कुछ हकीकत कुछ फसाने

तवलीन सिंह

प्रधान मंत्री ने पिछले सप्ताह उनसे सावधान रहने को कहा, जो निराशा फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, जबसे मंदी के बादल अर्थव्यवस्था पर मंडराने लगे हैं। ठीक किया प्रधानमंत्री ने ऐसा करके। इन लोगों की तरफ अगर आप ध्यान से देखने की तकलीफ करेंगे तो वही चेहरे नजर आएंगे जो नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के पहले क्षणों से ही उनको बदनाम करने में लगे हुए हैं। याद कीजिए किस तरह पहली कोशिश उनकी थी ईसाई समाज में डर पैदा करने की। इस कोशिश में इतने सफल रहे कि बड़े-बड़े ईसाई बुद्धिजीवी अखबारों में लेख लिखने लगे थे ‘बढ़ती असहनशीलता’ को लेकर। बाद में मालूम हुआ कि गिरजाघरों में चोरियां और तोड़-फोड़ सड़कछाप गुंडों का काम था और अचानक ईसाई अपने आप को फिर से भारत में सुरक्षित महसूस करने लगे थे। इसके बाद बारी आई मुसलमानों में अशांति फैलाने की। इसमें गोरक्षकों ने उनकी बहुत मदद की मोहम्मद अखलाक और पहलू खान जैसे बेकसूर मुसलमानों को सरेआम पीट-पीट के मार कर। मोदी ने भी उनकी मदद की, क्योंकि जब तक ऊना वाली घटना नहीं हुई थी, जिसमें गोरक्षकों ने दलित युवकों को गाड़ी के साथ बांध कर लोहे के सरियों से पीटा, और इस शर्मनाक घटना का विडियो इंटरनेट पर पोस्ट किया, तब तक मोदी ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी। उनके मौन व्रत के दौरान उनके इतने दुश्मन इकट्ठा हो गए थे उनको बदनाम करने के वास्ते कि उनको चुप करना नामुमकिन हो गया था। मोदी के दुश्मनों की इस जमात में वामपंथी, सेक्युलर मिजाज के पत्रकार, लेखक और बुद्धिजीवी तो हैं ही, लेकिन नेतृत्व उन राजनेताओं के हाथ में है, जिनकी राजनीति को मोदी के आने से खतरा है।

यह उस किस्म के राजनेता हैं, जिन्होंने जनता की सेवा के नाम पर सेवा की है अपने परिवार की। परिवारवाद ने भारतीय राजनीति में महामारी का रूप धारण कर लिया है, ऐसे कि तकरीबन हर राजनीतिक दल को निजी कंपनी में तब्दील कर दिया गया है। कंपनियों के चेयरमैन होते हैं, बड़े राजनेता जिनका असली मकसद है अपने बच्चों और परिजनों को अपनी कंपनी के बोर्ड के ऊंचे ओहदों पर नियुक्त करना। यह ऐसा रोग है, जो भारतीय जनता पार्टी में भी फैल चुका है। आपने शायद ध्यान दिया होगा कि जिस व्यक्ति ने आलोचना की मुहिम चलाई है पिछले दिनों उसने अपने चुनाव क्षेत्र को अपने बेटे के हवाले किया है। मजे की बात यह है कि उनके सुपुत्र आज भी मोदी सरकार में मंत्री हैं।ऐसा नहीं कि मोदी सरकार की आलोचना नहीं होनी चाहिए। जरूर होनी चाहिए। जो आर्थिक मंदी हम देख रहे हैं वह आई है मोदी की गलतियों के कारण और जब तक वह इन गलतियों को स्वीकार नहीं करते हैं तब तक इनको सुधारना असंभव है। मोदी की सबसे बड़ी गलती नोटबंदी बताते हैं उनके आलोचक और दूसरी बड़ी गलती जीएसटी को बताते हैं। मोदी के समर्थक भी इंकार नहीं कर सकते कि इन दो कार्यों को एक के बाद एक करके मोदी ने उन छोटे व्यापारियों और कारोबारियों को सबसे ज्यादा तकलीफ दी है, जिनके पास गुंजाइश नहीं है कर विशेषज्ञों से सलाह लेने की। छोटे तौर पर जो निर्यात करते हैं उनका इतना बुरा हाल हुआ है जीएसटी लागू होने के बाद कि कई तो अपने कारोबार बंद करने पर मजबूर हो गए हैं। ये सारी बातें अगर प्रधानमंत्री पहले नहीं जानते थे, तो गलती है वित्त मंत्रालय में बैठे उन अधिकारियों की, जिन्होंने जल्दबाजी में जीएसटी लागू किया है सिर्फ प्रधानमंत्री को खुश करने के वास्ते।

ये अक्सर ऐसे लोग हैं, जिनको अपने आकाओं की चिंता ज्यादा रहती है और जनता की कम। लेकिन यह भी सही है कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में पिछले हफ्ते स्पष्ट शब्दों में आश्वासन दिया है छोटे व्यापारियों और निर्यातकों को कि उनकी मुसीबतें कम करेंगे। समस्या यह है कि इनकी मुसीबतें हल हो भी जाती हैं अगर तो फिर भी मंदी के बादल रहेंगे अर्थव्यवस्था के आसमान में, क्योंकि देश के सबसे बड़े उद्योगपति और निवेशक भी तकलीफ में हैं। उनकी तकलीफें इसको लेकर हैं कि मोदी ने काला धन खोजने की जो मुहिम शुरू की उसके बहाने टैक्स विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों को बहाना मिल गया है उनके कामकाज में बेहद दखल देने का। इस खुली छूट के कारण इन अधिकारियों का निजी लाभ बहुत हुआ है। मुंबई के उद्योग जगत से वाकिफ होने के नाते मैं यकीन के साथ कह सकती हूं कि इस काले धन की खोज ने निवेशकों को खूब डरा कर रखा है।दिल्ली में पिछले हफ्ते वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का इंडिया शिखर सम्मेलन हुआ था।

इस सम्मेलन में शामिल होने आए थे देश के बड़े-बड़े उद्योगपति। और तकरीबन सबका यही कहना था कि निवेशकों के लिए माहौल अच्छा नहीं है। इनकी बातें शायद प्रधानमंत्री तक पहुंच भी गई होंगी, क्योंकि जब वित्तमंत्री नहीं आए सम्मेलन को संबोधित करने, तो अफवाहें फौरन फैल गई थीं कि प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष के साथ विशेष मुलाकात में व्यस्त थे जेटली साहब। माना भी जाए कि मोदी की गलतियों की वजह से अर्थव्यवस्था बेहाल हुई है, क्या यह भी नहीं मानना पड़ेगा कि इन गलतियों के पीछे मोदी के इरादे नेक थे? क्या देश में विकास और परिवर्तन लाने के लिए नहीं की गई थीं ये गलतियां? मोदी के आलोचक उनके इरादों पर भी शक करते हैं। जिन लोगों ने कभी सोनिया-मनमोहन सरकार की गलतियों के बारे में आवाज नहीं उठाई थी वह कैसे इतनी ऊंची आवाजों में बोल रहे हैं उस व्यक्ति के खिलाफ, जिसको वे तानाशाह मानते हैं? इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने लगी तो ऐसा महसूस हुआ कि मोदी के आलोचक चाहते हैं कि वे गलतियां करते रहें। भारत के शुभचिंतक नहीं हैं ये लोग।

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