अमेरिका और उत्तर कोरिया आमने-सामने
उचित होगा कि वे अपने पूर्वाग्रहों के खोल से बाहर निकल उत्तर कोरिया को विश्वास में लें और उसे भरोसा दें कि उसकी संप्रभुता को चुनौती नहीं परोसी जाएगी। यह कहीं से भी उचित नहीं कि एक ओर विश्व की परमाणु शक्तियां दुनिया को परमाणु अप्रसार की सीख दें और दूसरी ओर वे स्वयं परमाणु परीक्षण करें।
मिसाइल परीक्षणों के जवाब में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा सख्त प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद उत्तर कोरिया बाज नहीं आया। उसने जापान के होकाइडो द्वीप के ऊपर से मिसाइल दाग कर साफ कर दिया है कि उसे किसी भी तरह के प्रतिबंध और डर की परवाह नहीं है। उसने अमेरिका के उस विधेयक को भी धता बता दिया जो उसके राष्ट्रपति को उन देशों को दंडित करने का अधिकार देता है जो जनसंहार करने वाले हथियारों के निर्माण में संलग्न हैं। मतलब साफ है कि उत्तर कोरिया और अमेरिका आमने-सामने हैं। यह स्थिति दुनिया को युद्ध की आग में धकेलने वाली है। गौरतलब है कि अमेरिका ने उत्तर कोरिया की ढिठाई को देखते हुए अपनी परमाणु पनडुब्बी ‘यूएसएस मिशिगन’ को अपने सहयोगी दक्षिण कोरिया के बुसान तट पर तैनात कर दिया है। उसका विमानवाहक युद्धपोत यूएसएस कार्ल विंसन हमलावर बेड़ा उत्तर कोरिया के नजदीक पहुंच गया है। उधर दक्षिण कोरिया और जापान की नौसेनाएं अमेरिकी युद्धपोत के साथ बार-बार युद्धाभ्यास कर रही हैं। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव की आग फैलती जा रही है और किसी भी वक्त हालत विस्फोटक हो सकती है। उत्तर कोरिया के मसले पर वैश्विक समुदाय बंटा हुआ है।
यही वह कारण है कि उत्तर कोरिया बार-बार परमाणु परीक्षण कर अमेरिका को चिढ़ा रहा है। उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग की मानें तो उनके देश को अमेरिका से परमाणु युद्ध का खतरा है लिहाजा परमाणु परीक्षण आवश्यक है। किम जोंग ने दावा किया है कि उनकी मिसाइलें अमेरिका और जापान तक पहुंचकर उन्हें मिटाने में सक्षम हंै। तानाशाह किम जोंग की इस दावे से अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की बेचैनी बढ़ना लाजिमी है। अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच तनाव किस हद तक बढ़ चुका है, यह इसी से समझा जा सकता है कि जब उत्तर कोरिया द्वारा हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया गया तो अमेरिका ने उसे अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए अपने बी-52 बमवर्षक विमान को दक्षिण कोरिया के ऊपर से गुजार दिया। उत्तर कोरिया को घेरने के लिए अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने कोरियाई प्रायद्वीप में लंबी दूरी के बमवर्षक बी-52 स्ट्रैटोफोर्टरेस जैसे विमानों को भी तैनात किया है। जब पिछले साल दक्षिण कोरिया ने सीमा पर लाउडस्पीकर लगाकर दुष्प्रचार का संदेश प्रसारित किया, उस समय भी कोरियाई प्रायद्वीप के ऊपर युद्ध के बादल मंडरा रहे थे। तब जंग के हालात टालने के लिए दोनों देशों के बीच बातचीत हुई लेकिन कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला।
उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण के लिए अमेरिका की उत्तर कोरिया विरोधी नीति भी काफी हद तक जिम्मेदार है। उत्तर कोरिया ने अमेरिका के दबाव तले दिसंबर, 1985 में परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर किया था। लेकिन जब उसने देखा कि अमेरिका उसके हितों के विरुद्ध दक्षिण कोरिया से मेलजोल बढ़ा रहा है तो उसने जनवरी, 2003 में परमाणु अप्रसार संधि से खुद के अलग होने की एकपक्षीय घोषणा कर दी। ऐसा करने वाला वह विश्व का पहला देश था। उसी समय से वह अमेरिका से चिढ़ा हुआ है और पिछले कुछ वर्षों में परमाणु अप्रसार संधि को नजरअंदाज कर चार बार परमाणु परीक्षण कर चुका है। पिछले वर्ष अमेरिका ने उत्तर कोरिया की यह कहकर हंसी उड़ाई थी कि उसके पास हाइड्रोजन बम बनाने की तकनीक नहीं है। पक्की खबर है कि आज की तारीख में उत्तर कोरिया के पास एक सौ बीस से अधिक परमाणु बम हैं।
