मशहूर अमेरिकी अखबार ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने अब गिनाईं आधार की कई खामियाँ
मशहूर अमेरिकी अखबार ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने भारत सरकार द्वारा कई योजनाओं में आधार को अनिवार्य किए जाने की आलोचना करते हुए उनमें कई कमियां गिनाई हैं। अखबार ने लिखा है कि तीन साल पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने देश की सवा सौ करोड़ आबादी को आधुनिक बनाने के उद्देश्य से ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान की शुरुआत की थी। इसके अलावा कैशलेस सोसायटी के उद्देश्य से देश में मौजूद कैश करेंसी को अवैध करार देते हुए डिजिलल लेन-देन को भी बढ़ावा दिया था। ताकि सिस्टम से करप्शन दूर किया जा सके और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ आमजनों को सुलभ उपलब्ध हो सके लेकिन कई योजनाओं में आधार को भी लागू किया। इसकी वजह से आमजनों को परेशानी हो रही है।
अखबार ने लिखा है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शासनकाल में आधार की शुरुआत हुई थी। तब 2014 के चुनावों में नरेंद्र मोदी आधार को बेकार बताकर इसके खिलाफ बोलते थे लेकिन सरकार बनते ही उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री की योजनाओं से भी आगे बढ़कर आधार को कई सरकारी योजनाओं के लिए जरूरी कर दिया। आज की तारीख में बैंक अकाउंट, फोन, गैस, बिजली कनेक्शन जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए आधार को अनिवार्य कर दिया गया है। यहां तक कि स्कूली छात्र-छात्राओं के लिए भी इसे जरूरी कर दिया गया है। अखबार ने लिखा है कि अनिवार्यता की वजह से ही भारत में कई बुजुर्गों, गरीबों और समाज के पिछड़े-दलित वर्ग को परेशानी झेलनी पड़ रही है।
अखबार ने 10 साल की नंदिनी की कहानी बयां करते हुए लिखा है कि क्लरिकल मिस्टेक की वजह से उसके आईडी पर नाम की स्पेलिंग गलत छप गई। इसके लिए उसे स्कूल ने मना कर दिया है। अब 10 साल की नंदिनी और उसके पिता नेत्रपाल आधार में उसे संशोधन कराने के लिए आधार दफ्तर में भटक रहे हैं। अखबार ने कला देवी का भी दर्द बयां किया है जो सरकार द्वारा संचालित एक चाइल्ड केयर सेंटर में काम करती हैं लेकिन पिछले आठ महीने से उन्हें सैलरी नहीं मिली है क्योंकि आधार में दर्ज उनका डेटा मैच नहीं कर रहा है। अखबार ने 34 साल के आशीष यादव का भी दर्द साझा किया है कि वो अपना बैंक अकाउंट ऑपरेट नहीं कर पा रहा है क्योंकि बैंक की मशीन में उसकी उंगलियों के निशान मैच नहीं कर रहे हैं। अखबार में 74 साल के बुजुर्ग मदनलाल नंदा का भी जिक्र है जिन्हें दो महीने से पेंशन नहीं मिल सका है क्योंकि बुढ़ापे की वजह से उनकी उंगलियों के निशान आधार मशीन रजिस्टर नहीं कर पा रही है।
अखबार ने लिखा है कि देश का सुप्रीम कोर्ट फिलहाल इसकी अनिवार्यता पर अंतिम आदेश जारी नहीं कर सका है और सुनवाई जारी है लेकिन उससे पहले ही सरकारों ने कई अहम योजनाओं में इसे अनिवार्य कर दिया है। इसकी वजह से समाज के दलित-पिछड़े वर्ग को सबसे ज्यादा परेशानियां उठानी पड़ रही हैं। अखाबर ने यह भी लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट में आधार को चुनौती देने वाली एक याचिका में कहा गया है कि डेटा में जाति-धर्म की वजह से कई बार लोगों को सामाजिक तिरस्कार भी झेलना पड़ सकता है। बता दें कि यह वही अखबार है जिसने पिछले साल यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को विवादित, मुस्लिम विरोधी और आतंकी महंथ कहा था।