गुजरात चुनाव: आयोग के पहले लेवल के टेस्ट में ही फेल हुईं 3550 वीवीपीएटी मशीनें
गुजरात चुनाव में इस्तेमाल की जाने वाली 3550 वीवीपीएटी (वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) मशीनों को चुनाव आयोग ने खराब पाया। सबसे ज्यादा खराब वीवीपीएटी मशीनें जामनगर, देवभूमि द्वारका और पाटन जिले में पाई गईं। आधिकारिक सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि गुजरात में कुल 70,182 वीवीपीएटी मशीनें इस्तेमाल की जानी हैं। गुजरात के मुख्य चुनाव आयुक्त बीबी स्वाईं ने कहा कि खराब मशीनों को उनके कारखाने में वापस भेजा जाएगा। जिन मशीनों में मामूली तकनीकी खराबी है उन्हें दुरुस्त किया जा सकता है।
एक वरिष्ठ चुनाव अधिकारी के अनुसार खराब पाई गईं वीवीपीएटी मशीनों में सेंसर के काम न करने, प्लास्टिक के पुर्जों के टूटे हुए होने और मतदान पेटी (ईवीएम) से जोड़ने में दिक्कत होने जैसी समस्याएं पाई गईं। चुनाव आयोग ने मतदान के दौरान खराब हो जाने वाली वीवीपीएटी को बदलने के लिए 4150 अतिरिक्त मशीनों मंगाई हैं। गुजरात में कुल 182 विधान सभा सीटे हैं। गुजरात में दो चरणों में मतदान होगा।
पहले चरण का मतदान नौ दिसंबर को होगा जिसमें कुल 89 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। दूसरे चरण का मतदान 14 दिसंबर को होगा जिसमें बाकी 93 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। चुनाव के नतीजे 18 दिसंबर को आएंगे। राज्य में पिछले 22 सालों से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) लगातार सत्ता में है। बीजेपी ने राज्य के पिछले तीन विधान सभा चुनाव (2002, 2007 और 2012) नरेंद्र मोदी की अगुवाई में लड़े और जीते थे। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार गुजरात विधान सभा चुनाव हो रहे हैं। गुजरात में बीजेपी की चुनावी जीत के सूत्रधार माने जाने वाले अमित शाह अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके हैं। उन्होंने इसी साल विधायक पद से इस्तीफा देकर राज्य सभा का चुनाव लड़ा और जीता था। शाह पिछले दो दशकों से ज्यादा समय से गुजरात में बीजेपी विधायक थे।
नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद गुजरात बीजेपी को कई संकटों से जूझना पड़ा। मोदी की जगह राज्य की मुख्यमंत्री बनाई गईं आनंदीबेन पटेल की कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटाना पड़ा। उनकी जगह विजय रूपानी राज्य के सीएम बनाए गये। माना जाता है कि पटेल आरक्षण आंदोलन और उना में कुछ दलितों की पिटाई के वीडियो के वायरल होने के बाद हुए राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शनों पर नियंत्रण न रख पाने की वजह से आनंदीबेन की कुर्सी गयी थी। विधान सभा चुनाव से ठीक पहले पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल, दलित आंदोलन के नेता जिग्नेश मेवानी और पिछड़ा वर्ग के नेता अल्पेश ठाकोर के कांग्रेस के करीब आने से बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें आना स्वाभाविक हैं।