ईसाई लगती थीं इसलिए AAP नेता को सरनेम हटाने कहा? आरोपों पर यह बोली पार्टी
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (AAP) पर अजीबोगरीब आरोप लगे हैं। बताया जाता है कि पार्टी नेतृत्व ने आतिशी मर्लेना को नाम के आखिरी हिस्से (मर्लेना) को हटाने को कहा था, क्योंकि इससे उनके ईसाई होने का आभास होता है। इस बाबत मीडिया में रिपोर्ट आने के बाद AAP ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। पार्टी के संयुक्त सचिव अक्षय मराठे ने बताया कि आतिशी को ऐसा कुछ भी करने का निर्देश नहीं दिया गया। AAP नेता ने कहा, ‘आतिशी को किसी ने भी नाम के अंतिम हिस्से को जबरन हटाने के लिए नहीं कहा है। वह हमेशा से आतिशी ही रही हैं। मर्लेना बाद में रखा गया नाम है, जबकि उनका उपनाम सिंह है।’ मराठे ने ट्वीट किया, ‘एक प्रगतिशील राजनीतिज्ञ के तौर पर आतिशी ने वोट मांगने के लिए कभी भी जातिगत नाम ‘सिंह’ का इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन, अब उन्हें सिर्फ आतिशी लिखने पर निशाना बनाया जा रहा है। हमलोगों की बहस शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के ईर्द-गिर्द रहा है, जातिगत या धार्मिक आधार पर पहचान का नहीं।’ मीडिया रिपोर्ट की मानें तो आतिशी की मां डॉक्टर तृप्ता वही और डॉक्टर विजय सिंह वामपंथी रुझान वाले हैं।
आतिशी मर्लेना पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से AAP की प्रत्याशी हैं। मीडिया में ऐसी खबरें आई थीं कि पार्टी ने उन्हें चुनाव प्रचार से पहले अपने नाम के आखिरी हिस्से को हटाने के लिए कहा था, क्योंकि इससे उनके ईसाई होने का आभास होता है। इस मसले पर राजनीतिक बयानबाजी होने के बाद दिल्ली में सत्तारूढ़ AAP को इस रिपोर्ट का खंडन करना पड़ा है। बता दें कि अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में AAP के साथ ही बीजेपी और कांग्रेस चुनावी तैयारियों में जुट गई हैं। फिलहाल केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की सभी सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। AAP आगामी आम चुनावों में इसमें सेंध लगाने की जुगत में है।
ओवैसी ने AAP को लिया आड़े हाथ: मीडिया में इस बाबत रिपोर्ट आने के बाद AAP की तीखी आलोचना शुरू हो गई थी। AIMIM के अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने आतिशी मर्लेना को अपने नाम का आखिरी हिस्सा हटाने के लिए कहने को लेकर AAP की कड़ी निंदा की। ओवैसी ने ट्वीट किया, ‘भारतीय चुनावी राजनीति की यह सच्चाई है कि ईसाई या मुस्लिम नाम का आभास होने पर प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सकता है। यही वजह है कि 14 फीसद की आबादी होने पर भी लोकसभा में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व महज 4 फीसद है। धर्मनिरपेक्षता पर चर्चा मतदान के वक्त पूरी तरह से असफल हो जाता है।’