बांके बिहारी मंदिर में साक्षात् प्रकट हैं राधा-कृष्ण, जानें क्या है वृंदावन के प्रख्यात मंदिर का महत्व
उत्तर प्रदेश के वृंदावन में स्थित बांके बिहारी का निर्माण प्रख्यात गायक तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास ने करवाया था। भगवान कृष्ण को समर्पित इस मंदिर में राजस्थानी शैली की बेहतरीन नक्काशी की गई है। बांके बिहारी का शब्दार्थ करें तो बांके का अर्थ होता है तीन तरफ से मुड़ा हुआ और बिहारी का अर्थ श्रेष्ठ उपभोक्ता होता है। मंदिर में रखी भगवान कृष्ण की मुख्य प्रतिमा त्रिभंगा मुद्रा में है, इसी के आधार पर इस मंदिर का नाम बांके बिहारी मंदिर है। इस भव्य मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की एक प्रतिमा है। इस प्रतिमा के विषय में माना जाता है कि इसमें श्री कृष्ण और राधा साक्षात् समाए हुए हैं।
इस मंदिर में स्थापित मुख्य प्रतिमा के लिए माना जाता है कि स्वामी हरिदास निधिवन में भगवान कृष्ण के लिए भजन गाया करते थे एक दिन गायन के दौरान भगवान कृष्ण और राधा प्रकट हुए और स्वामी जी के देखते-देखते राधा-कृष्ण की छाया समाहित हो गई और स्वामी के सामने एक काले रंग की मूर्ति प्रकट हो गई। इसी उसी मूर्ति को स्वामी जी ने बांके बिहारी के मंदिर में स्थापित किया। यह मूर्ति इतनी मनमोहक है कि राधा-कृष्ण के भक्त इससे अपनी नजर नहीं हटा पाते हैं। मनोमोहक होने के साथ ही ये मूर्ति रहस्यमयी भी मानी जाती है।
बांके बिहारी के मंदिर में मौजूद पंडित बिहारी जी की मूर्ति के आगे हर मिनट में पर्दा करते रहते हैं, माना जाता है कि वो किसी भी भक्त और बिहारी जी की नजर देर तक ना मिले, इसलिए करते हैं। दंत कथाओं के अनुसार माना जाता है कि यदि किसी भक्त और कृष्ण की नजरों का मेल हो जाता है तो वो भक्त अपनी आंखों की रौशनी खो देता है या अपनी सद्बुद्धि खो देता है। अन्य कथा के अनुसार कहा जाता है कि भक्ति भाव से श्रद्धालु जब कृष्ण को देखते हैं तो कृष्ण प्रसन्न होकर खुद उनकी परेशानी का निवारण करने चले जाते हैं। एक बार इसी प्रकार एक भक्त अपनी परेशानी लेकर आया था और कृष्ण उसके लिए गवाही देने चले गए थे। अगले दिन जब पंडितों ने मंदिर खोला तो बिहारी जी की मूर्ति अपने स्थान पर नहीं थी। उसके बाद से ही हर मिनट में बांके बिहारी की मूर्ति के आगे पर्दा किया जाता है।