राहत की सौगात
सत्ता में बैठे लोग कल तक यही जता रहे थे कि जीएसटी को लेकर सबकुछ ठीकठाक है, सारी आलोचना बकवास है, जो भी शिकायतें हैं वे एक नई कर-व्यवस्था लागू करने पर स्वाभाविक रूप से होने वाली आरंभिक दिक्कतों की वजह से हैं और ये धीरे-धीरे दूर हो जाएंगी। लेकिन आखिरकार सरकार को अपने इस रुख से कुछ पीछे हटना पड़ा। वित्तमंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में हुई जीएसटी परिषद की बाईसवीं बैठक के बाद बीते शुक्रवार को सरकार ने जो घोषणाएं कीं, उनसे साफ है कि छोटे कारोबारियों और निर्यातकों को दोनों तरह की रियायत दी गई है। एक तो यह कि कोई सत्ताईस वस्तुओं पर कर की दरें घटा दी गई हैं। दूसरी राहत, अनुपालन संबंधी है। आखिर क्या हुआ कि शिकायतों को लगातार अनुसना करती आ रही सरकार को झुकना पड़ा। इसके कई कारण हो सकते हैं।
खासकर यशवंत सिन्हा के लेख के बाद अर्थव्यवस्था को लेकर कुछ दिनों से चल रही बहस में आलोचकों की ओर से मंदी जैसे हालात या आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट के पीछे विशेष रूप से दो कारण चिह्नित किए जा रहे थे। एक, नोटबंदी। और दूसरा, जीएसटी के स्वरूप और क्रियान्वयन में खामियां। इन दोनों वजहों से छोटे व मझोले व्यापारी परेशान रहे हैं और इसका अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है। दूसरा कारण, संघ की दशहरा रैली के अवसर पर दिया गया मोहन भागवत का भाषण हो सकता है, जिसमें उन्होंने छोटे-मझोले कारोबारियों का खयाल रखने की सलाह दी थी। तीसरा कारण गुजरात चुनाव हो सकता है, जहां व्यापारियों का समर्थन या विरोध बहुत मायने रखता है।
यह दिलचस्प है कि एक समय सर्राफा व्यवसायियों के महीनों चले आंदोलन की परवाह न करने वाली सरकार अब उन पर मेहरबान हो गई है। सरकार ने सर्राफा बाजार को धनशोधन अधिनियम से बाहर कर दिया है। इसके साथ ही, अब दो लाख रुपए तक के गहने खरीदने पर पैन कार्ड नहीं देना होगा। इससे पहले, यह सीमा पचास हजार रु. थी। छोटे व मझोले उद्यमों के लिए भुगतान व रिटर्न दाखिल करने के नियम कुछ आसान बनाए गए हैं। सालाना डेढ़ करोड़ रु. तक का कारोबार करने वाली कंपनियों को हर महीने के बजाय अब तिमाही रिटर्न भरना होगा। कंपोजीशन योजना अपनाने वाली कंपनियों के लिए कारोबार की सीमा पचहत्तर लाख रु. से बढ़ा कर एक करोड़ रु. कर दी गई है। अलबत्ता बड़े करदाताओं को पहले की तरह ही मासिक आधार पर कर का भुगतान करना होगा। व्यापारियों को परेशान कर रही रिवर्स चार्ज प्रणाली को अगले साल मार्च तक टाल दिया गया है। जीएसटी लागू होने के तीन माह बाद ही इतने सारे फेरबदल करने की जरूरत पड़ गई! और यह भी अंतिम नहीं है।
कुछ और फेरबदल हो सकते हैं। मसलन, एक राज्य से दूसरे राज्य में बिक्री करने वालों को कंपोजीशन योजना के दायरे में लाने पर विचार करने के लिए एक मंत्री-समूह का गठन किया गया है। खुद जेटली ने माना है कि तकनीकी दिक्कतें अब भी हैं, और वे धीरे-धीरे दूर होंगी। पिछले दिनों जेटली ने राजस्व को शासन की जीवनरेखा बताते हुए एक तरह से जीएसटी की तीन महीने पहले तय की गई दरों को सही ठहराया था। पर अब वे और प्रधानमंत्री अपनी पीठ थपथपा रहे हैं तथा राहत की घोषणाओं को भुनाना चाहते हैं। बहरहाल, तीन महीने बाद ही इतने सारे फेरबदल करने के लिए सरकार का तैयार होना इसी ओर संकेत करता है कि जीएसटी लागू करने से पहले पर्याप्त तैयारी नहीं की गई थी; उस वक्त ज्यादा जोर धूम-धड़ाके पर था।