ताज के बहाने

जिस तरह से ताज महल को निशाना बनाने की कोशिश हुई है वह बेहद चिंताजनक है। इससे यही पता चलता है कि आज हम इतिहास के एक ऐसे नाजुक मोड़ पर खड़े हैं जहां अपनी सियासत चमकाने के चक्कर में कोई किसी भी हद तक जा सकता है। उत्तर प्रदेश के सरधना से भाजपा के विधायक संगीत सोम ने रविवार को कहा कि ताज महल भारतीय संस्कृति पर धब्बा है। इसी के साथ उन्होंने इतिहास के बारे में अपना गहन ज्ञान भी प्रदर्शित कर दिया, यह बताते हुए कि ‘सत्रहवीं शताब्दी में ताज महल में शाहजहां ने अपने पिता को कैद किया था।’ जहां इतिहास के बारे में ज्ञान का स्तर ऐसा हो, वहां संस्कृति के बारे में समझ के स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता है। संगीत सोम उग्र सांप्रदायिक बयानों के लिए जाने जाते हैं। ताज महल के बारे में उन्होंने जो कुछ कहा वह उनके खास तरह के मिजाज का ही इजहार लगता है। लेकिन इस सिलसिले की शुरुआत हुई इस खबर से कि उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग ने राज्य के पर्यटन स्थलों की सूची से ताज महल को हटा दिया है। इस पर विवाद उठना ही था। स्वाभाविक ही राज्य सरकार की काफी किरकिरी हुई। और शायद उसी का नतीजा है कि अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सुर बदले हुए लगते हैं। अब उनका कहना है कि ताज महल किसी ने बनवाया हो, उसके निर्माण में भारत के ही मजदूरों का पसीना बहा है। फिर, ताज महल को लेकर नाहक एक विवाद खड़ा करने की क्या जरूरत थी?

अगर भाजपा के लोग सोचते हैं कि इससे उन्हें सियासी फायदा होगा, तो उनकी यह धारणा गलतफहमी भी साबित हो सकती है। ताज महल के साथ देश के लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं, वे इसे दुनिया भर को आकर्षित करने वाली एक ऐसी धरोहर के तौर पर देखते हैं जिस पर उन्हें नाज है। उत्तर प्रदेश इस पर फख्र करता आया है कि ताज महल उसके पास है। भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार के लिए यह पर्यटन के जरिए राजस्व कमाने का भी जरिया रहा है। यह भारत के स्थापत्य और कला-कारीगरी का एक बेमिसाल नमूना है। मुट्ठी भर लोग ही होंगे जो इसे धर्म या संप्रदाय के चश्मे देखें। मजे की बात यह है कि खुद भाजपा सरकार के संस्कृति मंत्री महेश शर्मा, संगीत सोम जैसे लोगों की राय से इत्तिफाक नहीं रखते। दो दिन पहले उन्होंने कहा कि ताज महल को पर्यटन स्थलों की सूची से हटाए जाने का कोई सवाल ही नहीं है; यह दुनिया के सात अजूबों में शामिल है और देश की चंद सबसे खूबसूरत धरोहरों में शुमार है; भारत घूमने आने वालाशायद ही कोई पर्यटक ऐसा हो जो ताज महल का दीदार न करना चाहे।

ऐतिहासिक स्मारकों और धरोहरों के प्रति हमारा क्या दृष्टिकोण होना चाहिए वह शर्मा के इस बयान में प्रतिबिंबित होता है। गीजा के पिरामिड या पीसा की मीनार के प्रति कोई नफरत फैलाने का प्रयास करे तो उसे उन्माद के सिवा और क्या कहा जाएगा? ऐतिहासिक स्मारक पूरी मानव सभ्यता की विरासत होते हैं, इसलिए ऐसे स्थलों को हमेशा सहेजने के ही प्रयास किए जाते हैं। खुद योगी सरकार का दावा है कि पर्यटन परियोजनाओं के लिए प्रस्तावित 370 करोड़ रुपए में से उसने 156 करोड़ रुपए ताज महल की देखरेख और आसपास के इलाकों के विकास के लिए रखे हैं। फिर, ताज महल लेकर निहायत अप्रिय बयानबाजी क्यों? भाजपा अनुशासन का दम भरती रही है। फिर क्या कारण है कि संस्कृति मंत्री कुछ और कहते हैं, और पार्टी के कई लोग कुछ और?

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