कार्डियक अरेस्‍ट: इसी ने ली श्रीदेवी की जान, जानिए क्‍या हैं लक्षण और कैसे कर सकते हैं बचाव

बॉलीवुड समेत दक्षिण की कई शानदार फिल्में देने वाली लाखों दिलों की धड़कन श्रीदेवी का शनिवार (24 फरवरी) की रात दुबई में कार्डियक अरेस्ट (हृदय गति रुकने) से निधन हो गया। आखिर कार्डियक अरेस्ट के क्या लक्षण होते हैं और इसका बचाव कैसे किया जा सकता है, इस बारे में यहां जानकारी दी जा रही है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की वेबसाइट www.heart.org पर दी गई जानकारी के अनुसार दिला का दौरा और हृदय गति का रुकना, इन दोनों ही स्थिति एक दूसरे पर्याय लगती हैं, लेकिन दोनों में मामूली फर्क होता है। पहले दिल के दौरे के बारे में जान लेते हैं। दिल का दौरा तब पड़ता है जब कोई नस जाम होने पर दिल के एक सेक्शन तक ऑक्सीजन वाला अच्छा खून नहीं पहुंचा पाती है। अगर जाम हो चुकी नस को तुरंत नहीं खोला जाता है तो दिल का वह हिस्सा अपने आप पोषित होने लगता है, लेकिन नस मरने लगती है।

अगर ऐसी स्थिति में कोई व्यक्ति लंबे समय तक इलाज नहीं करवाता है तो उसे तुरंत और तेजी दिल के दौरे के लक्षणों का सामना करना पड़ सकता है। इसके लक्षण धीरे-धीरे और शुरू होते हैं और घंटों, दिनों और हफ्तों तक बने रहते हैं। जब तक कि हृदय गति ही न रुक जाए आमतौर पर दिला दौरा पड़ने पर दिल का धड़कना बंद नहीं होता है। महिलाओं में दिल का दौरा पड़ने के लक्षण पुरुषों के मुकाबले भिन्न हो सकते हैं।

कार्डियक अरेस्ट अक्सर बिना चेतावनी के अचानक होता है। यह दिल में एक इलेक्ट्रीकल मलफंक्शन (विद्युतीय खराबी) के कारण होता है, इससे दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है। ऐसी स्थिति तो arrhythmia कहते हैं। दरअसल जब दिल धड़कता है तो उससे वैद्युत संवेग पैदा होता है, जिसकी मदद से शरीर में रक्त का संचार होता है। धड़कन अनियंत्रित होने पर शरीर में रक्त का संचार कभी तेजी से होता है तो कभी धीमी गति से, ऐसे में शरीर के बाकी हिस्सों जैसे कि फेंफड़े और दिमाग आदि पर असर पड़ता है। इसके रुकने पर व्यक्ति का उसके दिमाग पर जोर नहीं रहता और वह व्यक्ति चेतना खो देता है और उसकी नब्ज बंद हो जाती है। अगर मरीज को तुरंत इलाज न मिले तो उसकी मौत हो जाती है।

कार्डियक अरेस्ट दिल का दौरा पड़ने के बाद या उसके इलाज के दौरान हो सकता है। दिल का दौरा अचानक होने वाले कार्डियक अरेस्ट का जोखिम बढ़ा देता है। ज्यादातर मामलों में दिला का दौरा पड़ने पर अचानक होने वाला कार्डियक अरेस्ट नहीं होता है। लेकिन जब कार्डियक अरेस्ट होता है तो इसके पीछ दिल का दौरा आम कारण होता है। दिल की दूसरी खराबियां भी कार्डियक अरेस्ट के लिए वजह बन सकती हैं। इनमें दिल की मांस-पेशियों का मोटा हो जाना (कार्डियोमायोपैथी), दिल का बंद होना, खून में ज्यादा मात्रा में फाइब्रोनिजन का पाया जाना, और लंबे समय तक क्यू-टी सिंड्रोम रहना शामिल हैं। क्यू-टी सिंड्रोम में भी दिल की धड़कन कभी तेज तो कभी धीमी पड़ जाती है।

Mayo Clinic की रिपोर्ट के अनुसार इन हालातों में बचाव के लिए सबसे पहले देखना चाहिए कि मरीज सही से सांस ले पा रहा है या नहीं, अगर नहीं ले पा रहा है तो ‘सीपीआर’ प्रणाली पर काम करना चाहिए, इसके तहत मरीज के सीने पर हाथों से दबाव दिया जाता है। मरीज के सीने को एक मिनट के भीतर 100 से 120 बार तक दबाना चाहिए। हर 30 बार दबाने के बाद उसकी सांस को जांच लेना चाहिए। बिना देर किए मिनटों मे किसी डॉक्टर को दिखाना चाहिए। इसके लिए इमरजेंसी नंबर पर कॉल करके एंबुलेंस को भी बुलाया जा सकता है।

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