बीएचयू और IIT- IIM में करोड़ों का ‘घपला’, खामोश रहा मानव संसाधन विकास मंत्रालय
बीएचयू, आइआइएम अहमदाबाद और कोलकाता में करोड़ों रुपये की वित्तीय अनियमितता सामने आई है। इन संस्थानों में जहां स्टाफ के जीपीएफ और सीपीएफ पर सरकार की ओर से तय रेट से ज्यादा दर पर ब्याज भुगतान का खेल हुआ। वहीं आइआइटी मुंबई तथा चेन्नई में भत्ते और मानदेय भुगतान में भारी गड़बड़ी पकड़ी गई।करोड़ों रुपये की इन गड़बड़ियों पर संस्थानों ने सफाई पेश की, मगर देश की सबसे बड़ी ऑडिट एजेंसी CAG ने उन्हें खारिज कर दिया।
इन संस्थानों ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दिशा-निर्देशों को ताक पर रखकर पैसा खर्च किया। खास बात है कि देश के नामी तकनीकी और प्रबंधन संस्थान मानव संसाधऩ विकास मंत्रालय(MHRD) के दिशा-निर्देशों को हवा में उड़ाते रहे, मगर मंत्रालय ने कुछ किया नहीं। वो भी तब, जब कैग ने इन गड़बड़ियों को मंत्रालय को मंत्रालय के संज्ञान में भी लाया। कैग के सवालों पर एमएचआरडी खामोश रहा। वर्ष 2018 की रिपोर्ट नंबर चार में कैग ने इन गड़बड़ियों का जिक्र किया है।
गड़बड़ी कैसे हुई, यह जानने से पहले नियम-कायदे समझ लीजिए। दरअसल, वित्त मंत्रालय के परामर्श के बाद एमएचआरडी ने फरवरी 2004 में सभी स्वायत्तशासी संस्थानों को सरकुलर जारी कर एक हिदायत दी। कहा कि जीपीएफ और सीपीएफ पर उतने दर से ही ब्याज दिया जाए, जितना वित्त मंत्रालय ने तय किया है।यह भी रियायत दी गई संस्थान अपनी माली हालत देखते हुए निर्धारित से कम दर पर भी ब्याज का भुगतान कर सकते हैं।
मगर देश के तीनों बड़े संस्थानों ने इन निर्देशों को दरकिनार कर दिया। कैग की ऑडिट के दौरान पता चला तीनों संस्थानों ने 2010-11 से 2016-17 के बीच 6.28 करोड़ रुपये का अनियमित ब्याज स्टाफ पर लुटा दिया। बानगी के तौर पर वित्त मंत्रालय ने 2015-16 के लिए जीपीएफ व सीपीएफ पर 8.70 प्रतिशत ब्याज दर तय की थी, मगर बीएचयू ने इस अवधि में 9.20 प्रतिशत के ऊंचे रेट से 1.75 करोड़ रुपये ज्यादा स्टाफ को दिए। इससे पहले 2012-13 में 9.30 फीसद की दर से 1.17 करोड़ रुपये का अनियमित भुगतान हुआ। आइआइएम अहमदाबाद ने तो 12 प्रतिशत की रेट से जीपीएफ और सीपीएफ पर ब्याज बांटे।
संस्थानों ने क्या दी सफाईः जून 2017 में आइआइएम अहमदाबाद ने सफाई में कहा कि 2004 में एमएचआरडी की ओर से जारी दिशा-निर्देश उस पर लागू नहीं हैं।संस्थान ने यह भी तर्क दिया कि कमाई को देखते हुए स्टाफ को बतौर ब्याज अतिरिक्त लाभ देने का ट्रस्टीज ने फैसला किया था। इसी तरह बीएचयू ने मई 2017 में दी अपनी सफाई में अनोखा तर्क दिया।
संस्थान ने कहा कि 2012-13 में इस नाते ऊंचे दर पर ब्याज दिया गया, क्योंकि इस दौरान मदन मोहन मालवीय की 150 वीं जयंती वर्ष का आयोजन था और 2015-16 में बीएचयू की स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा था।बीएचयू प्रशासन के इस जवाब को कैग ने गलत करार दिया। हालांकि आइआइएम कोलकाता ने अपनी गलती जरूर स्वीकार की और सितंबर 2017 में कहा कि ब्याज का भुगतान गलत तरीके से हुआ था, इस नाते संबंधित स्टाफ से रिकवरी होगी।
कैग ने आइआएम अहमदाबाद के जवाब को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि जब किसी संस्थान का पीएफ रूल पीएफ एक्ट 1925 के सेक्शन 8(2) के तहत अधिसूचित होता है तो उसे सरकार की ओर से निर्धारित ब्याज दर का पालन करना अनिवार्य है। उधर जब कैग ने रिपोर्ट तैयार करने से पहले मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जवाब मांगा तो दिसंबर 2017 तक कोई जवाब ही नहीं दिया गया।
आइआइटी मुंबई में मानदेय घपलाः इसी तरह आइआइटी, मुंबई में स्पेशल अलाउंस और मानदेय वितरण में 9.76 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता पकड़ में आई। ऑडिट के दौरान पता चला कि जनवरी 2006 से मार्च 2017 तक आइआइटी मुंबई ने विशेष भत्ते और मानदेय के नाम पर 9.76 करोड़ रुपये गलत तरह से खर्च किए। अप्रैल 2017 में मंत्रालय ने मुख्य लेखा नियंत्रक को बताया कि भारतीय प्रौद्यौगिकी संस्थान(आइआइटी) पूरी तरह से केंद्र सरकार से वित्तपोषित होते हैं।
इस नाते किसी तरह का भत्ता देने पर उन्हें मंत्रालय से अनुमति जरूर लेनी है। इसी तरह से आइआइटी मुंबई ने 2.56 करोड़ रुपये के सर्विस टैक्स का भी गलत भुगतान किया। आइआइटी चेन्नई में 1.19 करोड़ रुपये के अनावश्यक खर्च पर कैग ने सवाल उठा। विश्व भारती शांतिनिकेतन में भी स्टाफ को मानदेय देने में 1.07 करोड़ रुपये की अनियमितता सामने आई।