मंदिर के शिखर पर लगाया जाता है ध्वज और कलश, जानें क्या है कारण

मंदिर एक ऐसा स्थान हैं जहां पर जप साधना करने से सकारात्मक जीवन से धरती में एक विशेष दैवीय ऊर्जा उत्पन्न हो जाती है। शास्त्रों में ऐसा माना जाता है कि शब्दधनी से किसी भी स्थान पर ऊर्जा उत्पन्न की जाती है जिसे प्राण कहा जाता है। इष्ट को साकार रुप देने के बाद ही उनके सामने किया गए पूजन से पूरा क्षेत्र दिव्य ऊर्जा से भर जाता है। इसी को मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा करना कहा जाता है और इसके बाद आम जन प्रतिमा से ऊर्जा महसूस करते हैं। इसी को मंदिर कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर में लोगों की साधना और सात्विक व्यवहार ही ऊर्जा उत्पन्न करता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हर दिन लोग मंदिर जाकर भगवान की पूजा करते हैं लेकिन किसी कारण से मंदिर नहीं जा पाते हैं तो शास्त्रों में उनके लिए भी उपाय बताया गया है कि मंदिर ना जाने से भी मंदिर जाने का पुण्य मिलता है। माना जाता है कि मंदिर के अंदर नहीं जा पा रहे हैं तो बाहर से ही मंदिर के शिखर को प्रणाम कर सकते हैं। माना जाता है कि शिखर दर्शन से भी उतना पुण्य मिलता है जितना मंदिर में प्रतिमा के दर्शन करने से मिलता है। शास्त्रों में कई जगह लिखा गया है कि शिखर दर्शनम पाप नाशम। इसका अर्थ है कि शिखर के दर्शन कर लेने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

मंदिर ऊंचे बनाने और उनपर शिखर लगाने का ये कारण होता है कि लोग आसानी से मंदिर के शिखर को देख पाएं। माना जाता है कि जब भी मंदिर के बाहर से गुजरें तो ध्वज और कलश को प्रणाम जरुर करना चाहिए। शिखर के दर्शन करते हुए आंखें बंद करके अपने इष्ट देव को अवश्य याद करना चाहिए। इससे मंदिर में जाने जितना ही पुण्य प्राप्त होता है।

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