मोबाइल पर बात
मोबाइल फोन आज हमारी जिंदगी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। हम इसके बगैर रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। मगर विडंबना है कि यह जितना उपयोगी साबित हो रहा है, इसका दुरुपयोग उतना ही जानलेवा है। वाहन चलाते हुए मोबाइल फोन पर बात करना कितना घातक हो सकता है, इसका अंदाजा एक रिपोर्ट देखकर लगाया जा सकता है। सरकारी रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल दोपहिया वाहन चलाते हुए मोबाइल इस्तेमाल करने के कारण दो हजार से अधिक लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे। इसके अलावा गति-अवरोधक की अनदेखी करने, सड़क पर गड्ढे और निर्माणाधीन सड़कों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं में रोजाना कई लोगों की मौत हो जाती है। सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों का एक बड़ा कारण वाहन चलाने के दौरान मोबाइल फोन का इस्तेमाल है। पहली बार केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने राज्यवार इसका आंकड़ा तैयार किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार देश में सड़क दुर्घटनाओं में करीब सत्रह लोगों की जान हर घंटे जाती है। सड़क पर मोबाइल के इस्तेमाल के चलते वाहन चालक ही नहीं, पैदल चलने वाले भी दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे हैं। सड़क एवं परिवहन मंत्री ने भी माना है कि वाहन चलाते हुए मोबाइल फोन पर बात करने या सेल्फी लेने के दौरान दुर्घटनाओं के मामले बढ़ रहे हैं। इससे न केवल ऐसा करने वालों की जान को खतरा होता है, बल्कि दूसरे भी उनकी चपेट में आते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट बताती है कि जो वाहन चलाने के दौरान मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं, उनके वाहन टकराने का खतरा चार गुना अधिक बढ़ जाता है। यातायात पुलिस का कहना है कि वाहन चलाते हुए या सड़क पर पैदल चलते हुए मोबाइल देखना या उस पर बात करना खतरे की घंटी है। मगर विडंबना है कि लोगों में यह लत बढ़ती जा रही है। इस संबंध में ‘सेव लाइफ फाउंडेशन’ ने इस साल की शुरुआत में एक सर्वे किया था। सर्वे में चालकों ने यह माना था कि ड्राइविंग के दौरान मोबाइल इस्तेमाल करना असुरक्षित होता है। इसके बावजूद सैंतालीस प्रतिशत का कहना था कि वे ऐसा करते हैं। सुप्रीम कोर्ट की एक समिति ने मार्ग दुर्घटनाओं में पचास फीसद कमी लाने के निर्देश दिए हैं। मगर जो हालत है, उसे देख कर नहीं लगता कि ऐसा हो रहा है। अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाने के कारण पिछले साल 4,976 दुर्घटनाएं हुर्इं जिनमें 2,138 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। सड़क परिवहन मंत्रालय का मानना है कि आने वाले समय में इसके चलते हादसों में बढ़ोतरी की आशंका है। दोपहिया वाहनों पर चलने वाले लोगों को सावधान रहने की जरूरत है। रिपोर्ट से साफ है कि सड़क हादसों में सबसे ज्यादा जान गंवाने वाले दोपहिया वाहनों पर चलने वाले लोग ही रहते हैं। 2016 में सड़क हादसों में मरने वाले कुल लोगों में 34 प्रतिशत यानी 52,500 लोग दोपहिया वाहनों पर सफर करने वाले थे। पैदल चलने वाले 15,746 लोगों को भी इन हादसों में जान गंवानी पड़ी। भारत में 2016 के दौरान प्रति एक लाख आबादी पर औसतन एक दर्जन लोग सड़क हादसों में मारे गए।
आज देश में न तो कानून का सम्मान है और न ही डर। राज्य सरकारों को इस मामले में सख्त कदम उठाने चाहिए। केंद्र सरकार ने राज्यों को सड़क हादसे रोकने के लिए जिला स्तर पर समितियों का गठन करने के लिए कहा है, जिनमें स्थानीय सांसद, विधायक, जिला अधिकारी सहित समाज के प्रमुख लोग शामिल होंगे। वे नियमित बैठक कर सड़क की स्थितियों में सुधार के लिए स्थानीय पॉलीटेक्निक छात्रों की मदद से जनजागरण का काम करेंगे। अध्ययनों से पता चला है कि ज्यादातर हादसों की वजह ड्राइवरों की गलती होती है। निर्धारित गति से ज्यादा तेज गाड़ी चलाना, शराब पीकर गाड़ी चलाना, गलत जगह पर ओवरटेक करना और मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना आदि कुछ ऐसी वजहें हैं, जिनसे बड़ी संख्या में सड़क हादसे हो रहे हैं। कहने को तो सरकार ने इन हादसे को रोकने के लिए राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा नीति तैयार की है। इसका मकसद इन हादसों के प्रति लोगों को शिक्षित और जागरूक करना है। माना जा रहा है कि संसद में लंबित पड़े मोटर यान (संशोधन) विधेयक के पारित होने के बाद सड़क हादसों को रोकने के लिए और कारगर कदम उठाए जा सकेंगे। इस विधेयक में दूसरे प्रावधानों के अलावा यातायात नियमों के उल्लंघन के लिए लगाए जाने वाले जुर्माने में भारी बढ़ोतरी का भी प्रावधान है। लेकिन कितना भी कानून बना लिया जाए, जब तक नागरिकों में चेतना नहीं आएगी, तब तक कामयाबी मिलना मुश्किल है। लोगों को समझना चाहिए कि हर जान कीमती है। बातचीत कितनी भी जरूरी हो, वह जान की कीमत पर जरूरी नहीं है। यह भी देखा गया है कि मृतकों में बड़ी संख्या युवकों की होती है। इसलिए जरूरी यही है कि यथासंभव कोशिश करनी चाहिए कि चलते वाहन पर बात न की जाए।