आजादी के 71 साल बाद भी कुपोषण से हर साल होती है 3000 बच्चों की मौत
देश अपनी स्वतंत्रता की 71वीं सालगिरह मना रहा है, लेकिन आजादी के सात दशक बाद भी भारतीय बच्चों को अच्छा जीवन स्तर नहीं मिल पा रहा है। देश में हर साल लगभग 3000 बच्चे कुपोषण की वजह से मर जाते हैं। वहीं गरीबी के कारण लाखों बच्चों को सड़कों पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्रीय के 192 सदस्य राज्यों के साथ साल 2030 तक टिकाऊ विकास हासिल करने का लक्ष्य तय किया था। इस तथ्य के बावजूद गरीब बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है। हार्ट केयर फाउंडेशन आॅफ इंडिया (एचसीएफआइ) के अध्यक्ष डॉ केके अग्रवाल ने बताया कि 5.9 करोड़ से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं। देश में सड़क पर रहने वाले बेघर बच्चों की संख्या खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है। उन्हें रोजाना जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उनसे यह स्थिति और खराब होती जा रही है। भोजन की कमी से लेकर यौन शोषण तक इनके सामने कठिनाइयों की भरमार है। डॉ अग्रवाल ने कहा कि यह एक गंभीर मेडिको-लीगल आपात स्थिति है।
गरीबी उन्मूलन, भुखमरी का अंत और स्वस्थ जीवन की सुनिश्चितता जैसे बाल केंद्रित लक्ष्य केवल तभी हासिल हो सकते हैं, जब सरकार और निजी संस्थाएं मजबूत ढांचे और नीतियों की स्थापना करने और उन्हें लागू करने के लिए काम करें। सामाजिक कार्यकर्ता व प्रयास एनजीओ के संस्थापक आमोद के कंठ ने कहा कि सड़कों पर रहने वाले बच्चे ज्यादातर निर्माण स्थलों या रेस्तरां में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं। शहरों में उनके साथ शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार किया जाता है और दिन में सात घंटे से अधिक समय तक काम कराया जाता है। इसके अलावा उन्हें काम के दौरान पीटा भी जाता है। डॉ अग्रवाल ने आगे कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद-21 बच्चों सहित सभी को गरिमा के साथ जीवन के अधिकार की गारंटी देता है। इस अधिनियम की समीक्षा करने और यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि बेघर बच्चों और समाज के निम्न आर्थिक स्तर पर जी रहे लोगों की अनदेखी न की जाए।
उदाहरण के लिए, युवावस्था में प्रवेश करने वाली लड़कियों को साप्ताहिक रूप से गुड़-चना (लौह और प्रोटीन) दिया जाना चाहिए। बच्चों का स्वास्थ्य और सुरक्षा एक जिम्मेदारी है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है। बच्चों में बुनियादी पोषण सुनिश्चित करने पर गंभीरता से काम करना चाहिए। अक्तूबर में होने वाले स्वास्थ्य मेले में इस मुद्दे पर विशेष जोर दिया जाएगा। प्रयास जुवेनाइल ऐड सेंटर (जेएसी) सोसायटी ने सड़क पर जिंदगी बिताने वाले बच्चों के सामने आने वाली कठिनाइयों को लेकर एक कार्यक्रम किया। डॉ केके अग्रवाल और आमोद के कंठ ने बाल यौन शोषण, कुपोषण और बच्चों की अन्य स्वास्थ्य समस्याओं पर चिंता जाहिर की। और नीति निर्माताओं का ध्यान इस तरफ खींचा कि किस तरह से बच्चों का जीवन स्तर बेहतर बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए विशेष नीतियां बना कर काम करने से ही सशक्त व विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।