राधे मां का ठुमका

स्च्छवता दिवस पर स्वच्छ-स्वच्छ लोग स्वच्छता के बारे में स्वच्छ-स्वच्छ अंग्रेजी में दिन भर स्वच्छ-स्वच्छ करते रहे। इस चक्कर में कई चैनल कुछ ज्यादा ही स्वच्छ-स्वच्छ करने लगे। स्वच्छ-स्वच्छ की कबड्डी खेलने लगे।  एनडीटीवी पर दिन भर अमिताभ स्वच्छता करते रहे। और हम सब डिटॉल में नहाते रहे। शाम तक इस दिव्य अभियान के लिए चैनल को पीएम की शाबाशी भी मिलती दिखी। एनडीटीवी को मिली तो डिटॉल को भी मिली! धन्य है डिटॉल कि उसके बिना कुछ स्वच्छ नहीं होता। डिटॉल को प्रणाम! बाइ द वे डिटॉल पर जीएसटी कित्ता लगता है भैया जी?  वे जो सीवरों की सफाई में मरे, उनके लिए इस दिन एक मिनट का मौन तो हो ही सकता था! लेकिन जब डिटॉल का हो सौजन्य तो काहे का मौन!
इस अखिल चमचत्व के बीच अगर कुछ आलोचनात्मकता बची रही तो शायद एनडीटीवी पर ही बची रही। खुदा खैर करे!  एक शाम इस चैनल पर अरुण शौरी आए और सरकार पर जम कर व्यंग्य बाण चलाए। अंग्रेजी का ऐसा तंजोमजा चैनलों में दुर्लभ ही है।  शौरी बोले: यह सरकार ‘इलहाम’ पर चलती है। रात को इलहाम होता है कि ये कर दो और वह कर दिया जाता है। नोटबंदी ‘इलहाम’ ही था ‘जीएसटी’ भी ऐसा ही है। जीडीपी पांच दशमलव सात तक ही नहीं लुढ़की। पुराने आंकड़े के हिसाब से तो वह असल में तीन दशमलव सात के स्तर पर है। इस सरकार को कुल ढाई लोग चलाते हैं।… मोदी जी कहे थे कि पच्चीस हजार फुट उंची चोटी पर चढ़े हैं। अगर चढ़े होते तो माउंटेनियरिंग संस्थान में नाम दर्ज होता।
और अमित शाह का नाम आते ही अरुण ने तपाक से चुटकी ली: अच्छा वो प्रसिद्ध अर्थशास्त्री! और भाई साब ये चुटकी ऐसी थी कि निधि भी हंसने लगी।
आप सब तो फ्रस्ट्रेटेड हैं। आप लोग तो ऐसा कहेंगे ही: निधि ने कहा।

अरुण बोले: सरकार फ्रस्ट्रेटेड लोगों की लिस्ट क्यों नहीं निकाल देती, ताकि सब जान जाएं कि कौन कौन हैं? एक से एक चुटीली चोटें। अरुण शौरी ऐसे ही दो टूक बोलते हैं। अरुण का बोलना उन सबको भाता है, जो ‘निराशावादी’ हैं! अरुण सरकार की एक दुर्निवार टीका हंै! ऐसी चोटों के बीच गिरती अर्थव्यवस्था को संभाला तो अपने पीएम ने। कंपनी सचिवों के सम्मेलन में पीएम ‘आलोचकों’ पर चुटकी लेते हुए बोले कि कुछ लोगों को निराशा फैलाने में मजा आता है, जब तक निराशा न फैला लें तब तक अच्छी नींद नहीं आती!उन्होंने एक ही स्कूल में पढ़े युधिष्ठिर और दुर्योधन के उदाहरण के जरिए भी निंदकों पर चोट की। वे यह भी बोले कि यूपीए के वक्त में तो आठ बार लुढ़की, अपनी तो पहली बार लुढ़की है।
जब वह आठ बार लुढ़क सकती है, तो क्या हम एक बार भी नहंीं लुढ़क सकते? क्यों नहीं सरजी? आप चाहें तो सात बार और लुढ़किए! लेकिन इस बार निंदक भी पीछे नहीं हट रहे। युधिष्ठिर और दुर्याेधन के उदाहरण को लेकर यशवंत ने जवाबी हमला किया कि वे इकोनॉमी का ‘चीरहरण’ नहीं होने देंगे। महाभारत के भीष्म चुप रहे थे, लेकिन मैं बोल रहा हूं। उन्होंने ‘दुर्याेधन’ के साथ ‘दु:शासन’ का भी नाम जोड़ा! यह है महाभारत नंबर दो!  लेकिन इस महाभारत को रोका, तो हनीप्रीत की कहानी ने। एक चैनल ने उनकी ऐसी धांसू एंट्री कराई कि चैनल सर्किट में हल्ला हो गया कि उस चैनल को हनीप्रीत का इंटरव्यू कैसे मिला? पुलिस से पहले वह चैनल तक कैसे पहुंची? क्या चैनल को पहले से टिप कर दिया गया था या कि यह सचमुच की ‘खोजी पत्रकारिता’ थी?

लेकिन हनीप्रीत की इस कहानी को भी पीछे धकेला कंगना और रितिक की झगड़ालू कहानी ने। दो परम देशभक्त चैनलों के एजंडे पर सबसे बड़ी कहानी यही रही। किसने किसे हैरास किया? किसने किसे आरोपित किया? किसने किसके अंतरंग किस्म के चित्र आन लाइन किए।… केस की बाबत बात करने के लिए दोनों के वकील आ जुटे!कंगना तो सिमरन के बहाने हर चैनल पर बोलती ही रही थीं, अब रितिक भी बोलने लगे कि मैंने बहुत सह लिया।… अदालत से पहले मुकदमा चैनलों में आ गया। फिर भी सबसे मनोरंजक कहानी राधे मां की ही रही। वे हमेशा हल्लेदार खबर बनाती हंै। वही टेढ़ी गरदन। वही सुर्ख लिपस्टकी मुसकान। वही सज्जा, वही मुद्रा, वही बानगी! इस बार पुलिसवालों पर मेहरबान हुर्इं। एक भक्त थानेदार ने उनको अपनी कुर्सी सौंप दी। फिर गाना भी गाया। राधे मां ने भक्तों को निराश नहीं किया। खुशी से ठुमका भी लगाया!  लेकिन अ-भक्तों को यह पसंद न आया! राधे मां के भक्त थानेदार और दो कांस्टेबिलों को सिर्फ इसलिए सस्पेंड कर दिया गया कि उन्होंने राधे मां को कुर्सी पर क्यों बिठाया? जब इस देश में एक मंहत जी सीएम हो सकते हैं तो एक थानेदार राधे मां का भक्त क्यों नहीं हो सकता?  जीएसटी का नारा रहा एक टैक्स एक बाजार एक राष्ट्र! अब अपने उत्साही चुनाव आयोग का नारा है: एक देश एक चुनाव! आयोग ने कह दिया है कि दो हजार अठारह तक वह देश में एक चुनाव एक राष्ट्र बना कर दिखा सकता है! उसकी चालीस लाख मशीनें तैयार रहेंगी!

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