जहां तक हाइड्रोजन बम का सवाल है तो यह सामान्य परमाणु बम के मुकाबले एक हजार गुना ज्यादा ताकतवर है। पहली बार अमेरिका ने 1952 में इसका परीक्षण किया। मौजूदा समय में अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन के पास हाइड्रोजन बम हैं और अब उत्तर कोरिया भी उसी कतार में खड़ा हो गया है। उत्तर कोरिया के पास ऐसी घातक मिसाइलें हैं जो एक हजार से आठ हजार किलोमीटर तक हमला करने में सक्षम हैं। इन मिसाइलों के जरिए परमाणु बमों या हाइड्रोजन बमों को रख कर कहीं भी निशाना साधा जा सकता है चाहे वह अमेरिका ही क्यों न हो। गौर करें तो उत्तर कोरिया ने अपने परमाणु कार्यक्रम को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया है। उसने सबसे पहले उसने 9 अक्तूबर, 2006 को सफलतापूर्वक परमाणु परीक्षण किया।
इस परीक्षण के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उसके विरुद्ध कठोर प्रस्ताव पारित किए। लेकिन उससे उत्तर कोरिया पर कोई असर नहीं पड़ा। उसने 25 मई, 2009 और 12 फरवरी, 2013 को क्रमश: दूसरा और तीसरा परमाणु परीक्षण कर डाला। उसने अत्याधुनिक मिसाइलों को लांच करने के लिए कई लांचिंग साइट भी बना रखी हैं। इनमें मुसुदन-री, कितरयोंग, कालगोल डोंग, कुसोंग, आॅक्प योंग डोंगऔर पोंगडोंग-री साइट प्रमुख है, जहां से वह जापान में मौजूद अमेरिकी सेना, चीनी सीमा और दक्षिण कोरिया को आसानी से निशाना बना सकता है। उत्तर कोरिया की इस ढिठाई के लिए चीन भी कम जिम्मेदार नहीं है। उसे चीन से बराबर सहायता मिलती रही है। 2013 में चीन की उत्तर कोरिया से कुछ नाराजगी जरूर बढ़ी और उसने उस पर कड़े प्रतिबंध की वकालत भी की, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि चीन, उत्तर कोरिया को बहुत अधिक कमजोर देखना नहीं चाहता।
उत्तर कोरिया की कमजोरी उसकी सामरिक और कूटनीतिक रणनीति के अनुकूल नहीं है। पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर में उसकी अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया से तनातनी बनी हुई है और इन परिस्थितियों में वह उत्तर कोरिया को नाराज करना नहीं चाहेगा। वैसे चीन चाहे तो उत्तर कोरिया पर लगाम कस सकता है। इसलिए कि वह उत्तर कोरिया को तकरीबन साठ फीसद वस्तुओं की आपूर्ति करता है। अगर वह मदद रोक दे तो उत्तर कोरिया की जरूरतें पूरी नहीं हो सकतीं। लेकिन बदलते वैश्विक परिदृश्य और सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था के दौर में चीन ऐसा करेगा, कहना थोड़ा कठिन है। उत्तर कोरिया का रूस की ओर बढ़ता झुकाव भी चीन के लिए चिंता का कारण है। यह तथ्य है कि उत्तर कोरिया रूस की मदद से पूरे देश में बिजली की पुरानी लाइनों का आधुनिकीकरण कर रहा है। इसके अलावा रूस उत्तर कोरिया को अपने सुदूर पूर्वी इलाके से बिजली देने पर भी विचार कर रहा है। ऐसे में चीन अपने मित्र उत्तर कोरिया को खोना नहीं चाहेगा। लेकिन उत्तर कोरिया द्वारा अमेरिका को मिटाने की धमकी दिए जाने के बाद उसके विरुद्ध वैश्विक गोलबंदी की संभावना बढ़ गई है। लेकिन इस प्रयास से उत्तर कोरिया अपने परमाणु परीक्षणों को स्थगित करेगा या अमेरिका के खिलाफ जहर उगलना बंद करेगा, कहना मुश्किल है।
खतरनाक स्थिति तब होगी जब अमेरिका अपने मित्र दक्षिण कोरिया और जापान की मदद से उत्तर कोरिया को घेरने की कोशिश करेगा या सैनिक कार्रवाई करेगा। ऐसे में उत्तर कोरिया पटलवार कर सकता है। इस निष्कर्ष पर पहुंचना उचित नहीं कि आणविक युद्ध केवल उत्तर कोरिया की सनक के कारण हो सकता है। आणविक युद्ध मानवीय या यांत्रिक भूल के कारण भी हो सकता है। आज विश्व में सत्तर हजार से अधिक परमाणु शस्त्र हैं और प्रत्येक शस्त्र की क्षमता किसी भी शहर को एक झटके में मिटा देने में सक्षम है। इन बमों से विश्व को कई-कई बार नष्ट किया जा सकता है। अमेरिका और उसके सहयोगी देश उत्तर कोरिया को निशाने पर लेने के बजाय कोरियाई प्रायद्वीप में पसर रहे तनाव को शिथिल करने की दिशा में ठोस उपाय तलाशें, यही दुनिया के हित में है।