पिछले दरवाजे से प्रावधानों को लागू कर रही है सरकार : प्रोफेसर सुधीर

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) शिक्षक संघ के सचिव प्रोफेसर सुधीर के सुथार ने बताया कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की स्वायत्तता पर सरकार से हमारे तीन सवाल हैं, स्वायत्तता किससे, किसके लिए और किस उद्देश्य के लिए दी जा रही है। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति में इसका जिक्र है जिसके विरोध होने पर सरकार ने इसके प्रस्ताव को राज्य सभा से वापस लिया था। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार पिछले दरवाजे से नई शिक्षा नीति के प्रावधानों को लागू कर रही है। प्रोफेसर सुथार के मुताबिक रैंकिंग और ग्रेड के आधार पर स्वायत्तता दी गई है जबकि इन दोनों का पहले से काफी विरोध होता रहा है।

प्रोफेसर सुथार बताया कि नोटिफिकेशन में कहा गया है कि स्वायत्त कॉलेज और विश्वविद्यालय आबंटित शिक्षकों और विद्यार्थियों की संख्या से ऊपर 20 फीसद नौकरी और दाखिला दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इससे भारतीय शिक्षकों और विद्यार्थियों दोनों का नुकसान होगा। यह पूरी तरह से भारतीयों भेदभाव है। इसकी वजह से हाशिए पर खड़े वर्गों को भी नुकसान होगा। इसी तरह कुछ शिक्षकों को अधिक वेतन का प्रावधान भी स्वायत्त विश्वविद्यालयों के लिए किया गया है जो ‘एक जैसे कार्य के लिए एक जैसा वेतन’ सिद्धांत को खंडित करता है।

प्रोफेसर सुथार ने बताया कि इन विश्वविद्यालयों या कॉलेजों में बिना यूजीसी की अनुमति के कोई भी नया पाठ्यक्रम, केंद्र, विभाग आदि शुरू किया जा सकता है जो पूरी तरह से ‘स्ववित्तपोषित’ होगा जो जेएनयू जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों का व्यवसायीकरण और निजीकरण करेगा। इसके साथ ही उन्होंने आशंका जताई कि जब विश्वविद्यालय की जांच के लिए कोई नियामक ही नहीं होगा तो वहां बेहतर गुणवत्ता की शिक्षा की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। उन्होंने कहा कि इसका जीता जागता उदाहरण जेएनयू में शुरू होने वाले इंजीनियरिंग और प्रबंधन स्कूल हैं। जो बिना निर्धारित प्रक्रिया को पूरी किए शुरू कर दिए गए हैं।

जेएनयू शिक्षक संघ के सचिव के मुताबिक इससे विश्वविद्यालयों को मनमाने नियम बनाने की आजादी मिल जाएगी जैसे की वर्तमान में जेएनयू में हो रहा है। स्वायत्तता लोकतांत्रिक नियमों जैसे जवाबदेही, लोगों की पहुंच, सामाजिक न्याय आदि के खिलाफ है।

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