जब सुप्रीम कोर्ट ने लड़की से पूछा- रेप हुआ था तो आई लव यू कहने की आवश्यकता क्यूँ पड़ी?
‘पीपली लाइव’ फिल्म के निर्देशक महमूद फारूकी को वर्ष 2015 के एक दुष्कर्म मामले में सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। अमेरिकी यूनिवर्सिटी से रिसर्च करने वाली लड़की ने फारूकी पर बलात्कार का आरोप लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने जिरह के दौरान बचाव पक्ष के वकील से तीखे सवाल पूछे। याची के वकील ने फारूकी और महिला के बीच ई-मेल पर हुई बातचीत का हवाला दिया था। इस पर जस्टिस एसए बोब्दे और जस्टिस एल. नागेश्वर राव की पीठ ने कहा कि ई-मेल से हुई बातचीत को देख कर ऐसा लगता है कि दोनों अच्छे दोस्त थे। पीठ ने कहा, ‘आप ऐसे कितने मामलों के बारे में जानते हैं, जिसमें कथित घटना के बाद पीड़िता ने आरोपी को ‘आई लव यू’ बोला हो।’ कोर्ट ने लड़की से यह भी पूछा कि वह फारूकी से कितनी बार मिलने गई थीं और कितने बार साथ में ड्रिंक किया था। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (19 जनवरी) को सुनवाई के दौरान इसके अलावा भी कई सवाल उठाए थे। पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले में दखल देने का कोई कारण नहीं बनता है।
अमेरिकी विश्वविद्यालय से शोध करने वाली महिला ने फारूकी पर वर्ष 2015 में दुष्कर्म का आरोप लगाया था। निचली अदालत ने उन्हें दोषी ठहराते हुए सात साल कैद की सजा सुनाई थी। इसके बाद फारूकी ने इसे दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने उन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। इसके बाद लड़की ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। दिल्ली हाई कोर्ट के जज आशुतोष कुमार की पीठ ने जेल प्रशासन को फारूकी को तत्काल छोड़ने का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था, ‘जब दो लोग एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं तो उनके बीच ऐसी चीजें हो जाती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि महिला के साथ दुष्कर्म हुआ। महिला का बयान पूरी तरह विश्वास योग्य नहीं है।’
अभियोजन पक्ष का कहना था कि महमूद फारूकी ने नई दिल्ली के सुखदेव विहार स्थित अपने घर में महिला से दुष्कर्म किया था। उस वक्त भी फारुकी के वकील ने दोनों के बीच संबंध होने की दलील दी थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि ‘न’ का मतलब हमेशा ‘न’ नहीं हो सकता है। फारूकी के खिलाफ 19 जून, 2015 में एफआईआर दर्ज की गई थी। निचली अदालत में मामले की सुनवाई सितंबर, 2015 को शुरू हुई थी। फारूकी को 30 जुलाई, 2016 में दोषी ठहराया गया था। ट्रायल कोर्ट ने महिला के बयान को सही और विश्वसनीय माना था।