारी कर सीबीआई जांच से दूध का दूध और पानी का पानी होने की उम्मीद जताई है। भागलपुर में रहे जिन दो डीएम ने चुनाव लड़ा उनमें एक गोरेलाल यादव है। जिन्होंने निजी संस्था सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड के सबौर प्रखंड की सरकारी जमीन पर बने दफ्तर का उदघाट्न किया था। यह 2001 की बात है। इससे पहले जे मोहनन भी 2000 में सृजन के एक दफ्तर का उदघाटन कर चुके थे। गोरेलाल यादव अवकाश ग्रहण करने के बाद बिहार विधान सभा का चुनाव लड़े। यह अलग बात है कि वे चुनाव हार गये। इनके चुनावी खर्च का हिसाब किताब जांच का विषय हो सकता है।

दिलचस्प बात सृजन के दफ्तर सरकारी जमीन पर और सरकारी धन से ही बने थे । सरकारी खजाने पर डाके की शुरुआत की नींव यही से पड़ी। दरअसल सरकारी धन से सबौर प्रखंड परिसर में प्रशिक्षण सह उत्पादन केंद्र बनना था। इसके निर्माण का ठेका भी तत्कालीन अधिकारियों ने सृजन को ही दे दिया। भवन बना और 26 जून 2000 में फीता काट उदघाटन हुआ। इसके बाद सृजन ने ही अपना दफ्तर बना लिया। वर्तमान डीएम आदेश तितमारे इसे हैरत के साथ सही ठहराते है। इतना ही नहीं तीन चार सरकारी भवनों में सृजन के कार्यालय खोले गए। यह सिलसिला 2004 तक चला। तब तक तो मनोरमा देवी ने सृजन के पांव अंगद की तरह जमा लिए।

गोरेलाल यादव के बाद आए आईएएस केपी रमैय्या । इन्होंने तो भागलपुर डीएम ओहदे से तबादला के थोड़े महीने बाद नौकरी से इस्तीफा दे दिया। और नीतीश कुमार की पार्टी जदयू की टिकट पर सासाराम से 2014 में लोक सभा का चुनाव लड़ और हारे। कर्नाटक मूल के रमैय्या को बिहार से चुनाव पार्टी टिकट पर लड़ाना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नजदीकियां तो जरूर जाहिर करता है। चुनाव में खर्च किया धन कहीं सृजन का तो नहीं था ? भाजपा नेता उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की चचेरी बहन रेखा मोदी का भी नाम सृजन से जुड़ गया है। सूत्र बताते है कि रेखा का मनोरमा से गहरा संबंध था। इसी के जरिए पटना और कलकत्ता से कीमती तोहफे खरीदकर बड़े अधिकारियों और रसूखदारों को दिए जाते थे। सृजन के खातों से रेखा के बैंक खाते में लाखों रुपए भेजे गए है। ऐसा प्रमाण जांच टीम को मिला है। हालांकि सुशील मोदी मीडिया के जरिए रेखा से अपने कटु रिश्ते जाहिर कर चुके है।

यहां यह बताना जरूरी है कि केपी रमैय्या के भागलपुर जिलाधीश रहते हुए ही सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड को सरकारी जमीन पट्टे पर दी गई थी। सूत्र बताते है कि यह बात 25 फरवरी 2004 की है। खनकिता मौजा की खाता संख्या 176 खेसरा नंबर 289 की 24 डिसमिल यानी 24275 वर्ग कड़ी जमीन सृजन पट्टे पर दी गई। जिसका किराया 200 रुपए महीना तय किया गया। रमैय्या की सृजन पर मेहरबानी यही नहीं रुकी। बल्कि अपने मातहत सरकारी महकमा, सभी बीडीओ, व गैर सरकारी संस्थानों को बकायदा पत्र लिखकर सृजन बैंक में खाते खोल धन जमा करने का भी फरमान जारी किया। इस आशय का पत्र सुपौल सहकारिता महकमा के अधिकारी पंकज झा के आवास पर छापेमारी में पुलिस की एसआईटी को मिला था। सूत्र बताते है कि रमैय्या के रिश्ते सृजन के धन से मालामाल हुए एनवी राजू जैसों से करीबी के रहे है। बताते है कि इन्हीं की कृपा से मनोरमा देवी भागलपुर सेंट्रल कॉपरेटिव बैंक की निदेशक मंडल की सदस्या भी चुनी गई। इन्हें बैंक के प्रशासक ने मनोनीत किया था। मार्च 2003 से 1 सितंबर 2003 तक ये बैंक के प्रशासक रहे थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *