बिखर रहे यूरोप को एकजुट रखने का सपना

जिस यूरोपीय संघ को कभी दुनिया भर में एकजुटता और मिल जुलकर आगे बढ़ने की मिसाल के रूप देखा जाता था, अब उसकी दीवारें दरक रही हैं। ब्रिटेन पहले ही संघ को छोड़ने का फैसला कर चुका है। अब एक और सदस्य उसके लिए सिर दर्द बन गया है। और यह सदस्य है पोलैंड, जिसका झगड़ा यूरोपीय संघ के साथ लगातार बढ़ता जा रहा है। नौबत यहां तक आ पहुंची कि यूरोपीय संघ ने वह कदम उठा दिया जो आज तक नहीं उठाया गया था। यह कदम है पोलैंड के खिलाफ लिस्बन संधि के आर्टिकल 7 को सक्रिय करना। इसका मतलब है कि यूरोपीय संघ के भीतर पोलैंड से वोटिंग का हक छीना जा सकता है। हालांकि इस कदम के लिए सभी सदस्य देशों की मंजूरी अनिवार्य है। लेकिन हंगरी पहले ही साफ कर चुका है कि वह पोलैंड से वोटिंग का अधिकार छीनने की कोशिशों को कामयाब नहीं होने देगा। इसका मतलब है कि फिलहाल पोलैंड को घबराने की जरूरत नहीं है। लेकिन इस पूरे प्रकरण से एक बार फिर यूरोपीय संघ की एकता और एकजुटता के अलावा उसके साझा मूल्यों पर भी सवाल खड़ा होता है।

पोलैंड और यूरोपीय संघ के बीच विवाद की वजह पोलिश न्यायपालिका में किए गए सुधार हैं। आलोचकों का कहना है कि इन सुधारों की वजह से पोलैंड में न्यायपालिका पर सत्ताधारी लॉ एंड जस्टिस पार्टी (पीआईएस) का नियंत्रण मजबूत होता है। यानी न्यायपालिका में होने वाली अहम नियुक्तियों में पोलिश सरकार का दखल बढ़ेगा और न्यायपालिका की स्वायत्तता खतरे में पड़ जाएगी। ब्रसेल्स में बैठे ईयू अधिकारियों का कहना है कि इन सुधारों के कारण यूरोपीय संघ के नियमों और कानून के राज्य वाले सिद्धांत के उल्लंघन का जोखिम पैदा हो गया है। पोलैंड में 2015 में पीआईएस पार्टी सरकार में आई और तभी से वह यूरोपीय संघ के साथ झगड़ रही है। आलोचकों का कहना है कि राष्ट्रवादी एजेंडे पर चलने वाली पीआईएस पार्टी की नीतियां अधिनायक तंत्र की तरफ जा रही हैं और उसे यूरोपीय संघ के साझा मूल्यों की कोई परवाह नहीं है। लेकिन अपनी आजादी पर जोर दे रहे पोलैंड को यूरोपीय संघ के विचारों की कोई परवाह नहीं है।

आर्टिकल 7 सक्रिय होने के चंद घंटों के भीतर ही पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रे डूडा ने घोषणा कर दी कि वह न्यायपालिका में सुधारों से जुड़े बिल पर हस्ताक्षर कर इसे कानून का रूप दे रहे हैं। देश की सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय न्यायिक परिषद में सुधारों से जुड़े प्रस्तावित कानून को पहले ही संसद की मंजूरी मिल चुकी है। पीआईएस पार्टी इन सुधारों को लेकर यूरोपीय संघ की आलोचनाओं को खारिज करती है। उसका कहना है कि देश की सुस्त, निष्प्रभावी और कम्युनिस्ट दौर की मानसिकता के साथ चलने वाली अदालतों को चुस्त दुरुस्त करने के लिए सुधार बेहद जरूरी है। लेकिन यूरोपीय संघ इसे मानने को तैयार नहीं है। उसका कहना है कि दो साल तक पोलैंड को समझाने की कोशिशों का जब कोई नतीजा नहीं निकला तो हारकर आर्टिकल7 को सक्रिय करने का कदम उठाना पड़ा।

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